Thursday, 28 March 2024

कोकिल कूक रहही अमराई

अमलदार नीहार
हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलिया 

*कोकिल कूक रहही अमराई*

होली में हुड़दंग बहुत है,
कीचड़, कालिख, रंग बहुत है,
नया दौर-दिल तंग बहुत है,
और रंग में भंग बहुत है, 
बचके रहना मेरे भाई।

रंगों में अब जहर भरे है,
लोग बाग सब डरे-डरे हैं, 
मंहगाई के भी नखरे हैं,
क्या खायें सौ-सौ खतरे हैं,
नकली खोवा और मिठाई।

घर की गुंजिया-सेंवई खाना,
दही बड़ा, नमकीन चखाना,
हलवा, पूड़ी, खीर खिलाना ,
सबको आदर, प्रेम लुटाना,
होली खुशियों की हलवाई।

रंग अबीर-गुलाल लगाना,
राग भरा मन-मीत मिलाना,
कड़वी यादों को बिसराना,
लक्ष्य-लीन पग डगर बढ़ाना,
कोकिल कूक रही अमराई।
दिनांक-२८-०३-२०१३

No comments:

Post a Comment

१९५३ में स्टालिन की शव यात्रा पर उमड़ा सैलाब 

*On this day in 1953, a sea of humanity thronged the streets for Stalin's funeral procession.* Joseph Stalin, the Soviet Union's fea...