मांगी नौकरियां मिली लाठियां
अभी दो दिन पहले 25 जनवरी को बिहार कई जिलों में रेलवे में नौकरियाँ के लिए परीक्षा परिणाम में हुवे धांधली को लेकर छात्र सड़क पर उतरकर अपना विरोध जता रहे हैं और उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भी जता रहे थे तो फिर 'जनरक्षक?' पुलिस ने बिहार में आंसू गैस के गोले दागे, छात्रों पर लाठियां भांजी, कहीं-कहीं गोलियां भी चलाई गयी। उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में हास्टल और घरों में घुसकर गालियां देते हुए जबरदस्ती दरवाजा तोड़कर, जबरन कमरों में घुसकर छात्रों को पीटकर थाने ले गए हैं। रेलवे तो ऐसे कह रहा है जैसे सारे देश को अकेले वही नौकरी देता है। ऐसा क्या अपराध कर दिया इन छात्रों ने? जो इन छात्रों पर आतंकियों जैसा व्यवहार? इनपर जिस तरह से लाठियां और गोलियां चलाई गयी लगता है ये छात्र नहीं कोई उपद्रवी हैं।
अभी पिछले साल ए एम यू, जे एन यू और जामिया में इसी तरह हास्टलों में जबरन घुसकर दिल्ली पुलिस ने छात्रों पर भद्दी गालियों के साथ लाठियां भाजी। छात्राओं के कपड़े नोचे जा रहे थे, छात्राओं के सामने हस्त मैथुन कर रहे थे, आर एस एस के गुण्डे। पुलिसिया गुण्डों के अलावा आर एस एस के गुंडे कैंपस में घुसकर जामिया में छात्रों के सिर फोड़ रहे थे…. तब कुछ लोगों ने उसको जस्टीफाई किया था कि ये लोग उपद्रवी/आतंकवादी /नक्सली हैं और ये पाकिस्तान, चीन और आई एस आई…. से फन्डेड लोग हैं। तो क्या ये बिहार और इलाहाबाद के छात्र भी पाकिस्तान, चीन और आई एस आई…. से फन्डेड लोग हैं? कल किसानों-मजदूरों की बारी आयी शिक्षकों, बैंक कर्मियों की बारी आयी फिर ए एम यू, जे एन यू और जामिया की बारी आयी और आज पुनः बिहार और इलाहाबाद के छात्रों की बारी आयी है और निश्चित ही कल आपकी भी बारी आएगी यदि आप आज एक होकर इस बर्बरता के खिलाफ आवाज नहीं उठाया तो।
हमारे देश में इतनी महंगी शिक्षा है और जब इन छात्रों के मां बाप अपना पेट काटकर, पाई-पाई जोड़कर कम पड़ने पर कर्जा लेकर अपने इन बच्चों को शिक्षा दिला, इस उम्मीद के साथ कि बेटा जब शिक्षित हो जाएगा और कहीं ना कहीं नौकरी मिल ही जाएगी, योग्यता के अनुसार ना सही पर नौकरी तो मिल ही जायेगी इसी उम्मीद में अपना पेट काटकर हर कोई अपने बच्चे को महंगी से महंगी शिक्षा दिलाता है पर जब उसके बेटे को नौकरी नहीं मिलती तो उसे लगता है कि मेरा बेटा अयोग्य है यदि योग्य होता तो कहीं ना कहीं तो नौकरी मिल ही गयी होती, वो देखो फलनवां का लड़का उसे नौकरी मिल गयी फलां विभाग /फलां कम्पनी में।
140 करोड़ की आबादी वाले देश में राज्य और केन्द्र सरकार की सारी सरकारी नौकरियां जोड़ दी जायं तो 1.5 करोड़ भी नहीं पार कर पाएंगी। जब कुल मोटा-मोटा डेढ़ करोड़ सरकारी नौकरियां ही केन्द्र और राज्य को मिलाकर हैं तो डेढ़ करोड़ लोगों को ही तो नौकरियां मिलेंगी। उसमें भी जो विभाग बिक रहा है जैसे एयर इंडिया, वो सरकारी पद तो खत्म! उतनी नौकरियां तो कम हो गयी। अब यहां कुछ तथाकथित विद्वान लोग अपना सुवर जैसा मुँह खोलकर बोलेंगे कि सरकारी विभाग को प्राईवेट के हवाले कर दिया तो ठीक किया। जब सरकारी था तो लोग हरामखोरी करते थे, काम कम और टाइमपास ज्यादा। तो जनाब प्राइवेट संस्था में काम करने वाले लोग भी वही लोग हैं, तो सरकारी संस्थान में काम गड़बड़ क्यूँ, क्योंकि सरकारी संस्थान में हरामखोरी की व्यवस्था है ताकि सरकारी संस्थानों को बदनाम करके उसको बेचकर निजीकरण किया जा सके।
आप स्वयं देखें कि सरकारी संस्थाओ में काम से ज्यादा लोगों को रखा जाता है, जरूरत 5 लोगों की है तो 7-8 लोगों को नौकरियों पर रखा जाता है और वहीं इसके उलट निजी संस्थानों में जरूरत से भी कम लोगों को रखा जाता है, जरूरत 5 लोगों की है तो 3-4 लोगों को ही नौकरियां पर रख काम निपटा लिया जाता है।
इस रिकॉर्ड तोड़ती बेरोजगारी से जूझते नौजवान जब नौकरी के मुद्दे पर सड़कों पर उतर कर आक्रोश व्यक्त करते हैं और सत्ता के गुण्डे पुलिस लाठियों और बंदूकों के कुंदों से उनकी हड्डियां तोड़ देते हैं तो यह उन नौजवानों के बाप-दादाओं की पीढ़ी की पतनशील चेतनाओं का स्वाभाविक निष्कर्ष ही है जो अभिशाप बन कर उन पर टूटा है।
ये नौजवान बहुत अच्छी तरह से समझ गए हैं कि नौकरियों से जुड़ा स्थायित्व और सम्मान उनसे छीना जा रहा है, उन्हें पता है कि उनके लिए सरकारी नौकरियों के अवसर निरन्तर खत्म किये जा रहे हैं क्योंकि प्रभावी होती जा रही कारपोरेट संस्कृति की यही मांग है। वे जानते हैं कि प्राइवेट नौकरियों में उनके आर्थिक-मानसिक शोषण के नये-नये नियम-कानून जोड़े जा रहे हैं लेकिन तब भी, वे अपने बाप दादाओं की पीढ़ी से विरासत में प्राप्त वैचारिक दरिद्रता को बड़े ही शौक से ओढ़ने को आतुर हैं।
इस देश में बेरोजगारी का आलम देख लीजिए कि आरआरबी, एनटीपीसी ने 2019 में 35,281 पोस्टों पर नौकरियों के लिए वैकेंसी निकाली थी और अब तीन साल बाद 2022 में जाकर प्रथम चरण का रिजल्ट निकाला है। 35,281 पदों के लिए एक करोड़ पचहत्तर हजार अर्जियां आईं। अब इन मुट्ठीभर पद पर इन करोड़ों बेरोजगार छात्रों को इस पूंजीवादी व्यवस्था में नौकरियों का सृजन करना सम्भव नहीं है तो शासक वर्ग अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए आरक्षण, मुसलमानों, स्त्रियों, सिक्खों, पिछड़ों, दलितों, ब्राह्मणों, जाटवों, बिहारियों, बंगालियों, पंजाबियों, कश्मीरियों, पाकिस्तानियों, खालिस्तानयों, चीनियों, तालिबानियों…. पर गुमराह कर नफरत का खेल खेलेगा और यदि इस देश के नौजवान इस फूट डालो और राज करो प्रोपोगण्डा को समझकर लड़ाई असली मोर्चे पर आकर बेरोजगारी के खिलाफ करेगा तो नौकरियों की जगह लाठियां तो मिलेंगी। इन्ही गोलियों और लाठियों से डर का माहौल बनाकर बेरोजगार नौजवानों का दमन करेंगे ताकि सड़क पर उतरकर कोई नौजवान नौकरी ना मांगे और यदि गलती से सड़क पर उतरेगा तो ऐसे ही नौकरी की जगह लाठियां मिलेंगी।
जिस दिन रोजगार के लिए, सरकारी नौकरियों के लिए सड़कों पर हड्डियां तुड़वा रहा नौजवानों का विशाल तबका अपने परिवार से विरासत में प्राप्त विचारहीनता के फंदे को खुद के गले से उतार लेगा, जिस दिन उनमें फेक लोकतंत्र को नकारने का राजनीतिक चेतना विकसित होने लगेगी उस दिन से देश की राजनीति भी खुद को बदलने के लिए विवश होने लगेगी। तब तक एक-एक कर रेलवे, हवाई अड्डे, बैंक, भेल, भारतीय पेट्रोलियम, शिक्षण संस्थान सहित बड़ी-बड़ी नवरत्न कंपनियां आदि-आदि बिकती रहेंगी और बिकती जाएंगी। कोई पूछने वाला नहीं रहेगा कि कितने में बिकी, न पूछने पर कोई बताने वाला रहेगा। स्थायी की जगह कांट्रेक्ट यानी ठेका की नौकरियों का बोलबाला बढ़ता जाएगा, मजदूरों के श्रम और गरीबों के सपनों को रौंदने का सिलसिला तेज होता जाएगा। मेहनतकश जनता का दमन लगातार बढ़ता ही जाएगा।
अब तय आपको करना है कि उनकी खोखली और झूठी उपलब्धियों को सच मानकर यूं ही फेक लोकतंत्र की महानता पर गर्व कर इसी तरह लाठियां खानी हैं या फिर एकजुट होकर इस पूंजीवादी लोकतंत्र को उखाड़कर मेहनतकश जनता का राज कायम करना है। इस पर बल्ली सिंह चीमा की चन्द लाइने याद आ गयी।
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो ।
आदमी के पक्ष में हो या कि आदमखोर हो ।।
*अजय असुर*
*राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा*
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*वे रौंद देते हैं*
वे रौंद देते हैं,
किसी को भी, कहीं भी,
जो उनके सामने जाते हैं,
सबसे बड़े लोकतन्त्र के गुमान में। वे यही करते हैं,
जब आप उनके फासिस्ट राज को चुनौती देने लगते हैं,
पर फिर भी ये सच है की आप कुचल दिए जायेंगे,
बेल बूटे से सजी फौज, आपको पहले पीटती है,
कानून का लबादा ओढ़कर, फिर पीटते हैं, दागते हैं, रौंदते हैं
गुण्डे
तुम्हें रौंद डालने की सोचकर,
और इतना देखकर तुम एक ढेला
याकि पत्थर भी उठाते हो,
याकि उठाते हो अपना हाथ
धकेल देने के लिए इन दरिंदो को,
कोई जोर से शोर करता है, देखो हिंसा, हिंसक, अराजक
फिर पीटे जाते हो तुम, क्या कोई समाधान है इसका,
सोचा कभी आपने? सोचिएगा?
*पंकज विद्यार्थी, इलाहाबाद*
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