महान कम्युनिस्ट स्त्री संगठनकर्ता और नेत्री क्लारा ज़ेटकिन के जन्मदिवस (5 जुलाई 1857) के अवसर पर
''बहुत कम पति, यहाँ तक कि सर्वहारा भी नहीं, यह सोचते हैं कि अगर वे इस 'औरतों के काम' में हाथ बँटायें तो वे अपनी पत्नियों का कितना बोझ और चिंताएँ कम कर सकते हैं, या उन्हें पूरी तरह इनसे राहत दे सकते हैं। लेकिन नहीं, यह तो 'पति के विशेषाधिकार और गरिमा' के ख़िलाफ़ चला जायेगा। वह माँग करता है कि उसे आराम और सुविधा चाहिए। स्त्री का घरेलू जीवन एक हज़ार छोटे-छोटे कामों में अपने आपको क़ुर्बान करना होता है। उसके पति, उसके स्वामी और प्रभु, के प्राचीन अधिकार चुपचाप क़ायम रहते हैं। लेकिन वस्तुगत रूप से, उसकी दासी अपना प्रतिशोध ले लेती है। यह भी छिपे रूप में होता है। उसका पिछड़ापन और अपने पति के क्रान्तिकारी आदर्शों की समझ की उसकी कमी पति की जुझारू भावना और लड़ने के उसके हौसले को पीछे खींचती है। छुद्र कीड़ों की तरह वे धीरे-धीरे, मगर लगातार कुतर-कुतर कर उसे कमज़ोर बनाते हैं। मैं मज़दूरों के जीवन को जानता हूँ, और सिर्फ़ किताबों से नहीं जानता। स्त्री जनसमुदाय के बीच हमारे कम्युनिस्ट कार्य, और आम तौर पर हमारे राजनीतिक कार्य में पुरुषों के बीच व्यापक शैक्षिक काम करना शामिल है। हमें पार्टी से, और जनसमुदाय से, पुराने दास-स्वामी वाले दृष्टिकोण को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। यह हमारा एक राजनीतिक कार्यभार है, उतना ही तात्कालिक महत्व का कार्यभार जितना कि स्त्री और पुरुष कामरेडों से मिलकर बने एक स्टाफ़ का गठन, जिन्हें मज़दूर स्त्रियों के बीच पार्टी कार्य के लिए गहन सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण मिला हो।''
(स्त्री प्रश्न पर लेनिन के साथ क्लारा ज़ेटकिन के लम्बे साक्षात्कार का अंश)
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