इलेक्टोरल बोंड के मुद्दे पर भाजपा और नरेंद्र मोदी बुरी तरह फंस चुके हैं। मामला कारपोरेट से चंदा लेने का नहीं है , वह तो सभी पार्टियां लेती हैं, मामला चंदा मिलने के पहले और बाद उन कारपोरेट के खिलाफ छापा जांच और ठेके देने का है।
यह शुद्ध रूप से घूस है , भ्रष्टाचार है , धमकी देकर वसूली करना है।
पत्रकार आनंद वर्धन सिंह के शब्दों में पहले पार्टियों को "नज़राना" मिलता था अर्थात लोग नेताओं और पार्टियों को अपनी खुशी से कुछ ना कुछ चंदा दे दिया करते थे ,,
फिर चलने लगा "शुकराना" अर्थात किसी का काम करा दिया तो वह कोई तोहफा चंदे के रूप में दे दिया करता था ,
फिर शुरू हुआ "मेहनताना", अर्थात नेता और मंत्री काम कराने का पैसा लेने लगे,
और अब 2014 के बाद से चल रहा है "जबराना" अर्थात दोगे नहीं तो ईडी , आईटी और सीबीआई से छापा मरवाकर वसूल लेंगे।
अरुण जेटली ने जबरन वसूली के इस खेल को गुप्त रखने के लिए ही "इलेक्टोरल बांड" जैसी व्यवस्था लागू की जो कांग्रेस द्वारा लागू की गई व्यवस्था RTI द्वारा ध्वस्त होकर सामने आ गयी।
दरअसल लूटमार के इस खेल को गुप्त रखने के लिए ही केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को इलेक्टोरल बोंड बेचने का अधिकार दिया गया, सभी बैंक यह करते तो भ्रष्टाचार और लूट लीक होने का खतरा था। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में इसीलिए चुन कर ऐसे भ्रष्ट ओर दलाल को चेयरमैन बनाया जो यस मैन थे। इस पूरी लूट खसोट और फिरौती में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भी शामिल है।
फ़िर भी भक्तों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा , वह देश के बर्बाद और तमाम लूट खसोट की कीमत पर सिर्फ मुस्लिमो को टाईट होते देखना चाहते हैं।
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तुम मुझे चंदा दो
मैं तुम्हें ठेका दूंगा
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के इस नारे को भाजपा ने दूसरे तरीके से अपना लिया है।
मेघा इंजीनियरिंग ऐंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (MEIL) ने अप्रैल 2023 को ₹140 करोड़ के इलेक्टोरल बांड खरीदे और इसके ठीक एक महीने बाद ही ठाणे- बोरीवली ट्विन टनल का ₹14000 करोड़ का प्रोजेक्ट मिल गया।
कमीशन हुआ 1%
इसी कंपनी का टीवी9 दिन भर हिंदू मुस्लिम के बीच घृणा फैलाता रहता है।
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