Saturday, 6 August 2022

(फादर स्टेन की मूल कविता 'प्रिज़न लाइफ -- अ ग्रेट लेवलर' का अनुवाद )



ज़िंदाँनों में सब बराबर हैं
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कैदखानों के अंदर
चंद रोज़मर्रा की 
जरूरियातों के अलावा
हर छोटी से छोटी 
चीज से महरूम
कर दिया जाता है

"तुम" को तरजीह दी जाने लगती है
और
"मैं" पसमंजर में 
चला जाता है
सभी जन 
"हम" की 
खुली फ़िज़ा में 
सांस लेने लगते हैं

ना कुछ मेरा
ना कुछ तेरा 
सब कुछ 
हमारा हो जाता है

जूठन  का एक कौर तक
ज़ाया नही जाता
बल्कि
हवा में तैरते
पंछियों के साथ 
साझा होता है
वे पंख फैलाए आते हैं
और 
अपने पेट की आग
बुझाकर सुदूर गगन में 
उड़ जाते हैं

कैदखाने में
इतने नौजवान चेहरों को 
देखकर दिल अफसुर्दा होता है
मैं  पूछता हूँ
"तुम्हारा कसूर?"
और
वे शब्दों का आडंबर रचाए बिना कहते हैं:
हरेक से
उसकी गुंजाईश
हरेक को 
उसकी जरूरत
के मुताबिक
ही तो समाजवाद है

यूँ समझो कि विवशता ने
इस समानता को गढ़ दिया है

वो मंज़र 
कितना खुशगवार होगा 
जब इंसान 
अपनी खुशी और मर्जी से
बराबरी को गले लगा पाएंगे
उस पल 
हम 
सही मायनों में 
धरती के 
लाल कहलायेंगे

***

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