Wednesday, 3 November 2021

नज़ीर अकबराबादी की शायरी में दीवाली

नज़ीर अकबराबादी की शायरी में हिन्दुस्तानी रंग तहज़ीब बहुत नुमायां तरीक़े से देखने को मिलती है। 
चिराग़ जलते हैं, और चिराग़ तमसीली तौर पर बुराई के मुक़ाबले जीत का नाम है।
लफ़्ज़ दीवाली संस्कृत के दीपावली से बनी है।
इस के माना होते हैं चराग़ों के क़त्तार के। 
नज़ीर अकबराबादी __ ने दीवाली की कितनी प्यारी तस्वीर खींची है । 
उनके  कुछ अशआर आपके नज़र कर रही हूँ
                          🪔🪔
1_हर एक मकाँ में जला फिर दिया दिवाली का
हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिल में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मज़ा ख़ुश लगा दिवाली का। 
             ✨✨🪔✨✨
2_दोस्तो क्या-क्या दिवाली में निशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायान है। 
                फ़िर कहते हैं 
 3_गर्म-जोशी अपनी बा जाम चिराग़ां लुत्फ़ से
क्या ही रोशन कर रही है हर तरफ़ रोग़न की है। 
                🪔🪔🪔🪔🪔
नज़ीर अकबराबादी को जश्न-ए-ज़िंदगी के बड़े शायर कह सकते हैं। उनके शायरी का रिश्ता कल्चर से बहुत मज़बूत था। 
वह आगे कहते हैं 

4_जहां में ये जो दीवाली की सैर होती है
तो ज़र से होती है और ज़र बग़ैर होती है।
              ✨✨🪔✨✨
 5_दिवाली आई है सब दिया दिलाएंगे ए यार
 ख़ुदा के फ़ज़ल से है आसरा दिवाली का।

                                 💖💖🙏🏻🙏🏻

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