Friday, 29 March 2024

भारत में 83 प्रतिशत बेरोज़गार हैं युवा!

भारत में 83 प्रतिशत बेरोज़गार हैं युवा! 

भाजपा शासन का हर दिन युवाओं के जीवन पर है भारी!

हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हरेक 100 बेरोज़गारों में से 83 युवा हैं। यह रिपोर्ट 2022 तक के आँकड़े सामने रखती है। 'आईएलओ' (इण्टरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन) और 'आइएचडी' (इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट) द्वारा जारी किये गये इस सर्वे में और भी कई तथ्य सामने आये हैं। भारत के कुल बेरोज़गारों में पढ़े-लिखे युवाओं की संख्या साल 2000 के मुक़ाबले 2022 तक दोगुनी हो गयी। देश के शिक्षित बेरोज़गारों की संख्या जोकि वर्ष 2000 में 35.2 फ़ीसदी थी वह 2022 में बढ़कर 65.7 फ़ीसदी हो चुकी है। दूसरी ओर असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों ही नहीं बल्कि संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की आय में भी गिरावट देखने को मिली है तथा अकुशल मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी तक नसीब नहीं होती है। 

भारत में बेरोज़गारी की हक़ीक़त हम सभी पहले से ही जानते हैं। अब इस अन्तरराष्ट्रीय पूँजीवादी संस्था द्वारा जारी आँकड़े ही 'अच्छे दिनों' के जुमले पर कालिख पोतते नज़र आ रहे हैं। जनता को तो अपने हालात समझने के लिए आँकड़ों की कोई दरकार ही नहीं थी। इसके लिए तो हम भर्तियों में एक-एक पद के पीछे निराश-हताश हज़ारों-लाखों युवाओं की भीड़ को आये दिन देखते ही हैं।

भारत में बढ़ती बेरोज़गारी का कारण फ़ासीवादी मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियाँ हैं। वैसे तो पिछली सरकारों और गैर-भाजपा राज्य सरकारों के दौरान भी रोज़गार के हालात कोई बेहतर नहीं थे लेकिन केन्द्र व राज्यों के भाजपा के फ़ासीवादी शासन ने स्थिति को नारकीय बना दिया है। हर साल 2 करोड़ नये रोज़गार पैदा करने का जुमला उछालने वाले मोदी के राज में इस वक़्त तक़रीबन 32 करोड़ लोग बेरोज़गारी का दंश झेल रहे हैं। रोज़गारशुदा लोगों तक भी मन्दी की आँच पहुँच रही है और कई प्रतिष्ठित कम्पनियाँ भी अपने कर्मचारियों की धड़ल्ले से छँटनी कर रही हैं। मोदी सरकार ने खुद यह माना कि इसके कार्यकाल के दौरान 22 करोड़ 5 लाख युवाओं ने केन्द्र की नौकरियों के लिए आवेदन किया और केवल 7 लाख 22 हज़ार को ही नौकरी मिली। 

भाजपा के शासन के दौरान उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों की मार जनता के ऊपर भयंकर रूप से पड़ रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की तमाम कम्पनियों और संस्थानों को बेरोकटोक ढंग से बेचा जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप सरकारी नौकरियों में भयंकर कमी आयी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, सिंचाई, पेयजल, बिजली समेत तमाम विभागों में लाखों-लाख पद खाली पड़े हुए हैं। भाजपा के राज के नाममात्र की भर्तियाँ निकली हैं। उनमें भी ज़्यादातर पेपर लीक, धान्धलेबाजी और कोर्ट केस का शिकार हुई। देश के युवा रोज़गार के लिए अपनी जान जोख़िम में डालते हुए युद्धरत इज़रायल तक में जाने को तैयार हैं। युवाओं की अत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं जिसका कारण भी बेरोज़गारी के ख़तरनाक हालात हैं। साल 2017 से 2021 तक के चार सालों के दौरान 7,20,611 लोगों ने आत्महत्या की जिनमें ज़्यादातर छात्र-नौजवान और गरीब लोग शामिल थे। इस सबके बावज़ूद जुमलेबाज़ सरकार विकसित भारत की बीन बजाने में लीन है और जनविरोधी गोदी मीडिया इसकी अभ्यर्थना में लगा हुआ है। फ़ासीवादी भाजपा के निरंकुश शासन का एक-एक दिन छात्रों-युवाओं और आम जनता पर भारी पड़ रहा है। 

ऐसे हालात में अपने रोज़गार को सुरक्षित करने के लिए हमारे पास एकजुट संघर्ष का ही रास्ता बचता है। हमें जाति-धर्म के नाम पर बँटवारे की राजनीति करने वाले तमाम संगठनों के झण्डों को धूल में फेंककर रोज़गार-शिक्षा-चिकित्सा आदि हमारे असली हक़-अधिकारों के लिए एकजुट होना चाहिए। हमें संगठित होकर निजीकरण को रोकने, विभागों में खाली पदों को भरने, ठेकेदारी प्रथा समाप्त करने, बेरोज़गारी भत्ता हासिल करने जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरना चाहिए। आगामी चुनावों में वोट की भीख माँगने के लिए हमारे दरवाजों पर आने वाले भाजपा नेताओं से हमें पूछना चाहिए कि दो करोड़ रोज़गार के जुमले का क्या हुआ और उन्हें अपने द्वार से उल्टे पाँव भगाना चाहिए। यदि हम एकजुट नहीं हुए तो फ़ासीवादी मोदी सरकार फिर से सत्ता में आयेगी और इसको वही काम करना है जोकि वह कर रही है। मौद्रीकरण और निजीकरण के रूप में अदानी-अम्बानी, टाटा-बिरला की सेवा जारी है। पीएम केयर,  इलेक्टोरल बॉण्ड जैसे घोटाले करके धन्नासेठों को देश को लूटने की छूट देकर अपनी तिजोरी भरी जा रही है। लूट और झूठ पर पर्दा डालने के लिए जनता और उसके युवा बेटे-बेटियों को जाति-धर्म-मन्दिर-मस्जिद के नाम पर आपस में लड़ाया जा रहा है। आगामी लोकसभा चुनावों में यदि किसी अन्य ठगबन्धन की सरकार भी बनती है तो उसे भी हम अपनी एकजुटता के दम पर ही जनहितैषी नीतियाँ बनाने के लिए मजबूर कर सकते हैं। हम आज भी नहीं चेतते तो भविष्य हमें कभी माफ़ नहीं करेगा।

हम माँग करते हैं :

रोज़गार, शिक्षा, चिकित्सा और आवास को मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाये। 

'भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून' पारित करो। हरेक को रोज़गार देना सरकार की ज़िम्मेदारी हो। 

स्थायी रोज़गार न दे पाने की सूरत में न्यूनतम 10,000 रुपये बेरोज़गारी भत्ता दिया जाये।

सभी सरकारी विभागों में खाली पड़े पदों को तत्काल प्रभाव से भरा जाना चाहिए।

भर्तियों में पेपर लीक के दोषियों को सख़्त सजा दी जानी चाहिए।

मनरेगा योजना को पूरे वर्ष लागू किया जाना चाहिए।

सभी विभागों में ठेका-संविदा को समाप्त करके कर्मचारियों को पक्का किया जाना चाहिए।

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के घटक संगठनों नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन का साझा बयान

Thursday, 28 March 2024

कोकिल कूक रहही अमराई

अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलिया 

*कोकिल कूक रहही अमराई*

होली में हुड़दंग बहुत है,
कीचड़, कालिख, रंग बहुत है,
नया दौर-दिल तंग बहुत है,
और रंग में भंग बहुत है, 
बचके रहना मेरे भाई।

रंगों में अब जहर भरे है,
लोग बाग सब डरे-डरे हैं, 
मंहगाई के भी नखरे हैं,
क्या खायें सौ-सौ खतरे हैं,
नकली खोवा और मिठाई।

घर की गुंजिया-सेंवई खाना,
दही बड़ा, नमकीन चखाना,
हलवा, पूड़ी, खीर खिलाना ,
सबको आदर, प्रेम लुटाना,
होली खुशियों की हलवाई।

रंग अबीर-गुलाल लगाना,
राग भरा मन-मीत मिलाना,
कड़वी यादों को बिसराना,
लक्ष्य-लीन पग डगर बढ़ाना,
कोकिल कूक रही अमराई।
दिनांक-२८-०३-२०१३

Friday, 22 March 2024

कवि बच्चा लाल 'उन्मेष' की कविताएं

1. छिछले प्रश्न गहरे उत्तर*   

कौन जात हो भाई? 
"दलित हैं साब!" 
नहीं मतलब किसमें आते हो? /  
आपकी गाली में आते हैं 
गन्दी नाली में आते हैं 
और अलग की हुई थाली में आते हैं साब! 
मुझे लगा हिन्दू में आते हो! 
आता हूं न साब! पर आपके चुनाव में। 

क्या  खाते हो भाई? 
"जो एक दलित खाता है साब!" 
नहीं मतलब क्या-क्या खाते हो? 
आपसे मार खाता हूं 
कर्ज़ का भार खाता हूं 
और तंगी में नून तो कभी अचार खाता हूं साब! 
नहीं मुझे लगा कि मुर्गा खाते हो! 
खाता हूं न साब! पर आपके चुनाव में। 

क्या पीते हो भाई? 
"जो एक दलित पीता है साब! 
नहीं मतलब क्या-क्या पीते हो? 
छुआ-छूत का गम 
टूटे अरमानों का दम 
और नंगी आंखों से देखा गया सारा भरम साब! 
मुझे लगा शराब पीते हो! 
पीता हूं न साब! पर आपके चुनाव में। 

क्या  मिला है भाई 
"जो दलितों को मिलता है साब! 
नहीं मतलब क्या-क्या मिला है? 
ज़िल्लत भरी जिंदगी 
आपकी छोड़ी हुई गंदगी 
और तिस पर भी आप जैसे परजीवियों की बंदगी साब! 
मुझे लगा वादे मिले हैं! 
मिलते हैं न साब! पर आपके चुनाव में। 

 क्या किया है भाई? 
"जो दलित करता है साब! 
नहीं मतलब क्या-क्या किया है? 
सौ दिन तालाब में काम किया 
पसीने से तर सुबह को शाम किया 
और आते जाते ठाकुरों को सलाम किया साब! 
मुझे लगा कोई बड़ा काम किया! 
किया है न साब! आपके चुनाव का प्रचार..। 

2.हिंदू राष्ट्र में हम कहाँ? 
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आपके हिंदू राष्ट्र में चमार कहाँ रहेंगे? 
हमारी जूती के नीचे, मरी गायों के पीछे
अकेला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में अहीर कहाँ रहेंगे? 
हमारे महल के पीछे, बाग बगियन के नीचे
तबेला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में गडेरिया कहाँ रहेंगे? 
हमारी ऊनी गद्दी के नीचे, अपने भेड़ों के पीछे
रेला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में भंगी कहाँ रहेंगे? 
हमारे नालों के नीचे, हमारे पैखानों के पीछे
हेला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में नाई कहाँ रहेंगे? 
हमारी मूँछ के नीचे, बढ़े नाखून के पीछे
थैला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में लोहार कहाँ रहेंगे? 
हमारे तवा के नीचे, अपनी फुकनी के पीछे
चैला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में धोबी कहाँ रहेंगे? 
हमारे मोजा के नीचे, उड़ते रेह के पीछे
मैला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में कोइरी कहाँ रहेंगे? 
हमारे जूठन के नीचे, हमारे खेतन के पीछे
ढेला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में माली कहाँ रहेंगे? 
हमारी बगिया के पीछे, उगे काँटों के नीचे
ठेला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में चौरसिया कहाँ रहेंगे? 
हमारे दाँत के नीचे, बस पान के पीछे
मेला में रहेंगे!

आपके हिंदू राष्ट्र में कुर्मी कहाँ रहेंगे? 
हमारे कोल्हू के नीचे, हमारे बैलों के पीछे
पतेला में रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में केवट कहाँ रहेंगे? 
धुले पाँव के नीचे,राजा राम के पीछे
बन के चेला रहेंगे! 

आपके हिंदू राष्ट्र में औरतें कहाँ रहेंगी? 
हम पुरुषों के नीचे और घूँघट के पीछे
चूल्हा में रहेंगी! 

आपके हिंदू राष्ट्र में आप कहाँ रहेंगे? 
तुम्हारे गर्दन के नीचे, तुम्हारे हक़ के पीछे
इसी खेला में रहेंगे! 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

3. जाप
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आपको ऊपर वाला देगा
हमें आप दो। 

जुकाम आपका दूर होगा
हमें भाप दो। 

जब पूल कहीं गिरे
हमें ढांप दो। 

जहाँ श्रेय की बात आए
हमें छाप दो। 

स्वर्ग आपका,पर ज़मीं
हमें नाप दो। 

जहाँ भी खाली बैठो 
हमें जाप दो। 

हमारे चिलम को लहकाओ
हमें ताप दो। 

हमने श्रम का कब खाया? 
हमें तो आप दो।

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

4. नहीं देखा
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कभी किसी पुजारी को
मूरत गढ़ते नहीं देखा, 
जो गढ़ता आया उसका कभी
पेट भरते नहीं देखा। 

देवता तो पत्थर था
पत्थर ही रहा आख़िर, 
किसी भी सूरत में उसे
कभी पिघलते नहीं देखा। 

कोई काम छोटा नहीं
सोच छोटी होती है, 
ऐसा कहने वालों को
नालों में उतरते नहीं देखा। 

देखा है हमने श्रमिकों के
हाथों में भरे फफोले, 
कभी किसी मालिक को
दुःख में हाथ धरते नहीं देखा। 

आने वाली नस्लों को ये
एक-एक चर जाएंगे, 
देखा है सिर्फ फूलते साँड़
एक भी फलते नहीं देखा। 

जब भी देखा,हँसते देखा
मैंने अपने यार को, 
सर्पिले वाणी वालों को
सीधे डसते नहीं देखा। 

लड़ते देखा,मरते देखा
ख़ून-ख़राबा करते देखा, 
हथियार उठाने वालों को
कभी पढ़ते नहीं देखा। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

5. घुटन
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हमें ज़मीन चाहिए,
सारा आसमान तुम रख लो। 

हमें संविधान चाहिए,
गीता कुरान तुम रख लो। 

हमें रोटी चाहिए 
आध्यात्म का ज्ञान तुम रख लो। 

हमें रोजगार चाहिए
व्रत और ध्यान तुम रख लो। 

हमें विचार चाहिए
ये  मूर्ति बेजान तुम रख लो। 

हमें क़लम चाहिए
ये तीर कमान तुम रख लो। 

हमें सम्मान चाहिए
ये क्रूर भगवान तुम रख लो। 

हमें इंसान चाहिए
ये जाति का भान तुम रख लो। 

हमें आजादी चाहिए
अपनी संस्कृति महान तुम रख लो। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

6. फ़तह
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लड़की हूँ कोई लकड़ी नहीं
जो  चूल्हे   में  तारी   जाऊँ। 

मेरी कोख, महीने मेरे
मैं ही क्यों मारी जाऊँ? 

सावित्री, शेख़  की   बेटी   हूँ
कलम से सब पर भारी जाऊँ। 

पांडवों की द्रौपदी नहीं 
जो जुए में  हारी जाऊँ। 

मैं फुले की सावित्री हूँ 
ज्ञान संग ब्याही जाऊँ। 

स्वीकार  नहीं  देवी  होना
कि पतिव्रता पुकारी जाऊँ। 

मैं पाथर नहीं  अहिल्या  सी
जो पुरुष पाँव से तारी जाऊँ। 

उनसे  कह  दो   आदत   बदलें
मैं कब तक बदलती सारी जाऊँ। 

मैं आज की सावित्री फुले हूँ
फ़ातिमाओं पर  वारी  जाऊँ। 

लड़की हूँ कोई लकड़ी नहीं
जो  चूल्हे  में   तारी   जाऊँ...

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

7. तरजीह
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देखना मुझे चीर कर
किसी कद्दू की तरह
अंदर की असीम बदबू को छोड़
नाक सिकोड़
चुनना उन बीजों को
और रोप देना उन खलाए आँतों में
जहाँ रोटी पेट भरने से पहले
आँत के हर मोड़ पर
चालान सी कटती जाती है.. 

देखना मुझे काट कर
किसी आम की तरह
अंदर की छोटी गुठली
बचा कर रखना
दिखाना आगे वाली पीढी को
कि सबकी गुठली एक सी होती है
बस किसी की छोटी
तो किसी की थोड़ी बड़ी होती है।  
गुज्झों का अचार बनाना है या अमहर
ये लोगों की जरूरत से तय हो
ये सब एक सहज प्रक्रिया के तहत हो
न किसी की हार,न किसी की जय हो। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

देहदान की प्रक्रिया पूरी हुई,आप भी कर सकते हैं अच्छा रहेगा.. 🌱🙏

8. आजाद भक्त
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भगत सिंह का चोला ओढ़े
कितने भगत निकल गए

भीम के जयकारे वाले
गदा हाथ ले निकल गए

कितने फूल ज्योतिबा वाले
मंदिर चौखट निकल गए

बुद्ध को सिर पर ढोने वाले
शंख लेकर निकल गए

ऑपरेशन थिएटर वाले
जंतर लेकर निकल गए

अवसरवादी कान लगाए
मंतर लेकर निकल गए

हम डफली के रह गए गुलाम
वो आजादी लेकर निकल गए... 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

बड़ा वाला🍭

9. एक फूल,फूलन सी
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उसका कहना है कि वही औरत शरीफ  होती  है
रहती घूँघट में,पहचान जिसकी शौहर से होती है... 

उससे कह दो शरीफ तो शरीफ ही होती है
पहचान असल में उड़ान और पर से होती है। 

उसका कहना है उसकी पूजा जग में होती है
जिसकी जुबान पुरुषों के हद में होती है...

उससे कह दो,तो खुद को भी पूजवा ले इस तरह
शायद महसूस हो, आजादी किस ज़द में होती है। 

उसका कहना है कि अच्छी औरत पकड़ में होती है
रात बिस्तर और दिन भर जो घर में होती है... 

उससे कह दो हुकूमत के दिन अब लद ही गए
फूल,फूलन अब,गमलों में नही,बीहड़ में होती है। 

उसका कहना है कि नारी वही जो नरम होती है
जिसका गहना ही लाज-लज्जा,शरम होती है... 

उससे कह दो-क्या ये ठेका सिर्फ हमने लिया? 
इन्हीं बेहयाई के खिलाफ तो नारी रण में होती है। 

~ बच्चा लाल 'उन्मेष'

#Phulandevi💐💐🙏

('कौन जात हो भाई' कविता संग्रह से..)

10. सुदामा
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हम इस क़दर लेट गए
सुदामा सब समेट गए। 

गायें सब उनकी हुईं
खूंटे में हमें लपेट गए। 

भरती रही उनकी झोली 
हमारे खाली पेट गए। 

इक्के सब उनके हिस्से
वे पत्ते ऐसे फेट गए। 

अब देने को बचा ही क्या
ले हर दफ़ा ही भेंट गए। 

हम हिरण सा दिल लिए
वे खेलते आखेट गए। 

~ बच्चा लाल 'उन्मेष'

11. सरनेम
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सरनेम वो आभासी मक्खी है

जो बनी बनाई दाल को भी

खराब कर देता है। 

दाल उपेक्षित रह जाती है

बनाने वाले की मेहनत

बरबाद चली जाती है।

जो पौष्टिक ही थी

उनकी बल बुद्धि के लिए

पर उड़ेल दी जाती है

वर्ण शुद्धि के लिए। 

मक्खी को जिंदा देख 

सब आँखें मूंद लेते हैं

असल में कुत्ते मक्खी नहीं

जाति सूंघ लेते हैं। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

(आज 'जूठन' पढ़ने के बाद ...🥀 )

12. जोड़ियाँ
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जोड़ियाँ ऊपर से बन कर आती हैं
और ऊपर वाला 'जनेऊ' से। 

घोड़ियां मारी जाती हैं धूप से
और चढ़ने वाला, ठाकुरों के बूट से। 

जब बात उठती है सरनेम की
डो़रियां टूट जाती हैं प्रेम की 

क्योंकि.. 

जोड़ियाँ ऊपर से बनकर आती हैं
और ऊपर वाला 'जनेऊ' से। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस💐

13. कविता रोटी नहीं बन सकती
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कविता रोटी नहीं बन सकती, पाठकों की
मगर बन सकती है संवाद,मूक नाटकों की
जिसे अंधे बन,देखे जा रहे थे
गूंगे बन,फेके जा रहे थे।

कविता हल नहीं बन सकती, किसानों की
मगर बहला सकती है दिल,मेहमानों की
जिससे एक वक्त की रोटी बचायी जा सके
और अपने वफ़ादार जानवरों को भी खिलाई जा सके।

कविता रंगीन साड़ी नहीं बन सकती,किसी बेवा की
जिसने तन मन धन से, पूरे घर की सेवा की
पर बन सकती है एकाकी जीवन की हमदम
दूर कर सकती है कुछ आँसू,उसके कुछ गम।

कविता तलवार नहीं बन सकती, योद्धाओं की
मगर बन सकती है ताक़त, उनके भुजाओं की
जिसे देखा जा सकता है युद्ध के मैदानों में
वीर रस से उफनते गानों में।

कविता फ़स्ल नहीं बन सकती, खेतों की
मगर सवाल कर सकती है,खाली पेटों की
जिसे साहूकार ऐंठे जा रहे हैं
गरीब फुटपात पर लेटे जा रहे हैं।

कविता आग नहीं बन सकती, चूल्हों की
मगर लोरी बन साथ दे सकती है झूलों की
जिससे बच्चे को भूखे पेट सुलाया जा सके
कुछ देर और,फुसलाया जा सके।

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

'छिछले प्रश्न गहरे उत्तर' कविता संग्रह से
विश्व कविता दिवस 💐

14. अपनी कठौती खोज रे
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तुलसी के गोद में बैठकर,रैदास की बात न किया करो
मरुभूमि में लेट कर,प्यास की बात न किया करो। 

जिनका तन-मन जीवन निर्झर,निर्मल पावन भाव रहा,
उस रैदास के आंगन,गंगा घाट की बात न किया करो। 

यह रैदास का चर्म खाट है,देख सभा को तन जाएगा
तुलसी के दोहों में 'एक खाट' की बात न किया करो। 

बने रहना  श्रेष्ठ-निम्न,बस मानस के उन श्लोकों में
रैदास की कुटिया में हो तो, जूठा पानी पिया करो। 

कितने आए रैदास यहां पर,आए आकर चले गए
अब भी प्रश्न वहीं खड़ा,ये जात-पात न किया करो। 

मानो तो देव नहीं तो पत्थर,यह कथन बड़ा छलावा है
आंखों पर खुद बांध के पट्टी,दिन को रात न किया करो। 

सत्य की राह आसान बनाऊं,आओ सूत्र बतालाऊं मैं
सफर से उपजे पांवों में,छालों को याद न किया करो। 

सिद्धांतों पर जीना सीखो,सीखो  उसूलों पर चलना
टूटे-बिखरे व्रत से खुद ही,खुद पर घात न किया करो। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

('कौन जात हो भाई' कविता संग्रह से.. ) 

पुरखा को शत् शत् नमन!! 💐🌹🙏

15. खुद से पूछो
---------------
सबका   पेट   भरे   गर   ईश्वर
जो मरे भूख से, क़ातिल कौन?

मंदिर, मस्जिद  तुम  कमाओ
और कहो फिर, शातिर  कौन?

तख़्त-ए-ताऊस, ले  बैठे  हो
न  हमसे  पूछो, नादिर  कौन?

देखो  खुद  ही  लड़ता   यहाँ 
एक रोटी  के,  ख़ातिर  कौन?

हक़  मारा  है  जिसने  इतना
तुम  नहीं  तो  आख़िर  कौन?

शहरों को जगह देने के लिए
जंगल में हुआ दाख़िल कौन?

शहनाई, तबला गूंजे घर-घर
कहते तो बिस्मिल्ला,ज़ाकिर कौन?

इंसाँ भी  हो  या  केवल  जाति
खुद से पूछो, हो आख़िर कौन?

~ बच्चा लाल 'उन्मेष'

16. कुर्ते का नाप
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निजाम उधर मस्त है
अवाम इधर  पस्त है, 
विकास बेटे को पेचिश
उल्टी और दस्त है। 

सम्मान में नहीं खड़ी
मंचों के नीचे भीड़, 
युवा बेरोजगार-बेबस
लगा रहा गश्त है।

मिलेगा इस बार भी
आश्वासन इक नया, 
सरकार तो बस यही
देने में अभ्यस्त है। 

अब के नेता का कद 
पजामे सा हो गया, 
जो कुर्ते का नाप बस
देने में व्यस्त है। 

छिपकली की पूँछ सा
बढ़ न आए अंगूठा, 
इस डर से अबका द्रोण
मांगा पूरा हस्त है। 

तोड़ूँगा पूरी बुनियाद
महलों का गुरुर भी, 
शोषण की निर्बाध व्यवस्था
करनी आज ध्वस्त है। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

17. बभनौटी मीडिया
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उनकी ज़बाँ नहीं होती है
जिनकी पूंछे होती हैं, 
सहलाते ही सिहरे जो 
वो आज़ादी खोती है। 

कुछ स्वाभिमान भी होता है
नहीं जीवन सिर्फ एक रोटी है, 
मिर्ची उसे कहाँ लगेगी
जहाँ मीडिया खुद ही तोती है। 

जो लिए लोहा,सलाखों में गए
दोगलों के गले में मोती है, 
खादी वालों का हर दाग़
मीडिया लंगोट तक धोती है। 

विश्वास की जमीन पर जो
झूठ की फसल बोती है, 
जनता महज़ भेड़ उसकी
पंचसालिया ऊँन ढोती है। 

जाति गणना कितनी बुरी
ये देश की बड़ी चुनौती है, 
वो हमें सच दिखाने बैठे
जहाँ पूरी मीडिया बभनौटी है। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

18. कइसा धरम? 
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कइसा धरम बनाया रे मानुष! 
कइसा धरम बनाया रे... 

तुम जन चोटीयन की पैदाइश
हम जन एड़ीयन जाया रे? 

कइसा धरम बनाया रे मानुष! 
कइसा धरम बनाया रे... 

हमरे पुश्त सात मरी गईलें
बिन खाए आंत खल गईलें
पुरखन खेतन में जल गईलें
तुम जले हौ हमारी छाया रे। 

कइसा धरम बनाया रे मानुष! 
कइसा धरम बनाया रे... 

हमरी गगरिया चुल्हवन तक धावै
बिनी चदरिया देह लगावै
फिर हमरे अछूत कईसे हो गईलें
तोहरे जन देव की काया रे। 

कइसा धरम बनाया रे मानुष! 
कइसा धरम बनाया रे...

स्वर्ग में ठेले मरत समइया
खा गये धूरत गाढ़ी कमईया
द्रव्य से दानपत्री घर लईलें
और कहे जग माया रे। 

कइसा धरम बनाया रे मानुष! 
कइसा धरम बनाया रे...

हमरे छाले छालन में फूटै
कारखानन में हड्डी तक टूटै
करि जाँगर कै नसबंदी
उ दान का बछिया पाया रे। 

कइसा धरम बनाया रे मानुष! 
कइसा धरम बनाया रे...

एगो पिंजरा सोने का मढी के
राम जाप कराया रे
कउवा बन आचार्य जगत में 
तोते को शागिर्द बनाया रे।

कइसा धरम बनाया रे मानुष! 
कइसा धरम बनाया रे... 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

19. सुर्ख़ाब के पर
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जरा सा हम कड़े क्या हुए
तुम्हारी प्रगतिशीलता, दम तोड़ दी? 

यही थी तुम्हारी बगावत की आँधी
मिला आसमां तो, जमीं छोड़ दी? 

बस जाति का अंतर था तुझमे और हममें
सुर्ख़ाब की पाँखें,खुद में ही जोड़ दी? 

तुम्हें पानी न पीना पड़े सोच कर
हमने अब वो मटकी बनानी ही छोड़ दी। 

उन्हें हर जगह सब हरा ही दिखा
जिन्होंने अपने सच की आँखें फोड़ दी। 

हमारी तो चाहत थी तुम्हें गले लगाएं
तुमने ही आख़िर,अपनी बाँहें मोड़ दी। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

20. ईश्वर की सत्ता, सत्ता का ईश्वर
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ईश्वर वो कर्जा है
जिसे ग़रीब आजीवन भरता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर वो परदा है
जो बेबस को नंगा करता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर वो बरधा है
जो हाड़ चबाया करता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर वो गरदा है
जो सपने धूमिल करता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर वो मरदा है
जो स्त्रियों पर ज़ुल्म करता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर कोरा परचा है
जिसे नाहक़ भरना पड़ता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर ईजाद किया वो सत्ता है
जो मज़लूमों का शोषण करता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर झूठा दरजा है
जो तर्क से हमेशा डरता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर चंद लोगों का भत्ता है
जो कामचोरी करता है और बेगारी में मरता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर भगवा कत्था है
जो हरे को ख़ूनी करता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर वो ठर्रा है
जो ज़ेब को ढ़ीली करता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर वो पत्ता है
जो डाली से बग़ावत करता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर इतना सस्ता है
जिसे ज़ेब में पंडा रखता है
सत्ता की तरह!

ईश्वर ऐसा धंधा है
जिस पर ग्राहक मरता है 
सत्ता की तरह!

~बच्चा लाल 'उन्मेष'

('कौन जात हो भाई' कविता संग्रह से...) 

"ईश्वर यदि होता तो वो अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले नास्तिकों को पैदा नहीं करता।"

― पेरियार रामास्वामी नायकर
     
हमारे नायक 😌🙏🌹

#स्मृति_दिवस

21. राख में आग
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पश्मीना बकरी के माफ़िक ,हम खाल होते हैं
उनके शाल के लिए नंगे,हम हर साल होते हैं। 

दरे जाते हैं जो चक्की में, हम पूरे पांच साल
उनके पेट के  लिए  हम  वही, दाल  होते  हैं। 

उनके ख़ातिर ही तो रात दिन, बुने जाते हैं हम
वो मछुआरे हमारे और हम उनके जाल होते हैं। 

अब इंच में नहीं, समय में नापा जायेगा इसे
वो उभरे पेट से,तो हम बैठे हुए गाल होते हैं। 

बस दस्तूर है कहने का कि सब ठीक है,वरना
हमारे हाल तो हर हाल में बस,बदहाल होते हैं। 

झूलते आए हैं वो डाल कर,जिस पेड़ पर झूला
उनकी मौज़ के ख़ातिर, हम वही डाल होते  हैं। 

कितने मर गए हमारे,बस इस कोरी उम्मीद में
कि इसी अदालत से सुख भी, बहाल होते  हैं। 

लड़ते हैं वही लड़ाई,जिन्हें खोने को कुछ नहीं
वही शख़्सियत ही तो आख़िरी कमाल होते है। 

जला सकते हो तुम फिर से, बुझते हुए दिये
बुझी राख में भी,छिपे हुए कुछ आग होते हैं। 

~बच्चा लाल 'उन्मेष'



Wednesday, 20 March 2024

इलेक्टोरल बोंड



इलेक्टोरल बोंड के मुद्दे पर भाजपा और नरेंद्र मोदी बुरी तरह फंस चुके हैं। मामला कारपोरेट से चंदा लेने का नहीं है , वह तो सभी पार्टियां लेती हैं, मामला चंदा मिलने के पहले और बाद उन कारपोरेट के खिलाफ छापा जांच और ठेके देने का है।

यह शुद्ध रूप से घूस है , भ्रष्टाचार है , धमकी देकर वसूली करना है।

पत्रकार आनंद वर्धन सिंह के शब्दों में पहले पार्टियों को "नज़राना" मिलता था अर्थात लोग नेताओं और पार्टियों को अपनी खुशी से कुछ ना कुछ चंदा दे दिया करते थे ,,

फिर चलने लगा "शुकराना" अर्थात किसी का काम करा दिया तो वह कोई तोहफा चंदे के रूप में दे दिया करता था ,

फिर शुरू हुआ "मेहनताना", अर्थात नेता और मंत्री काम कराने का पैसा लेने लगे, 

और अब 2014 के बाद से चल रहा है "जबराना" अर्थात दोगे नहीं तो ईडी , आईटी और सीबीआई से छापा मरवाकर वसूल लेंगे।

अरुण जेटली ने जबरन वसूली के इस खेल को गुप्त रखने के लिए ही "इलेक्टोरल बांड" जैसी व्यवस्था लागू की जो कांग्रेस द्वारा लागू की गई व्यवस्था RTI द्वारा ध्वस्त होकर सामने आ गयी।

दरअसल लूटमार के इस खेल को गुप्त रखने के लिए ही केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को इलेक्टोरल बोंड बेचने का अधिकार दिया गया, सभी बैंक यह करते तो भ्रष्टाचार और लूट लीक होने का खतरा था। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में इसीलिए चुन कर ऐसे भ्रष्ट ओर दलाल को चेयरमैन बनाया जो यस मैन थे। इस पूरी लूट खसोट और फिरौती में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भी शामिल है।

फ़िर भी भक्तों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा , वह देश के बर्बाद और तमाम लूट खसोट की कीमत पर सिर्फ मुस्लिमो  को टाईट होते देखना चाहते हैं।

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तुम मुझे चंदा दो
 
मैं तुम्हें ठेका दूंगा 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के इस नारे को भाजपा ने दूसरे तरीके से अपना लिया है।

मेघा इंजीनियरिंग ऐंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (MEIL) ने अप्रैल 2023 को ₹140 करोड़ के इलेक्टोरल बांड खरीदे और इसके ठीक एक महीने बाद ही ठाणे- बोरीवली ट्विन टनल का ₹14000 करोड़ का प्रोजेक्ट मिल गया।

कमीशन हुआ 1%

इसी कंपनी का टीवी9 दिन भर हिंदू मुस्लिम के बीच घृणा फैलाता रहता है।


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Tuesday, 12 March 2024

भारतीय चुनाव, 2024 की निगरानी पर स्वतंत्र पैनल: (पूर्वावलोकन)

PRESS RELEASE                                            11 March, 2024

Introducing Independent Panel on Monitoring Indian Elections, 2024 [IPMIE]

 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहां संसद का आम चुनाव करीब (अप्रैल-मई, 2024) है। जैसा कि ज्ञात है "चुनाव" और "लोकतंत्र" शब्द पर्यायवाची बन गये हैं। 1948 के मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में कहा गया है: "लोगों की इच्छा सरकार के अधिकार का आधार होगी; यह इच्छा आवधिक और वास्तविक चुनावों में व्यक्त की जाएगी जो सार्वभौमिक और समान मताधिकार द्वारा होंगे और गुप्त मतदान या समकक्ष स्वतंत्र मतदान प्रक्रियाओं द्वारा आयोजित किए जाएंगे।

भारत में ज़मीनी हालात ने देश के भीतर चिंता और उबाल पैदा कर दिया है। स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से मतदान करने के अधिकार के साथ नागरिक किसी भी लोकतंत्र के केंद्र में है। वर्तमान में, भारतीय मतदाताओं के बीच चिंता यह है कि यह प्रक्रिया (मतदान की प्रक्रिया) खतरे में है। वर्तमान परिदृश्य खेल के मैदान की असमानता को उजागर करता है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के अधिकार के विरुद्ध है, और लोगों की इच्छा में बाधा डालने का जोखिम उठाता है।

ऐसे कई कारक हैं जो भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को खतरे में डालते हैं। लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के इस्तेमाल का विरोध किया है और विशेष रूप से पेपर बैलेट की वापसी की मांग की है। विपक्षी दलों ने भी इस मांग को दोहराया है. कई क्षेत्रों से सार्वभौमिक मताधिकार के अधिकार से इनकार और मतदाता बहिष्कार की संभावना की भी सूचना मिली है। इन विसंगतियों के मूल में भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की विफलता है, जो कई हलकों से तीखी आलोचना का विषय रहा है, जो दर्शाता है कि देश में कई मतदाताओं ने चुनाव का संचालन करने वाली प्रमुख संस्था पर भरोसा खो दिया है।

बढ़ती चिंता

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, देश और विश्व स्तर पर पर्यवेक्षकों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि क्या चुनावी प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष होगी। मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त ने हाल ही में इसे रेखांकित किया, "नागरिक स्थान पर प्रतिबंध - मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और कथित आलोचकों को निशाना बनाया गया - साथ ही नफरत भरे भाषण और अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव।"

इसी संदर्भ में IPMIE भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने और चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए चुनाव पर नागरिक आयोग (सीसीई) के काम को आगे बढ़ाता है। सीसीई (CCE), भारत की चुनावी प्रक्रिया की अखंडता और पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए समर्पित एक गैर-पक्षपातपूर्ण संगठन है, जिसने 2019 के संसदीय चुनाव में अपनाई गई मतदान प्रक्रिया पर विस्तार से विचार किया है और कई निष्कर्ष निकाले हैं। सीसीई के पास चुनाव सुधार की वकालत करने और देश भर में चुनावी प्रक्रियाओं का निरीक्षण करने का एक समृद्ध इतिहास है। इसका पहला सार्वजनिक हस्तक्षेप देश में 2019 के आम चुनाव के चुनाव आयोग के आचरण पर चिंता व्यक्त करना था। तब से, कठोर अनुसंधान, विश्लेषण और वकालत के माध्यम से, मतदाता दमन, मशीन वोटिंग/गिनती, चुनावी धोखाधड़ी और अभियान वित्तपोषण में पारदर्शिता जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए लगातार प्रयास किया गया है।


सीसीई के काम के आधार पर, 2024 के चुनाव की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र पैनल मॉनिटरिंग इंडियन इलेक्शन (आईपीएमआईई) की स्थापना की गई है। चुनाव पर नागरिक आयोग के पूर्व समन्वयक एम जी देवसहायम द्वारा परिकल्पित इस पैनल में बहुराष्ट्रीय पृष्ठभूमि और लोकतंत्र, राजनीति विज्ञान, चुनाव प्रबंधन और चुनावी निगरानी के क्षेत्र में विशेषज्ञता वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हैं।

स्वतंत्र पैनल इन चुनावों के सभी पहलुओं की बारीकी से निगरानी करेगा, जिसमें मतदाता पंजीकरण, मतदान और गिनती प्रणाली/प्रक्रिया, प्रचार, नैतिक मतदान और आदर्श आचार-संहिता का कार्यान्वयन शामिल है। यह प्रक्रिया में निहित किसी भी अनियमितता या दुराचार को उजागर करेगा और उनके तत्काल सुधार की वकालत करेगा। इसका लक्ष्य चुनावों का निरीक्षण करना, रिपोर्ट प्रकाशित करना और चिंताओं को उठाना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी रहें, लोकतंत्र के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करें और भारतीय नागरिकों के चुनावी अधिकारों की रक्षा करें।

मॉनिटरिंग पैनल राजनीतिक दलों, चुनाव अधिकारियों, नागरिक समाज संगठनों और मीडिया सहित सभी हितधारकों से चुनावी प्रक्रिया की अखंडता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने में सहयोग करने का आह्वान करता है। यह सभी नागरिकों से इन चुनावों में सक्रिय रूप से भाग लेने और जिम्मेदारी से मतदान के अपने अधिकार का प्रयोग करने का भी आग्रह करता है।

उसका मानना ​​है कि साथ मिलकर काम करने से भारत के संविधान में निहित लोकतांत्रिक आदर्शों को बरकरार रखा जाएगा और भारतीय लोकतंत्र की नींव मजबूत होगी।

जारी करने की तारीख: शुक्रवार, 15 मार्च, 2024 समय: शाम 7.00 बजे IST ऑनलाइन

Release of Pre-Election Report

Zoom Link:  https://zoom.us/j/98870720511?pwd=MlMwRXFRaUQrelBuZDhmZ0xWN1M0Zz09


For media inquiries or further information, please contact: Phone: +91-9940174446

Email: IPMIElections@gmail.com

 Website: https://indiaelectionmonitor.org/



भारत के चुनावों की निगरानी - एक पूर्वावलोकन

'भारत के चुनावी लोकतंत्र के लिए स्पष्ट और वर्तमान ख़तरा' [एम.जी. देवसहायम, समन्वयक, चुनाव पर नागरिक आयोग]


स्वीडन में गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के वी-डेम (वेरायटीज ऑफ डेमोक्रेसी) इंस्टीट्यूट की 2023 की रिपोर्ट में भारत को "पिछले 10 वर्षों में सबसे खराब निरंकुश लोगों में से एक" के रूप में संदर्भित किया गया है और भारत को निचले 40-50 प्रतिशत में रखा गया है। इसके उदार लोकतंत्र सूचकांक पर दुनिया के  देशों में  भारत नाइजीरिया से भी नीचे 97वें स्थान पर था। भारत चुनावी लोकतंत्र सूचकांक में 108वें और समतावादी घटक सूचकांक में 123वें स्थान पर है। 2021 में, वी-डेम इंस्टीट्यूट ने भारत को 'चुनावी निरंकुशता' के रूप में वर्गीकृत किया, जबकि उसी वर्ष, वाशिंगटन स्थित गैर-लाभकारी संस्था, फ्रीडम हाउस ने भारत को "आंशिक रूप से स्वतंत्र" के रूप में सूचीबद्ध किया। इस बीच, उसी वर्ष, इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने अपनी 'ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी' रिपोर्ट में भारत को पीछे खिसकने वाले लोकतंत्र और "प्रमुख गिरावट वाले" के रूप में वर्गीकृत किया।


दुनिया "चुनाव" और "लोकतंत्र" को पर्यायवाची मानने लगी है और समय पर चुनावों के भारत के ट्रैक रिकॉर्ड ने इसकी लोकतांत्रिक राजनीति और इसमें सत्ता के पदों पर उभरे राजनेताओं को वैधता प्रदान की है। इसके परिणामस्वरूप भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को भी काफी प्रतिष्ठा मिली है। हालाँकि, कड़वी सच्चाई यह है कि भारत की चुनावी प्रणाली और ईसीआई अतीत के गौरव का आनंद ले रहे हैं। इसकी वर्तमान ईमानदारी और कार्यरीति ऐसे अनुकूल मूल्यांकन को झुठलाती  है।

ECI एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है। वास्तव में, संविधान सभा चाहती थी कि चुनावी प्रक्रिया स्वतंत्र हो और उसने पुष्टि की कि विधायी निकायों के चुनावों की विश्वसनियता और स्वतंत्रता के हित में, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि ईसीआई कार्यपालिका के किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से मुक्त हो। यह संविधान के अनुच्छेद 324 की उत्पत्ति थी जिसके आधार पर स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने की महती जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए ईसीआई की स्थापना की गई थी।

हाल ही में, जैसा कि स्वतंत्र पर्यवेक्षकों ने नोट किया है, ईसीआई अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने में विफल रहा है। 2 जुलाई 2019 को, उस वर्ष हुए आम चुनावों के तुरंत बाद, संवैधानिक आचरण समूह (सीसीजी) से जुड़े कई पूर्व वरिष्ठ सिविल सेवकों और सशस्त्र बलों के दिग्गजों, शिक्षाविदों और पत्रकारों ने ईसीआई को कड़े शब्दों में एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया: "2019 के सामान्य चुनाव से ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव पिछले तीन दशकों में देश में हुए सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में से एक रहे हैं... इन आम चुनावों में यह धारणा घर कर गई है कि हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को उसकी पवित्रता की रक्षा करने के लिए सशक्त संवैधानिक प्राधिकार द्वारा विकृत और कमजोर किया जा रहा है। अतीत में ईसीआई की निष्पक्षता, स्वतन्त्रता और क्षमता के बारे में कोई गंभीर संदेह उठाया जाना दुर्लभ था। दुर्भाग्य से, वर्तमान ईसीआई और जिस तरह से उसने आम चुनाव-2019 का संचालन किया है, उसके बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। इसमें कहा गया है कि "हमारा चुनाव आयोग भारी तार्किक चुनौतियों और लाखों मतदाताओं के बावजूद स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की अपनी क्षमता के लिए विकसित देशों सहित पूरी दुनिया के लिए ईर्ष्या का विषय हुआ करता था।" उसके ख़त्म होने की प्रक्रिया को देखना वाकई दुखद है। यदि यह जारी रहता है, तो यह निश्चित रूप से संविधान के मूल आधार  पर हमला करेगा जो भारत के लोगों ने गर्व से खुद को दिया है,  भारत का संविधान - और लोकतांत्रिक लोकाचार जो भारतीय गणराज्य का आधार है…"


ईसीआई ने इस पत्र को स्वीकार करने की भी जहमत नहीं उठाई। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता में मार्च, 2020 में गठित चुनाव पर नागरिक आयोग (सीसीई) ने चुनावों की निष्पक्षता पर सीधा असर करने वाले छह विषयों को उठाया: 

  1. कोई भी मतदाता छूट न जाए, यह सुनिश्चित करना होगा इसलिए मतदाता सूची की सत्यनिष्ठा और समावेशिता सुनिश्चित हो 

  2. ईवीएम/वीवीपीएटी और लोकतंत्र सिद्धांतों और अंत-से-अंत सत्यापन के साथ उनका अनुपालन।

  3. चुनावी राजनीति का अपराधीकरण और चुनावी बॉन्ड सहित धन शक्ति की भूमिका।

  4. चुनाव का शेड्यूल और प्रक्रियाएं तथा आदर्श आचार संहिता का अनुपालन।

  5. सोशल मीडिया, फर्जी समाचार सहित मीडिया की भूमिका और समान अवसर पर उनका प्रभाव।

  6. ईसीआई की स्वायत्तता और चुनाव से पहले, उसके दौरान और बाद में उसका कामकाज।

रिपोर्ट क्रमशः जनवरी और मार्च 2021 में दो खंडों में प्रस्तुत की गईं

(https://constitutionalconduct.files.wordpress.com/2021/04/citizens-commission-on-elections-vol.-i.pdf and https://constitutionalconduct.files.wordpress.com/2021/04/citizens-commission-on-elections-vol.ii_.pdf)


भारत के लगभग 75 वर्षों के चुनावी इतिहास में, यह पहली बार था कि भारतीय चुनावों की प्रक्रिया और अखंडता की इतनी आलोचनात्मक जांच की गई। अध्ययन किए गए सभी अनिवार्य विषयों पर, भारत की चुनावी प्रणाली और ईसीआई की कार्यप्रणाली खराब रोशनी में उभरी, जिससे देश में चुनावी लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर असर पड़ा। फिर भी ईसीआई ने यह कहना जारी रखा कि चुनावी प्रणाली स्वस्थ है। इसे दोहराते हुए, यह स्पष्ट रूप से भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा प्रदर्शित अज्ञानता का फायदा उठा रहा है, जो गहराई से विश्लेषण करने में अपनी विफलता के कारण भारत की चुनावी प्रणाली की प्रशंसा करना जारी रखता है।


चार साल बाद, 19 अगस्त 2023 को, सीसीजी ने फिर से ईसीआई को विशिष्ट सुझाव देते हुए लिखा: "हमने पिछले पांच वर्षों में ईसीआई के साथ आमने-सामने बैठकें की हैं। ईसीआई के साथ हमारे संचार ने विशिष्ट चुनावी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें धन और बाहुबल के दुरुपयोग, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दुरुपयोग, निंदनीय और घृणास्पद कृत्यों द्वारा आदर्श आचार संहिता के गंभीर उल्लंघनों से संबंधित उपचारात्मक कार्रवाई की मांग की गई है। भाषण, मतदाताओं के पंजीकरण की प्रक्रिया में खामियां और वास्तविक चुनाव प्रक्रिया के दौरान वोटों की रिकॉर्डिंग और गिनती के संबंध में अस्पष्टता…। आपके पूर्व सहकर्मियों के रूप में, हमें खेद है कि आपने हमारे सुझावों पर चर्चा करने के लिए हमसे बातचीत करना आवश्यक नहीं समझा।''


पिछले कुछ वर्षों में, देश की चुनावी प्रणाली की कमजोरियों और विफलताओं को न केवल सीसीजी और सीईई द्वारा, बल्कि राजनीतिक दलों, विद्वानों और स्वतंत्र पत्रकारों द्वारा भी उजागर किया गया है। उनमें से कुछ मुद्दे नीचे दिये गए है :

ईवीएम/वीवीपीएटी मतदान/मतगणना आवश्यक 'लोकतंत्र सिद्धांतों' का अनुपालन नहीं करती है - कि प्रत्येक मतदाता को यह सत्यापित कर पाये  कि उसका वोट इच्छानुसार डाला गया है, दर्ज किया गया है और दर्ज किया गया है और गिना गया है। हालाँकि सभी ईवीएम एक वीवीपीएटी (वोटर-वेरिफ़िएबल पेपर ट्रेल) डिवाइस से लैस हैं, लेकिन उन्हें केवल 'बायोस्कोप' तक सीमित कर दिया गया है जो मतदाता को सात सेकंड के लिए एक छोटी 'पेपर स्लिप' दिखाता है जो फिर गायब हो जाती है और उसकी गिनती नहीं की जाती है। निष्कर्ष असंदिग्ध था. शुरू से अंत तक सत्यापन की अनुपस्थिति के कारण, वर्तमान ईवीएम/वीवीएपीएटी प्रणाली वोट डालने को सत्यापन योग्य नहीं बनाती है और इसलिए लोकतांत्रिक चुनावों के लिए अनुपयुक्त है।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 324(1) ईसीआई में निहित है "संसद और हर राज्य के विधानमंडल के सभी चुनावों और चुनावों के लिए मतदाता सूची की तैयारी और संचालन का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण।" राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के लिए"। पहले की पेपर बैलेट प्रणाली के तहत, चुनाव के पूरे संचालन पर ईसीआई का 'नियंत्रण' था, लेकिन ईवीएम प्रणाली के तहत यह निगरानी पूरी तरह से खत्म हो गई है। इसलिए वर्तमान ईवीएम प्रणाली के तहत होने वाले चुनाव भी असंवैधानिक माने जा सकते हैं।

* मतदाताओं की मतदाता सूची में, विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों और वंचित समूहों के मतदाताओं के नाम कई बार मनमाने ढंग से हटाए और मिटाए गए हैं। यह मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है जिसके आधार पर चुनाव कराए जाते हैं। मतदाता सूची में मनमाने ढंग से नाम हटाने और जोड़ने को लेकर विवाद मीडिया रिपोर्टों और मौखिक तौर पर सामने आते रहते हैं।

ईसीआई ने सक्रिय रूप से चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक को पारित करने में मदद की है जो मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रयास करता है। यह उपाय लगभग निश्चित रूप से सत्तारूढ़ दलों सहित निहित स्वार्थों के लिए मतदाता सूची में हेरफेर के लिए द्वार खोल देगा। हालाँकि इसे एक 'स्वैच्छिक' कदम के रूप में तैयार किया गया है, लेकिन ईसीआई अधिकारियों द्वारा मतदाताओं को इस तरह के जुड़ाव के लिए मजबूर करने की खबरें सामने आई हैं। इसके साथ ही, आधार कार्डों को बड़े पैमाने पर 'निष्क्रिय' किया गया है, जिससे यह आशंका पैदा हो गई है कि वास्तविक मतदाताओं को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है और फर्जी मतदाताओं को भी शामिल किया जा सकता है।

* आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) और मीडिया आचार संहिता के कार्यान्वयन में गंभीर उल्लंघनों के कई नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं, जिनमें सांप्रदायिक और विभाजनकारी कार्यों में योगदान देना शामिल है जो मतदान प्रक्रिया को विकृत और ख़राब करते हैं। एमसीसी का कार्यान्वयन अनिवार्य रूप से सत्तारूढ़ दल और प्रधान मंत्री के पक्ष में झुक गया है। मुख्यधारा के मीडिया - प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों - सत्तारूढ़ दल के लिए प्रचार माध्यम बन गए हैं और उनकी रिपोर्ट और टिप्पणियाँ सत्तारूढ़ दल के पक्ष में भारी रूप से झुकी हुई हैं। सत्ता-समर्थक सोशल मीडिया, विशेष रूप से सत्तारूढ़ पार्टी के सूचना प्रौद्योगिकी सेल को बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार फैलाने के लिए सक्रिय किया गया है।

सत्तारूढ़ दल नागरिक समाज कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार रक्षकों और राजनीतिक विपक्ष को डराने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग जैसी प्रवर्तन एजेंसियों को जुटा रहा है। हाल के एक उदाहरण में, प्रमुख विपक्षी दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बैंक खाते आयकर विभाग द्वारा फ्रीज कर दिए गए, जिससे उसकी कार्यरीति मे अराजकता फैलाई गई।

निष्कर्ष

9,000 से अधिक मतदाताओं ने ईवीएम, मतदाता सूची और चुनावी फंडिंग की गंभीर बुराइयों को दूर करने के लिए ईसीआई को एक हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपा है [https://www.change.org/p/ecisveep-eci-must-implement-its-constitutional-mandate- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना]। 


इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग पर मांग स्पष्ट है: "ईवीएम/वीवीपीएटी मतदान आवश्यक 'लोकतंत्र सिद्धांतों' का अनुपालन नहीं करता है - कि ईवीएम प्रत्येक मतदाता को यह सत्यापित करने में सक्षम होना चाहिए कि उसका वोट इच्छानुसार डाला गया है, दर्ज किया गया है और गिना गया है- जैसा कि दर्ज किया गया है। हालाँकि ECI ने सभी ईवीएम को VVPAT-डिवाइस से लैस करने की व्यवस्था की है, लेकिन "वोटर-वेरिफ़िएबल पेपर ट्रेल" को 'बायोस्कोप' के स्तर तक सीमित कर दिया गया है जो सात सेकंड के लिए एक छोटी 'पेपर स्लिप' के रूप में दिखाई देता है। फिर गायब हो जाता है. इसकी गिनती नहीं की जाती. इसलिए वीवीपीएटी प्रणाली को पूरी तरह से मतदाता-सत्यापन योग्य बनाने के लिए पुन: अंशांकित किया जाना चाहिए। वोट को वैध बनाने के लिए एक मतदाता को वीवीपैट पर्ची अपने हाथ में रखनी चाहिए और उसे चिप-मुक्त मतपेटी में डालना चाहिए। परिणाम घोषित होने से पहले सभी निर्वाचन क्षेत्रों के लिए इन वीवीपैट पर्चियों की भी पूरी गिनती की जानी चाहिए। इस प्रयोजन के लिए, वीवीपैट पर्चियों का आकार बड़ा होना चाहिए और उन्हें इस तरह से मुद्रित किया जाना चाहिए कि उन्हें कम से कम पांच वर्षों तक संरक्षित किया जा सके।

विपक्षी दलों के INDIA ब्लॉक ने 18 दिसंबर, 2023 को अपनी बैठक में इसी तर्ज पर एक प्रस्ताव अपनाया: "इंडिया पार्टियां दोहराती हैं कि ईवीएम की कार्यप्रणाली की सत्यता पर कई संदेह हैं। इन्हें कई विशेषज्ञों और पेशेवरों ने भी उठाया है। मतपत्र प्रणाली की वापसी की व्यापक मांग है... यदि मतपत्र के माध्यम से मतदान की वापसी होती है तो भारत की पार्टियाँ "खुश" होंगी... यदि ईसीआई को कोई आपत्ति है, तो हाइब्रिड मतपत्र-ईवीएम का होना संभव और वांछनीय है 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रणाली... इसमें सुझाव दिया गया कि वीवीपैट पर्ची को बॉक्स में गिराने के बजाय, इसे मतदाता को सौंप दिया जाना चाहिए, जो अपनी पसंद को सत्यापित करने के बाद इसे एक अलग मतपेटी में रखेगा। फिर वीवीपैट पर्चियों की 100% गिनती की जानी चाहिए।

चिंता की बात यह है कि ईसीआई द्वारा इस मुद्दे से जुड़ने से इंकार करना सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पत्रों, शिकायतों, अभ्यावेदनों, ज्ञापनों और यहां तक ​​कि वैधानिक आवेदनों और अपीलों को स्वीकार करने से इनकार करने तक पहुंच जाता है। इससे यह धारणा बढ़ती जा रही है कि ईसीआई वर्तमान सरकार के अधीन होता जा रहा है और अपनी स्वतंत्रता और स्वायत्तता खो रहा है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति अधिनियम, 2023 के पारित होने से इस प्रक्षेपवक्र का और अधिक सबूत मिला है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए इसकी तटस्थता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के बजाय, ईसीआई को भारत के लोगों की तुलना में कार्यपालिका के प्रति अधिक आभारी बनाया जा रहा है। यह कानून ईसीआई को प्रधान मंत्री कार्यालय का एक आभासी विस्तार बनाने का प्रभाव डाल सकता है।

एक और परेशान करने वाला पहलू यह है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के प्रति उदासीन प्रतीत होता है। हालाँकि इसने सत्तारूढ़ प्रतिष्ठान को इस असंवैधानिक माध्यम से छह वर्षों में भारी धन इकट्ठा करने की अनुमति देने के बाद चुनावी बॉन्ड योजना को देर से रद्द कर दिया है, लेकिन यह अब तक दो पहलुओं की जांच करने में विफल रही है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन के लिए और भी महत्वपूर्ण हैं: ईवीएम मतदान/मतगणना और मतदाता सूची। उत्तरार्द्ध पर अदालत ने एक कमज़ोर निर्णय दिया जिसका कोई उद्देश्य पूरा नहीं हुआ; पूर्व में इसने व्यापक रूप से तैयार की गई रिट याचिकाओं और बार-बार की दलीलों के बावजूद मामले को सुनने और फैसला देने से लगातार इनकार कर दिया है।

भारत के चुनावी लोकतंत्र के लिए स्पष्ट और वर्तमान खतरा है, जो पहले से ही गहरी उथल-पुथल में है, जिससे सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं क्योंकि पूरे भारत में लोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और कागजी मतपत्रों की वापसी की मांग के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। विपक्षी दलों का INDIA गठबंधन भी उन विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो गया है जिन्हें सरकार द्वारा दबाया जा रहा है और मीडिया द्वारा ब्लैक आउट किया जा रहा है, हालांकि यूट्यूब पर स्वतंत्र प्रसारकों सहित सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस मुद्दे को उठाया है। कुल मिलाकर इन घटनाक्रमों से संकेत मिलता है कि इस देश में चुनाव तेजी से सार्वजनिक जांच के दायरे में आ रहे हैं और उनकी विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह खुलेआम व्यक्त किए जा रहे हैं।


आज 2024 का आम चुनाव सामने है, जिसकी अधिसूचना आने वाले हफ्तों में जारी होने की संभावना है। 10 साल की तीव्र सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे देश के प्रधान मंत्री ने संसद के भीतर और बाहर घोषणा की है कि उनकी पार्टी 543 सीटों वाले सदन में दो-तिहाई बहुमत जीतेगी - एक ऐसा दावा जो अपने आप में अखंडता पर सवाल उठाता है। चुनावी प्रक्रिया का.

हमारे सामने सवाल यह है: यदि दुनिया के सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले लोकतंत्र को "सबसे खराब निरंकुश" बनने की अनुमति दी गई, तो भारत और दुनिया दोनों के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? यह अरबों मतदाताओं का प्रश्न है जिसे यहीं और अभी पूछा और उत्तर दिया जाना चाहिए।

१९५३ में स्टालिन की शव यात्रा पर उमड़ा सैलाब 

*On this day in 1953, a sea of humanity thronged the streets for Stalin's funeral procession.* Joseph Stalin, the Soviet Union's fea...