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आज फिल्म spring thunder देखा, फिल्म अच्छी लगी, ख़ासतौर पर आजकल जो झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा जैसे जंगल युक्त जगहों पर विकास के नाम पर चल रहा है उसकी सच्चाई सामने रखती हुई यह एक अच्छी फिल्म है।
इसकी शुरुआत एक ठेकेदार - रंगदार, सामंती प्रकृति के इंसान चुन्नु पांडे से होती है, जो वहां की जनता पर अपनी हूकूमत बल प्रयोग से चलाता है और ऐसा गुंडा तत्व से हाथ मिलाते हैं कारपोरेट जगत, जिसे किसी भी कीमत पर अपने बिजनेस के लिए खनिज संपदा ( यूरेनियम ) चाहिए जो जंगलों पहाड़ों के नीचे है । वह टेंडर निकालते हैं जिसे पाने के लिए चुन्नु पांडे लोगों को वहां से बल प्रयोग से हटाता है जिसके कारण सुरेश लकड़ा के नेतृत्व में लोग विरोध करते हैं। विरोध जंगल को कटने , जमीन को लूटने से बचाने के लिए होती है, और इन्हीं आंदोलनकारियों को नक्सली नाम दिया जाता है। इस फिल्म में नक्सल की चर्चा जहां है और वहां यही लोग है जो जल, जंगल, जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस फिल्म के एक तरफ प्रकृति के रखवाले ग्रामीण जिन्हें नक्सली माना जाता है है, तो दूसरी तरफ चुन्नु पांडे जैसे लोभी गुंडा तत्व , हर कीमत पर खनिज सम्पदा पाने को तत्पर कारपोरेट जगत, उनकी मांग को विकास का जामा पहनाने वाली सरकार और सरकारी काम में बाधा पैदा करने वाले तत्व के खिलाफ खड़ी पुलिस फोर्स यानी चुन्नु के टेंडर को जमीन पर उतारने को तत्पर पुलिस बल है। ठीक वैसे ही जैसे आजकल झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे जगहों में हो रहा है। विकास का खनन वाला मैप ,आंदोलन और आंदोलन के दमन के लिए पुलिस फोर्स।
यह तो पूरे फिल्म की कहानी है, इसके बीच भी छोटी-छोटी बातों से कई चीजों को सामने रखा गया है। यहां ग्रामीण या जिन्हें नक्सली इंगित किया जा रहा है उनकी लड़ाई पूरी तौर से मानवता की, प्रकृति की रक्षा की लड़ाई है मगर उनका नाम लेकर ये अपराधी तत्व अपराध को अंजाम देते हैं। जैसे फिल्म में ट्रेन में हो रही लूट, हत्या जो चुन्नु तिवारी द्वारा टेंडर पाने जुगार के लिए किया जाता है , उसके गुंडे दूसरे डब्बों में लूट मचाते हैं, और एक डब्बे में वह खुद इंजीनियर के साथ बैठा बात करता रहता है, वह खुद उस ट्रेन में बैठे इंजीनियर जो गोली की आवाज सुनकर चौंकता है को कहता है कि यह "नक्सलाइट हमला है।"
दूसरी बार बस लूट की घटना जो मुन्ना सिंह द्वारा( सांकेतिक रूप में) अंजाम दिया जाता है और उस लूट को भी नक्सली नाम दे दिया जाता है, तीसरी बार तो खुलकर आंदोलनकारियों को बदनाम करने के लिए डॉक्टर कैथरीन के किडनैपिंग का षड्यंत्र रचा जाता है पर वह फेल हो जाता है, चौथी जगह जब चुन्नु द्वारा तालाब के पानी में जहर मिला दी जाती है और लोग मरते हैं और उन्हें बचाने के लिए कैथरिन कुछ दिनों के लिए ग्रामीणों के पास ही रुक जाती है तो उसके नक्सलियों द्वारा किडनैपिंग का अफवाह उड़ाकर नक्सलियों की बदनामी की जाती है। इस तरह नक्सली कहलाने वाले ग्रामीण जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं और अपराधी तत्व अलग-अलग अपराध करके उनके नाम को बदनाम कर रहे हैं।
यह फिल्म सच्चाई के काफी करीब है, जहां आतंक, हत्या के बल पर स्वार्थ के लिए खनन शुरू होता है, विश्व पटल पर उसे इस तरह प्रस्तुत किया जाता है जैसे यह यूरेनियम की खान का होना, खनन कर यूरेनियम निकालना देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि हो, इंसान की जिंदगी और प्रकृति का छलनी सिना, प्रदूषण का कारनामा, मानव हत्या, ग्रामीणों का दर्द, तबाही सब गौण तत्व हो जाते हैं।
इस फिल्म में प्रतिरोध के रूप में घुंघरू महतो जैसा करेक्टर भी है जो बार-बार जिल्लत और उन रंगदार ठेकेदारों की ठोकर खाकर अन्याय के खिलाफ मजबूती से उठ खड़ा होता है।
इस फिल्म में एक पात्र कन्नु लोहार भी है, जो आशा से उस विकास की ओर देखता है, पर उनके जैसे लोगों के लिए कोई उम्मीद वहां नहीं होती , उसका बेटा गोल्डन बचपन से ही उस रंगीन दुनिया के सपने देखता तो है पर पैसे के कारण स्कूल में पढ़ भी नहीं पाता और भटकी जिंदगी जीता है, उसके जैसे स्टार्टम का सपने देखने वाले का फायदा भी मुन्ना सिंह जैसे लोग उठाते है। अपराध में उसे शरिक कर देते हैं। हालांकि बाद में ठोकर खाकर वह भी बदला लेकर जेल चला जाता है।
सब मिलाकर यह फिल्म संघर्ष शील, न्याय पसंद, प्रकृति प्रेमी ग्रामीणों जिन्हें नक्सलियों माना जाता है की लड़ाई और चुन्नु पांडे जैसे गुंडा व लोभी तत्वों द्वारा जिन्हें सरकार और पुलिस बल की पूरी सुरक्षा मिली रहती है उस आंदोलन को तोड़ने, उन्हें तबाह करने, बदनाम करने , विकास विरोधी बताने की कहानी है जिसके शीर्ष पर कारपोरेट जगत होता है। इस कारण ही चुन्नु और मुन्ना के मौत के बाद भी यह सिलसिला खत्म नहीं होता, वह लड़ाई जल जंगल जमीन बचाओ से शुरू होकर एक घोषित युद्ध बन जाता है, जिसकी झलक अंत के सीन में मिलती है।
जब इंजीनियर का बेटा इंजीनियरिंग पढ़कर वापस आता है, वह देखता है कि उसका अपना शहर अब कैसे पूरी तरह पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है। क्यों? इसका जवाब रिक्शा वाला देता है। वह जो बताता है उसका संकेत यही है कि किस तरह प्रकृति के लिए लड़ने वाले के खिलाफ एक पूरी मिशनरी अब तैनात हो चुकी है। यह मिशनरी इसलिए ताकि जंगल को खोद सके, बहरे करने वाले विस्फोट कर सके, जमीन को खोखला कर सके, जंगल को बंजर कर सके, पूरा जंगल उजाड़ सके, उसमें बाधा बनने वाले को गोली दाग सके ताकि दूर पैसों की गड्ढी पर बैठे कारपोरेट जगत अपना और एक मुनाफा का बिजनस शुरू कर सके क्योंकि विकास नाम का लिगल सर्टिफिकेट उन्होंने सत्ता पर बैठी सरकार से पा लिया है और उस काम में बाधा डालने वाले प्रकृति प्रेमी विकास विरोधी बनाए जा चुके हैं जो पूरी पुलिस मिशनरी के बंदुक के निशाने पर हैं।
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इलिका
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