1. छिछले प्रश्न गहरे उत्तर*
कौन जात हो भाई?
"दलित हैं साब!"
नहीं मतलब किसमें आते हो? /
आपकी गाली में आते हैं
गन्दी नाली में आते हैं
और अलग की हुई थाली में आते हैं साब!
मुझे लगा हिन्दू में आते हो!
आता हूं न साब! पर आपके चुनाव में।
क्या खाते हो भाई?
"जो एक दलित खाता है साब!"
नहीं मतलब क्या-क्या खाते हो?
आपसे मार खाता हूं
कर्ज़ का भार खाता हूं
और तंगी में नून तो कभी अचार खाता हूं साब!
नहीं मुझे लगा कि मुर्गा खाते हो!
खाता हूं न साब! पर आपके चुनाव में।
क्या पीते हो भाई?
"जो एक दलित पीता है साब!
नहीं मतलब क्या-क्या पीते हो?
छुआ-छूत का गम
टूटे अरमानों का दम
और नंगी आंखों से देखा गया सारा भरम साब!
मुझे लगा शराब पीते हो!
पीता हूं न साब! पर आपके चुनाव में।
क्या मिला है भाई
"जो दलितों को मिलता है साब!
नहीं मतलब क्या-क्या मिला है?
ज़िल्लत भरी जिंदगी
आपकी छोड़ी हुई गंदगी
और तिस पर भी आप जैसे परजीवियों की बंदगी साब!
मुझे लगा वादे मिले हैं!
मिलते हैं न साब! पर आपके चुनाव में।
क्या किया है भाई?
"जो दलित करता है साब!
नहीं मतलब क्या-क्या किया है?
सौ दिन तालाब में काम किया
पसीने से तर सुबह को शाम किया
और आते जाते ठाकुरों को सलाम किया साब!
मुझे लगा कोई बड़ा काम किया!
किया है न साब! आपके चुनाव का प्रचार..।
2.हिंदू राष्ट्र में हम कहाँ?
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आपके हिंदू राष्ट्र में चमार कहाँ रहेंगे?
हमारी जूती के नीचे, मरी गायों के पीछे
अकेला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में अहीर कहाँ रहेंगे?
हमारे महल के पीछे, बाग बगियन के नीचे
तबेला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में गडेरिया कहाँ रहेंगे?
हमारी ऊनी गद्दी के नीचे, अपने भेड़ों के पीछे
रेला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में भंगी कहाँ रहेंगे?
हमारे नालों के नीचे, हमारे पैखानों के पीछे
हेला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में नाई कहाँ रहेंगे?
हमारी मूँछ के नीचे, बढ़े नाखून के पीछे
थैला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में लोहार कहाँ रहेंगे?
हमारे तवा के नीचे, अपनी फुकनी के पीछे
चैला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में धोबी कहाँ रहेंगे?
हमारे मोजा के नीचे, उड़ते रेह के पीछे
मैला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में कोइरी कहाँ रहेंगे?
हमारे जूठन के नीचे, हमारे खेतन के पीछे
ढेला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में माली कहाँ रहेंगे?
हमारी बगिया के पीछे, उगे काँटों के नीचे
ठेला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में चौरसिया कहाँ रहेंगे?
हमारे दाँत के नीचे, बस पान के पीछे
मेला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में कुर्मी कहाँ रहेंगे?
हमारे कोल्हू के नीचे, हमारे बैलों के पीछे
पतेला में रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में केवट कहाँ रहेंगे?
धुले पाँव के नीचे,राजा राम के पीछे
बन के चेला रहेंगे!
आपके हिंदू राष्ट्र में औरतें कहाँ रहेंगी?
हम पुरुषों के नीचे और घूँघट के पीछे
चूल्हा में रहेंगी!
आपके हिंदू राष्ट्र में आप कहाँ रहेंगे?
तुम्हारे गर्दन के नीचे, तुम्हारे हक़ के पीछे
इसी खेला में रहेंगे!
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
3. जाप
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आपको ऊपर वाला देगा
हमें आप दो।
जुकाम आपका दूर होगा
हमें भाप दो।
जब पूल कहीं गिरे
हमें ढांप दो।
जहाँ श्रेय की बात आए
हमें छाप दो।
स्वर्ग आपका,पर ज़मीं
हमें नाप दो।
जहाँ भी खाली बैठो
हमें जाप दो।
हमारे चिलम को लहकाओ
हमें ताप दो।
हमने श्रम का कब खाया?
हमें तो आप दो।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
4. नहीं देखा
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कभी किसी पुजारी को
मूरत गढ़ते नहीं देखा,
जो गढ़ता आया उसका कभी
पेट भरते नहीं देखा।
देवता तो पत्थर था
पत्थर ही रहा आख़िर,
किसी भी सूरत में उसे
कभी पिघलते नहीं देखा।
कोई काम छोटा नहीं
सोच छोटी होती है,
ऐसा कहने वालों को
नालों में उतरते नहीं देखा।
देखा है हमने श्रमिकों के
हाथों में भरे फफोले,
कभी किसी मालिक को
दुःख में हाथ धरते नहीं देखा।
आने वाली नस्लों को ये
एक-एक चर जाएंगे,
देखा है सिर्फ फूलते साँड़
एक भी फलते नहीं देखा।
जब भी देखा,हँसते देखा
मैंने अपने यार को,
सर्पिले वाणी वालों को
सीधे डसते नहीं देखा।
लड़ते देखा,मरते देखा
ख़ून-ख़राबा करते देखा,
हथियार उठाने वालों को
कभी पढ़ते नहीं देखा।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
5. घुटन
------
हमें ज़मीन चाहिए,
सारा आसमान तुम रख लो।
हमें संविधान चाहिए,
गीता कुरान तुम रख लो।
हमें रोटी चाहिए
आध्यात्म का ज्ञान तुम रख लो।
हमें रोजगार चाहिए
व्रत और ध्यान तुम रख लो।
हमें विचार चाहिए
ये मूर्ति बेजान तुम रख लो।
हमें क़लम चाहिए
ये तीर कमान तुम रख लो।
हमें सम्मान चाहिए
ये क्रूर भगवान तुम रख लो।
हमें इंसान चाहिए
ये जाति का भान तुम रख लो।
हमें आजादी चाहिए
अपनी संस्कृति महान तुम रख लो।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
6. फ़तह
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लड़की हूँ कोई लकड़ी नहीं
जो चूल्हे में तारी जाऊँ।
मेरी कोख, महीने मेरे
मैं ही क्यों मारी जाऊँ?
सावित्री, शेख़ की बेटी हूँ
कलम से सब पर भारी जाऊँ।
पांडवों की द्रौपदी नहीं
जो जुए में हारी जाऊँ।
मैं फुले की सावित्री हूँ
ज्ञान संग ब्याही जाऊँ।
स्वीकार नहीं देवी होना
कि पतिव्रता पुकारी जाऊँ।
मैं पाथर नहीं अहिल्या सी
जो पुरुष पाँव से तारी जाऊँ।
उनसे कह दो आदत बदलें
मैं कब तक बदलती सारी जाऊँ।
मैं आज की सावित्री फुले हूँ
फ़ातिमाओं पर वारी जाऊँ।
लड़की हूँ कोई लकड़ी नहीं
जो चूल्हे में तारी जाऊँ...
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
7. तरजीह
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देखना मुझे चीर कर
किसी कद्दू की तरह
अंदर की असीम बदबू को छोड़
नाक सिकोड़
चुनना उन बीजों को
और रोप देना उन खलाए आँतों में
जहाँ रोटी पेट भरने से पहले
आँत के हर मोड़ पर
चालान सी कटती जाती है..
देखना मुझे काट कर
किसी आम की तरह
अंदर की छोटी गुठली
बचा कर रखना
दिखाना आगे वाली पीढी को
कि सबकी गुठली एक सी होती है
बस किसी की छोटी
तो किसी की थोड़ी बड़ी होती है।
गुज्झों का अचार बनाना है या अमहर
ये लोगों की जरूरत से तय हो
ये सब एक सहज प्रक्रिया के तहत हो
न किसी की हार,न किसी की जय हो।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
देहदान की प्रक्रिया पूरी हुई,आप भी कर सकते हैं अच्छा रहेगा.. 🌱🙏
8. आजाद भक्त
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भगत सिंह का चोला ओढ़े
कितने भगत निकल गए
भीम के जयकारे वाले
गदा हाथ ले निकल गए
कितने फूल ज्योतिबा वाले
मंदिर चौखट निकल गए
बुद्ध को सिर पर ढोने वाले
शंख लेकर निकल गए
ऑपरेशन थिएटर वाले
जंतर लेकर निकल गए
अवसरवादी कान लगाए
मंतर लेकर निकल गए
हम डफली के रह गए गुलाम
वो आजादी लेकर निकल गए...
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
बड़ा वाला🍭
9. एक फूल,फूलन सी
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उसका कहना है कि वही औरत शरीफ होती है
रहती घूँघट में,पहचान जिसकी शौहर से होती है...
उससे कह दो शरीफ तो शरीफ ही होती है
पहचान असल में उड़ान और पर से होती है।
उसका कहना है उसकी पूजा जग में होती है
जिसकी जुबान पुरुषों के हद में होती है...
उससे कह दो,तो खुद को भी पूजवा ले इस तरह
शायद महसूस हो, आजादी किस ज़द में होती है।
उसका कहना है कि अच्छी औरत पकड़ में होती है
रात बिस्तर और दिन भर जो घर में होती है...
उससे कह दो हुकूमत के दिन अब लद ही गए
फूल,फूलन अब,गमलों में नही,बीहड़ में होती है।
उसका कहना है कि नारी वही जो नरम होती है
जिसका गहना ही लाज-लज्जा,शरम होती है...
उससे कह दो-क्या ये ठेका सिर्फ हमने लिया?
इन्हीं बेहयाई के खिलाफ तो नारी रण में होती है।
~ बच्चा लाल 'उन्मेष'
#Phulandevi💐💐🙏
('कौन जात हो भाई' कविता संग्रह से..)
10. सुदामा
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हम इस क़दर लेट गए
सुदामा सब समेट गए।
गायें सब उनकी हुईं
खूंटे में हमें लपेट गए।
भरती रही उनकी झोली
हमारे खाली पेट गए।
इक्के सब उनके हिस्से
वे पत्ते ऐसे फेट गए।
अब देने को बचा ही क्या
ले हर दफ़ा ही भेंट गए।
हम हिरण सा दिल लिए
वे खेलते आखेट गए।
~ बच्चा लाल 'उन्मेष'
11. सरनेम
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सरनेम वो आभासी मक्खी है
जो बनी बनाई दाल को भी
खराब कर देता है।
दाल उपेक्षित रह जाती है
बनाने वाले की मेहनत
बरबाद चली जाती है।
जो पौष्टिक ही थी
उनकी बल बुद्धि के लिए
पर उड़ेल दी जाती है
वर्ण शुद्धि के लिए।
मक्खी को जिंदा देख
सब आँखें मूंद लेते हैं
असल में कुत्ते मक्खी नहीं
जाति सूंघ लेते हैं।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
(आज 'जूठन' पढ़ने के बाद ...🥀 )
12. जोड़ियाँ
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जोड़ियाँ ऊपर से बन कर आती हैं
और ऊपर वाला 'जनेऊ' से।
घोड़ियां मारी जाती हैं धूप से
और चढ़ने वाला, ठाकुरों के बूट से।
जब बात उठती है सरनेम की
डो़रियां टूट जाती हैं प्रेम की
क्योंकि..
जोड़ियाँ ऊपर से बनकर आती हैं
और ऊपर वाला 'जनेऊ' से।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस💐
13. कविता रोटी नहीं बन सकती
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कविता रोटी नहीं बन सकती, पाठकों की
मगर बन सकती है संवाद,मूक नाटकों की
जिसे अंधे बन,देखे जा रहे थे
गूंगे बन,फेके जा रहे थे।
कविता हल नहीं बन सकती, किसानों की
मगर बहला सकती है दिल,मेहमानों की
जिससे एक वक्त की रोटी बचायी जा सके
और अपने वफ़ादार जानवरों को भी खिलाई जा सके।
कविता रंगीन साड़ी नहीं बन सकती,किसी बेवा की
जिसने तन मन धन से, पूरे घर की सेवा की
पर बन सकती है एकाकी जीवन की हमदम
दूर कर सकती है कुछ आँसू,उसके कुछ गम।
कविता तलवार नहीं बन सकती, योद्धाओं की
मगर बन सकती है ताक़त, उनके भुजाओं की
जिसे देखा जा सकता है युद्ध के मैदानों में
वीर रस से उफनते गानों में।
कविता फ़स्ल नहीं बन सकती, खेतों की
मगर सवाल कर सकती है,खाली पेटों की
जिसे साहूकार ऐंठे जा रहे हैं
गरीब फुटपात पर लेटे जा रहे हैं।
कविता आग नहीं बन सकती, चूल्हों की
मगर लोरी बन साथ दे सकती है झूलों की
जिससे बच्चे को भूखे पेट सुलाया जा सके
कुछ देर और,फुसलाया जा सके।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
'छिछले प्रश्न गहरे उत्तर' कविता संग्रह से
विश्व कविता दिवस 💐
14. अपनी कठौती खोज रे
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तुलसी के गोद में बैठकर,रैदास की बात न किया करो
मरुभूमि में लेट कर,प्यास की बात न किया करो।
जिनका तन-मन जीवन निर्झर,निर्मल पावन भाव रहा,
उस रैदास के आंगन,गंगा घाट की बात न किया करो।
यह रैदास का चर्म खाट है,देख सभा को तन जाएगा
तुलसी के दोहों में 'एक खाट' की बात न किया करो।
बने रहना श्रेष्ठ-निम्न,बस मानस के उन श्लोकों में
रैदास की कुटिया में हो तो, जूठा पानी पिया करो।
कितने आए रैदास यहां पर,आए आकर चले गए
अब भी प्रश्न वहीं खड़ा,ये जात-पात न किया करो।
मानो तो देव नहीं तो पत्थर,यह कथन बड़ा छलावा है
आंखों पर खुद बांध के पट्टी,दिन को रात न किया करो।
सत्य की राह आसान बनाऊं,आओ सूत्र बतालाऊं मैं
सफर से उपजे पांवों में,छालों को याद न किया करो।
सिद्धांतों पर जीना सीखो,सीखो उसूलों पर चलना
टूटे-बिखरे व्रत से खुद ही,खुद पर घात न किया करो।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
('कौन जात हो भाई' कविता संग्रह से.. )
पुरखा को शत् शत् नमन!! 💐🌹🙏
15. खुद से पूछो
---------------
सबका पेट भरे गर ईश्वर
जो मरे भूख से, क़ातिल कौन?
मंदिर, मस्जिद तुम कमाओ
और कहो फिर, शातिर कौन?
तख़्त-ए-ताऊस, ले बैठे हो
न हमसे पूछो, नादिर कौन?
देखो खुद ही लड़ता यहाँ
एक रोटी के, ख़ातिर कौन?
हक़ मारा है जिसने इतना
तुम नहीं तो आख़िर कौन?
शहरों को जगह देने के लिए
जंगल में हुआ दाख़िल कौन?
शहनाई, तबला गूंजे घर-घर
कहते तो बिस्मिल्ला,ज़ाकिर कौन?
इंसाँ भी हो या केवल जाति
खुद से पूछो, हो आख़िर कौन?
~ बच्चा लाल 'उन्मेष'
16. कुर्ते का नाप
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निजाम उधर मस्त है
अवाम इधर पस्त है,
विकास बेटे को पेचिश
उल्टी और दस्त है।
सम्मान में नहीं खड़ी
मंचों के नीचे भीड़,
युवा बेरोजगार-बेबस
लगा रहा गश्त है।
मिलेगा इस बार भी
आश्वासन इक नया,
सरकार तो बस यही
देने में अभ्यस्त है।
अब के नेता का कद
पजामे सा हो गया,
जो कुर्ते का नाप बस
देने में व्यस्त है।
छिपकली की पूँछ सा
बढ़ न आए अंगूठा,
इस डर से अबका द्रोण
मांगा पूरा हस्त है।
तोड़ूँगा पूरी बुनियाद
महलों का गुरुर भी,
शोषण की निर्बाध व्यवस्था
करनी आज ध्वस्त है।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
17. बभनौटी मीडिया
--------------------
उनकी ज़बाँ नहीं होती है
जिनकी पूंछे होती हैं,
सहलाते ही सिहरे जो
वो आज़ादी खोती है।
कुछ स्वाभिमान भी होता है
नहीं जीवन सिर्फ एक रोटी है,
मिर्ची उसे कहाँ लगेगी
जहाँ मीडिया खुद ही तोती है।
जो लिए लोहा,सलाखों में गए
दोगलों के गले में मोती है,
खादी वालों का हर दाग़
मीडिया लंगोट तक धोती है।
विश्वास की जमीन पर जो
झूठ की फसल बोती है,
जनता महज़ भेड़ उसकी
पंचसालिया ऊँन ढोती है।
जाति गणना कितनी बुरी
ये देश की बड़ी चुनौती है,
वो हमें सच दिखाने बैठे
जहाँ पूरी मीडिया बभनौटी है।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
18. कइसा धरम?
---------------
कइसा धरम बनाया रे मानुष!
कइसा धरम बनाया रे...
तुम जन चोटीयन की पैदाइश
हम जन एड़ीयन जाया रे?
कइसा धरम बनाया रे मानुष!
कइसा धरम बनाया रे...
हमरे पुश्त सात मरी गईलें
बिन खाए आंत खल गईलें
पुरखन खेतन में जल गईलें
तुम जले हौ हमारी छाया रे।
कइसा धरम बनाया रे मानुष!
कइसा धरम बनाया रे...
हमरी गगरिया चुल्हवन तक धावै
बिनी चदरिया देह लगावै
फिर हमरे अछूत कईसे हो गईलें
तोहरे जन देव की काया रे।
कइसा धरम बनाया रे मानुष!
कइसा धरम बनाया रे...
स्वर्ग में ठेले मरत समइया
खा गये धूरत गाढ़ी कमईया
द्रव्य से दानपत्री घर लईलें
और कहे जग माया रे।
कइसा धरम बनाया रे मानुष!
कइसा धरम बनाया रे...
हमरे छाले छालन में फूटै
कारखानन में हड्डी तक टूटै
करि जाँगर कै नसबंदी
उ दान का बछिया पाया रे।
कइसा धरम बनाया रे मानुष!
कइसा धरम बनाया रे...
एगो पिंजरा सोने का मढी के
राम जाप कराया रे
कउवा बन आचार्य जगत में
तोते को शागिर्द बनाया रे।
कइसा धरम बनाया रे मानुष!
कइसा धरम बनाया रे...
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
19. सुर्ख़ाब के पर
----------------
जरा सा हम कड़े क्या हुए
तुम्हारी प्रगतिशीलता, दम तोड़ दी?
यही थी तुम्हारी बगावत की आँधी
मिला आसमां तो, जमीं छोड़ दी?
बस जाति का अंतर था तुझमे और हममें
सुर्ख़ाब की पाँखें,खुद में ही जोड़ दी?
तुम्हें पानी न पीना पड़े सोच कर
हमने अब वो मटकी बनानी ही छोड़ दी।
उन्हें हर जगह सब हरा ही दिखा
जिन्होंने अपने सच की आँखें फोड़ दी।
हमारी तो चाहत थी तुम्हें गले लगाएं
तुमने ही आख़िर,अपनी बाँहें मोड़ दी।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
20. ईश्वर की सत्ता, सत्ता का ईश्वर
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ईश्वर वो कर्जा है
जिसे ग़रीब आजीवन भरता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर वो परदा है
जो बेबस को नंगा करता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर वो बरधा है
जो हाड़ चबाया करता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर वो गरदा है
जो सपने धूमिल करता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर वो मरदा है
जो स्त्रियों पर ज़ुल्म करता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर कोरा परचा है
जिसे नाहक़ भरना पड़ता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर ईजाद किया वो सत्ता है
जो मज़लूमों का शोषण करता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर झूठा दरजा है
जो तर्क से हमेशा डरता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर चंद लोगों का भत्ता है
जो कामचोरी करता है और बेगारी में मरता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर भगवा कत्था है
जो हरे को ख़ूनी करता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर वो ठर्रा है
जो ज़ेब को ढ़ीली करता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर वो पत्ता है
जो डाली से बग़ावत करता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर इतना सस्ता है
जिसे ज़ेब में पंडा रखता है
सत्ता की तरह!
ईश्वर ऐसा धंधा है
जिस पर ग्राहक मरता है
सत्ता की तरह!
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
('कौन जात हो भाई' कविता संग्रह से...)
"ईश्वर यदि होता तो वो अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले नास्तिकों को पैदा नहीं करता।"
― पेरियार रामास्वामी नायकर
हमारे नायक 😌🙏🌹
#स्मृति_दिवस
21. राख में आग
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पश्मीना बकरी के माफ़िक ,हम खाल होते हैं
उनके शाल के लिए नंगे,हम हर साल होते हैं।
दरे जाते हैं जो चक्की में, हम पूरे पांच साल
उनके पेट के लिए हम वही, दाल होते हैं।
उनके ख़ातिर ही तो रात दिन, बुने जाते हैं हम
वो मछुआरे हमारे और हम उनके जाल होते हैं।
अब इंच में नहीं, समय में नापा जायेगा इसे
वो उभरे पेट से,तो हम बैठे हुए गाल होते हैं।
बस दस्तूर है कहने का कि सब ठीक है,वरना
हमारे हाल तो हर हाल में बस,बदहाल होते हैं।
झूलते आए हैं वो डाल कर,जिस पेड़ पर झूला
उनकी मौज़ के ख़ातिर, हम वही डाल होते हैं।
कितने मर गए हमारे,बस इस कोरी उम्मीद में
कि इसी अदालत से सुख भी, बहाल होते हैं।
लड़ते हैं वही लड़ाई,जिन्हें खोने को कुछ नहीं
वही शख़्सियत ही तो आख़िरी कमाल होते है।
जला सकते हो तुम फिर से, बुझते हुए दिये
बुझी राख में भी,छिपे हुए कुछ आग होते हैं।
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
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