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राज कुमार शाही
सदस्य, प्रगतिशील लेखक संघ, पटना।
गौरी लंकेश वामपंथी विचारधारा से प्रभावित एक सशक्त पत्रकार के रूप में कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका "गौरी लंकेश" की संपादक थीं। दक्षिणपंथी संगठनों खासकर आरएसएस और अन्य हिंदुत्व संगठनों के खिलाफ लगातार अपनी पत्रिका में उनके करतूतों को लेकर लिख रहीं थीं। साथ ही साथ सक्ता विरोधी एक सशक्त स्वर के रूप में प्रतिष्ठित थी जो हर तरह के शोषण और ज़ुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद कर एक मजबूत प्रतिरोध खड़ा कर दिया था।इसकी कीमत इन्हें अपनी जान गंवा कर चुकानी पड़ी। आज आप देख रहे हैं मौजूदा दौर में पत्रकारिता का क्या मतलब रह गया है? सक्ता संरक्षण में अपनी कलम गिरवी रख कर किस तरह की पत्रकारिता हो रही है? मुख्य धारा की मीडिया जिसे गोदी मीडिया के रूप में जाना जाने लगा है इस दौर में सक्ता से सवाल करना अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम है जिसका खामियाजा भुगतना आम बात है। इस संदर्भ में राजेश जोशी की यह पंक्तियां काफी मौजूं लगती है ----
"जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे
मारे जाएंगे,
कठघरे में खड़े कर दिए जाएंगे,जो विरोध में बोलेंगे,
जो सच-सच बोलेंगे मारे जाएंगे,
बर्दाश्त नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज हो,
'उनकी ' कमीज़ से ज्यादा सफेद,
कमीज़ पर जिनके दाग़ नहीं होंगे मारे जाएंगे "।
इस महान शख्सियत का जन्म 29 जनवरी 1962 ईस्वी को बंगलौर में लिंगायत परिवार में हुआ था इनके पिताजी पी लंकेश एक बड़े पत्रकार,कवि और कन्नड़ के प्रसिद्ध लेखक थे। इनके तीन संतानें गौरी, कविता एवं इंद्रजीत थी।गौरी लंकेश ने पत्रकारिता की शुरुआत बेंगलुरु के टाइम्स ऑफ इंडिया से शुरू किया इनकी शादी चिदानंद राजघट्टा से हुई शादी के बाद दिल्ली में रहने लगीं।2000 ईस्वी में पिताजी की मृत्यु हो गई उस समय दिल्ली में इनाडु के तेलगु चैनल में कार्यरत थीं। 'संडे मैगजीन' में संवाददाता के रूप में भी काम किया।पिता की मृत्यु के बाद अपने भाई इंद्रजीत के साथ मिलकर 'लंकेश पत्रिका' को संपादित किया इसके साथ ही साथ 'गैरी लंकेश साप्ताहिक पत्रिका' का संपादन किया। विचारधारा को लेकर मतभेद हुए नक्सली गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप लगा इस बीच भाई इंद्रजीत से मतभेद हुए और अपने विचारों से बिना समझौता किए लगातार दक्षिणपंथी संगठनों एवं आरएसएस के खिलाफ आवाज बुलंद करती रही। अपनी लेखनी से सरकार की नीतियों का विरोध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी अंततः 5 सितंबर 2017 को राजराजेश्वरी नगर बंगलौर में अपने घर के आगे अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।
इनके पार्थिव शरीर को खत्म कर दिया गया लेकिन इनके विचारों को वैसी शक्तियां खत्म नहीं कर सकते हैं आज मुख्य धारा के समानांतर विभिन्न वैकल्पिक मीडिया सरकार की कारपोरेट नीतियों के खिलाफ बेखौफ होकर अपना काम कर रही है। इसके लिए हर कुर्बानी देने वाले लोग भी आगे बढ़कर इनकी नीतियों का विरोध कर रहे हैं। राजेश जोशी की यह पंक्तियां काफी मौजूं है
"धकेल दिए जाएंगे कला की दुनिया से बाहर,
जो चारण नहीं,
जो गुण नहीं गाएंगे,मारे जाएंगे।
धर्म की ध्वजा उठाएं जो नहीं जाएंगे जुलूस में,
गोलियां भून डालेगी उन्हें, काफ़िर करार दिए जाएंगे,
सबसे बड़ा अपराध है इस समय
निहत्थे और निरपराधी होना,
जो अपराधी नहीं होंगे,
मारे जाएंगे "।
इसके बावजूद उम्मीद है कि हम लड़ेंगे और जीतेंगे मजदूर वर्ग अपनी चेतना को विकसित कर आने वाले दिनों में निर्णायक भूमिका में होगा। यहां फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की पंक्तियां काफी हद तक मौजूं है ----
"यूं ही हमेशा उलझती रही है जुल्म से ख़ल्क़,
न उनकी रस्म नई है,न अपनी रीत नई,
यूं ही हमेशा खिलायें हैं हमने आग में फूल,
न उनकी हार नई है,न अपनी जीत नई"।
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