1. नए साल की शुभ कामनाएं
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को
नए साल की शुभकामनाएं !
जाँते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नए साल की शुभकामनाएँ !
इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को
चौके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को
नए साल की शुभकामनाएँ !
वीराने जंगल को तारों को रात को
ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को
नए साल की शुभकामनाएँ !
कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को
हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को
नए साल की शुभकामनाएँ!
उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे
उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे
नए साल की शुभकामनाएँ!
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
2. तुझमें नयापन क्या है ?
ऐ नए साल बता, तुझमें नयापन क्या है
हर तरफ़ ख़ल्क़ ने क्यूँ शोर मचा रक्खा है
रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही
आज हम को नज़र आती है हर इक बात वही
आसमाँ बदला है, अफ़सोस, ना बदली है ज़मीं
एक हिंदसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं
अगले बरसों की तरह होंगे क़रीने तेरे
किस को मालूम नहीं बारह महीने तेरे
जनवरी, फ़रवरी और मार्च पड़ेगी सर्दी
और अप्रैल, मई, जून में होगी गर्मी
तेरा मन दहर में कुछ खोएगा, कुछ पाएगा
अपनी मीआद बसर कर के चला जाएगा
तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नयी
वरना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई
बे-सबब देते हैं क्यूँ लोग मुबारकबादें
ग़ालिबन भूल गए वक़्त की कड़वी यादें
तेरी आमद से घटी उम्र जहाँ में सब की
'फ़ैज़' ने लिक्खी है यह नज़्म निराले ढब की
- फ़ैज़ लुधियानवी
ख़ल्क़ = मानवता, हिंदसे = संख्या, जिद्दत = नया-पन, अगले = पिछले/गुज़रे हुए, क़रीने = क्रम, दहर = दुनिया, मीआद = मियाद/अवधि, बे-सबब = बे-वजह, ग़ालिबन = शायद, आमद = आना, ढब = तरीक़ा
3. नया साल मुबारक
तारीख
पंचांग में फंसा अंक नहीं
न वक्त घड़ी की सूइयों का
ज़रखरीद गुलाम
इनके वजूद की खातिर
सूरज को जलना पड़ता है
चलना पड़ता है पृथ्वी को
अनंत अनजान पथपर
अनवरत
ऐसे में कोई साल
लेटे लेटे या बैठे बैठे
नया हो जाए
बड़ी ख़ूबसूरत ख़ुशफहमी है
जो खोए हैं
उन्हें ख़ुशफ़हमी मुबारक
जो तैयार हैं
ख़ुद को खोने
और जग को पाने के लिए
उनके साथ मिलकर
चलो बनाते हैं
मनाते नहीं
एक नया कोरा महकता
इज़्ज़तदार साल
सिर उठाकर
मुट्ठियां तानकर
मुस्कुराते हुए
सिर्फ अपने लिए नहीं
पूरी कायनात के लिए
और निर्मल निश्छल निर्भय मन से
सबसे कहते हैं
यह नया साल मुबारक हो
हम सबको
-हूबनाथ
4. नया वर्ष
युवा दिलों के नाम
ज़िन्दा कौमों के नाम
साहसिक यात्राओं के नाम,
सक्रिय ज्ञान के नाम,
सच्चे प्यार के नाम,
मानवता के भविष्य में
उत्कट आस्था के नाम!
नया वर्ष
जो रचते हैं जीवन,
जीवन की बुनियादी शर्तें
उन मेहनतकश
सर्जक हाथों के नाम!
सृजन की नयी
परियोजनाओं के नाम!
नया वर्ष
सिर्फ़ सपने से होने वाली
नयी शुरुआत के नाम,
पराजय की राख से
जनमते संकल्पों के नाम,
अँधेरे समय में
जीवित ह्रदय की कविता के नाम!
नया वर्ष
नयी यात्रा के लिए उठे
पहले कदम के नाम,
बीजों और अंकुरों के नाम
कोंपलों और फुनगियों के नाम
उड़ने को आतुर
शिशु पंखों के नाम,
नयी उड़ानों के नाम!
दिशा छात्र संगठन
5. ये साल भी यारों बीत गया
कुछ खू़न बहा कुछ घर उजड़े
कुछ कटरे जल कर ख़ाक हुए
एक मस्जिद की ईंटों के तले
हर मसला दब कर दफ्न हुआ
जो ख़ाक उड़ी वह ज़ेहनो पर
यूं छायी जैसे कुछ भी नहीं
अब कुछ भी नहीं है करने को
घर बैठो डर कर अबके बरस
या जान गवां दो सड़कों पर
घर बैठ के भी क्या हासिल है
न मीर रहा न ग़ालिब हैं
न प्रेम के ज़िंदा अफ़साने
बेदी भी नहीं मंटो भी नहीं
जो आज की वहशत लिख डाले
चिश्ती भी नहीं, नानक भी नहीं
जो प्यार की वर्षा हो जाए
मंसूर कहां जो ज़हर पिए
गलियों में बहती नफ़रत का
वो भी तो नहीं जो तकली से
अब प्यार के ताने बुन डाले
क्यूं दोष धरो हो पुरखों पर
खु़द मीर हो तुम ग़ालिब भी तुम्हीं
तुम प्रेम का जि़न्दा अफ़साना
बेदी भी तुम्हीं, मंटो भी तुम्हीं
तुम आज की वहशत लिख डालो
चिश्ती की सदा, नानक की नवा
मंसूर तुम्हीं तुम बुल्लेशाह
कह दो के अनलहक़ जि़न्दा है
कह दो के अनहद अब गरजेगा
इस नुक़्ते विच गल मुगदी है
इस नुक़्ते से फूटेगी किरण
और बात यहीं से निकलेगी….
-गौहर रज़ा
6. सभी को नये वर्ष की शुभकामना
हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो
नई जिन्दगी एक मुकम्मल खुशी हो।
न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले,
हमारे दिलों की न सौदागरी हो।
ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई,
निगाहों में अपनी नई रोशनी हो।
न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन,
न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो।
नए फ़ैसले हों नई कोशिशें हों,
नई मंज़िलों की कशिश भी नई हो।
(गोरख पाण्डेय की कविता का कुछ अंश)
7. नव वर्ष
"नव वर्ष,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव !
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग !
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह !
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल !!"
... हरिवंशराय बच्चन
8. ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
रामधारी सिंह "दिनकर"
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