प्रेमचंद का यह उद्धरण बहुत महत्वपूर्ण है आप भी पढ़ें
प्रेमचंद ने 1932 में 'सदगति' कहानी लिखी थी, जिस पर सत्यजीत राय ने फिल्म भी बनाई थी. जब यह कहानी छपी तब उन्हें 'ब्राह्मण द्वेषी' और 'घृणा का प्रचारक' तक कहा गया. अमृत राय के शब्दों में प्रेमचंद के
"इस लिखने में क्रोध था, कालकूट घृणा --क्योंकि वह रवींद्र नाथ (टैगोर) की तरह चाण्डालों के लिए बुद्ध की करुणा की याचना नहीं कर रहे थे, सामाजिक न्याय मांग रहे थे जो कि बिलकुल दूसरी चीज है. और सवर्ण हिन्दू अगर इस चीज को नहीं झेल या पचा सका तो उसका भी दोष नहीं है. मुंशी जी इस हमले से सिटपिटा जानेवाले आदमी नहीं थे, उसी महीने उन्होंने 'हंस' में जवाब दिया 'जीवन में घृणा का स्थान'."
उस जवाब का एक अंश निम्नवत है--
"निंदा ,क्रोध और घृणा यह सभी दुर्गुण है लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकाल दीजिये तो संसार नरक हो जायेगा .यह निंदा का ही भय है जो दुराचारियों पर अंकुश का काम करता है ,यह क्रोध ही है जो न्याय और सत्य की रक्षा करता है और यह घृणा ही है जो पाखंड और धूर्तता का दमन करती है ....घृणा स्वाभाविक मनोवृत्ति है और प्रकृति द्वारा आत्मरक्षा के लिए सिरजी गयी है .जिस वस्तु का जीवन में इतना मूल्य है उसे शिथिल होने देना अपने पाँव में कुल्हाडी मारना है .जरूरत इस बात की है कि हम घृणा का परित्याग करके उसे विवेक बना दें .इसका अर्थ यही है कि हम व्यक्तियों से घृणा न करके उनके बुरे आचरण से घृणा करें ...पाखंड ,धूर्तता ,अन्याय, बलात्कार और ऐसी ही अन्य दुष्प्रवृतियों के प्रति हमारे अन्दर जितनी ही प्रचंड घृणा हो उतनी ही कल्याणकारी होगी ..
जीवन में जब घृणा का इतना महत्व है तो साहित्य कैसे उसकी उपेक्षा कर सकता है ."----प्रेमचंद
(१९३२ में लिखित 'जीवन में घृणा का स्थान 'लेख से .)
वरिष्ठ आलोचक और समीक्षक वीरेंद्र यादव के फेसबुक वॉल से
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