अब बात करते हैं इस्लाम की। 1400 साल पहले, जब इस्लाम का जन्म हुआ था, तब इसने कुछ सामाजिक सुधारों की शुरुआत की थी। माना जाता है कि इस्लाम में महिलाओं की स्थिति अन्य धर्मों में महिलाओं की स्थिति से बहुत ऊंची थी। इस्लाम ने महिलाओं को संपत्ति रखने, शादी करने और तलाक लेने का कानूनी अधिकार दिया। समुदाय में उसकी स्थिति काफी हद तक किसी पुरुष के समकक्ष थी और उसके कर्मों से निर्धारित होती थी। इस्लाम की शुरुआत में, महिलाएँ ज्ञान प्राप्त करती थीं, तथा चिकित्सा और युद्ध के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करती थीं। हालाँकि, समय बीतने के साथ जहाँ जहाँ भी इस्लाम फैला, इसने उन देशों की स्थानीय संस्कृतियों से बहुत कुछ ग्रहण किया, और इसका दृष्टिकोण भी बदलता गया। इस्लाम ने पितृसत्तात्मक मूल्यों की संस्कृति को अपनाया और इसमें महिलाओं को हीन तथा दोयम दर्जे का नागरिक मान लिया गया, और यही मूल्य आने वाली पीढ़ियों में आते गए, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू हिंसा को पुरुष के अपने आश्रितों पर नियंत्रण के अधिकार के रूप में सहन किया जाने लगा। इस तरह आज दुनिया के अधिकांश देशों में इस्लाम अशिक्षित या अर्ध-शिक्षित मौलानाओं (उलेमाओं या मुफ़्तियों) की पितृसत्तात्मक व्याख्या है। इस व्याख्या में अन्य धर्मों और संस्कृतियों के सभी नकारात्मक प्रभावों को शामिल है। आज की तस्वीर इस्लाम के शुरुआती समय से बहुत अलग है। आइए देखें कि आंकड़े हमें क्या बताते हैं।
सितंबर 2000 की एमनेस्टी इंटरनेशनल रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब में आम तौर पर महिलाओं के खिलाफ बहुत बड़े पैमाने पर भेदभाव तथा उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन की सूचना मिलती है। हालांकि हाल ही में सऊदी अरब सरकार ने कुछ सुधारवादी कदम उठाने शुरू किए हैं, लेकिन कुछ साल पहले प्रकाशित दो एमनेस्टी इंटरनेशनल रिपोर्टों में इन उल्लंघनों का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिनमें एक ऐसी न्याय प्रणाली है, जिसमें न्याय नहीं है, और जहां दबे छुपे अन्याय की कई स्थितियाँ आम हैं, जिसमें गिरफ्तारी करने वाले अधिकारियों द्वारा प्राप्त व्यापक शक्तियों का मनमाना दुरुपयोग, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और नज़रबंदी, कई प्रचलित लिखित और अलिखित कानून, गुप्त और घोर अनुचित जाँचें, यातना और क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा, और मृत्युदंड शामिल हैं।
अमेरिकी विदेश विभाग के उद्धरणों द्वारा समर्थित सूत्रों के हवाले से कुछ ऐसे साक्ष्य भी सामने आए हैं, जो बलात्कार और घरेलू हिंसा, दमनकारी ड्रेस कोड, महिलाओं के लिए कानूनी सुरक्षा की कमी, महिला जननांग के छेदन (लड़कियों का खतना), बाल शोषण और बाल विवाह पर केंद्रित है।
ये पूर्वाग्रह महिला कामुकता की कथित खतरनाक प्रकृति के बारे में मान्यताओं से उपजे हैं, और इन मान्यताओं की जड़ों को उनके निहितार्थ के साथ संक्षेप में विस्तार दिया गया है। ध्यान रहे, इन समाजों में निरंतर यह धारणा रही है कि उनके द्वारा अनुभव किए जाने वाले किसी भी यौन हमले के लिए महिलाएं जिम्मेदार हैं। नतीजा यह होता है कि बलात्कार के बाद पीड़िता ही शर्म से मुंह छुपाती है, उसकी ही आलोचना की जाती है और कुछ पीड़ितों को तो पत्थर मार-मार कर मौत के घाट तक उतार दिया जाता है।
मुस्लिम समाज में महिलाओं को पीटना आम बात है, लेकिन सऊदी अरब में पुलिस इस पर कार्रवाई नहीं करती क्योंकि इसे निजी मामला माना जाता है। सऊदी अरब में महिलाएं पुरुषों से असमानता से पीड़ित हैं और कानून और व्यवहार दोनों स्थानों पर उनसे भेदभाव किया जाता है। उनके खिलाफ घरेलू हिंसा में शायद ही कभी किसी को वास्तविक दंड मिलता है। अरब के कानून, जैसे कि इराक और संयुक्त अरब अमीरात में पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ हिंसा का उपयोग करने की अनुमति है। इसी तरह बलात्कार के दोषियों को शायद ही कभी दंडित किया जाता है।
इस क्षेत्र के कई देशों में, भले ही घरेलू हिंसा एक व्यापक समस्या है, लेकिन घरेलू हिंसा के विरुद्ध कोई विशिष्ट कानून या प्रावधान मौजूद नहीं है। घरेलू हिंसा को आम तौर पर राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर माना जाता है। पीड़ित महिला अगर पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश करती है, तो उससे घर जाने के लिए कहा जाता है। जिन महिलाओं को जान का खतरा होता है, उनकी सुरक्षा के लिए कुछ आश्रय स्थल मौजूद हैं।
मिस्र और बहरीन में पति अपनी पत्नियों को देश छोड़ने से रोकने के लिए हवाई अड्डे पर आधिकारिक शिकायत दर्ज करा सकते हैं। सीरिया में पति अपनी पत्नी को देश छोड़ने से रोक सकता है। इराक, लीबिया, जॉर्डन, मोरक्को, ओमान और यमन में, विदेश यात्रा करने के लिए विवाहित महिलाओं के पास अपने पति की लिखित अनुमति होनी चाहिए, और उन्हें किसी भी कारण से ऐसा करने से रोका जा सकता है। सऊदी अरब में, महिलाओं को देश छोड़ने या राज्य के विभिन्न हिस्सों के बीच सार्वजनिक परिवहन पर यात्रा करने के लिए अपने निकटतम पुरुष रिश्तेदार से लिखित अनुमति लेनी होती है। इसके अलावा मुस्लिम दुनिया में कानूनी दाराएँ महिलाओं की आज्ञाकारिता या "सम्मान" की रक्षा के लिए कार्य करने का दावा करके इस असमानता को बनाए रखते हैं।
.........जारी
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