अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलिया
*कोकिल कूक रहही अमराई*
होली में हुड़दंग बहुत है,
कीचड़, कालिख, रंग बहुत है,
नया दौर-दिल तंग बहुत है,
और रंग में भंग बहुत है,
बचके रहना मेरे भाई।
रंगों में अब जहर भरे है,
लोग बाग सब डरे-डरे हैं,
मंहगाई के भी नखरे हैं,
क्या खायें सौ-सौ खतरे हैं,
नकली खोवा और मिठाई।
घर की गुंजिया-सेंवई खाना,
दही बड़ा, नमकीन चखाना,
हलवा, पूड़ी, खीर खिलाना ,
सबको आदर, प्रेम लुटाना,
होली खुशियों की हलवाई।
रंग अबीर-गुलाल लगाना,
राग भरा मन-मीत मिलाना,
कड़वी यादों को बिसराना,
लक्ष्य-लीन पग डगर बढ़ाना,
कोकिल कूक रही अमराई।
दिनांक-२८-०३-२०१३
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