Saturday, 29 May 2021

सर्वहारा वर्ग की संस्कृति और इसकी चुनौतियां ! - नरेंद्र


सभी वर्गों की अलग अलग संस्कृति होती है जो मुख्यतः उनके उत्पादन संबंध से निर्धारित होती हैं । लेकिन उत्पादन संबंध के साथ भौगोलिक व सामाजिक परिवेश , उनका इतिहास , आदतें और परंपराओं से यह बहुत मजबूती से प्रभावित होती है । यह अन्य वर्गों की संस्कृति व विचारों से टकराती है और उनके प्रभाव में भी आती है।खासकर शासन में जो वर्ग रहता है उसकी संस्कृति और उसके द्वारा प्रायोजित तथा आरोपित संस्कृति का सभी वर्गों की तरह इन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है । इसलिए किसी भी वर्ग की संस्कृति उस वर्ग की निरपेक्ष संस्कृति नहीं होती है ।
 फिर भी आमतौर पर सामंतों की संस्कृति , किसानों की संस्कृति ,पूंजीपतियों और सर्वहारा की संस्कृति में फर्क रहता है । उनकी आदत , उनका टेंपरामेंट , सामाजिक संबंधों में व्यवहार ,खानपान , जीवन पद्धति आदि  में फर्क होता है। इन सबों को तय करने में उनका उत्पादन संबंध महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ।
सर्वहारा या मजदूर वर्ग की भी कोई शुद्ध संस्कृति नहीं होती है। आमतौर पर हमारे समाज में टुटपुंजिया वर्ग यानी किसान , छोटे दस्तकार ' छोटे व्यापारी के संपत्ति हरण और बदलती जीवन पद्धति तथा परिवेश के कारण , पुराने उत्पादन संबंध में जीवन नहीं चल पाने के कारण ये वर्ग अपनी श्रम शक्ति को बेचने के लिए मजदूर बनते हैं। ऐसे मजदूर अपने पुराने उत्पादन संबंध तथा वर्गीय स्थिति के कारण पुरानी संस्कृति को लंबे समय तक ढोते रहते हैं । हमारी पिछड़ी उत्पादन पद्धति तथा सांस्कृतिक विरासत , पुरानी संस्कृति तथा आदतों को बनाए रखने में मददगार होती है । सामाजिक तथा राजनीतिक क्रांतियां इन पुराने झाड़ झंखाड़ को जलाकर नए उभरते वर्ग के रूप में सर्वहारा वर्ग को , उस की मूल संस्कृति को उभरने का ज्यादा अवसर देती है । लेकिन सर्वहारा की संस्कृति कोई रूढ़ चीज नहीं है । जैसे-जैसे नए उत्पादन संबंध में वह सर्वहारा की जगह उन्नत उत्पादक शक्ति के रूप में अपनी भूमिका अदा करने लगती है , उसकी संस्कृति में ऊंचाई आती जाती है । यह संस्कृति इतिहास में समाजवादी संस्कृति के रूप में स्थापित हुई है। समाजवादी संस्कृति का विकास मुख्यतः सर्वहारा की संस्कृति से ही होती है लेकिन दूसरे मेहनतकश  वर्ग की संस्कृतियाँ भी इसे समृद्ध करती हैं । यह एक तरह से अपने समय और अपने इतिहास के सभी  प्रगतिशील तथा मेहनतकशों की संस्कृति कोआत्मसात कर अपना निर्माण करती है । इसलिए समाजवादी संस्कृति सर्वहारा संस्कृति से भी उन्नत और व्यापक होती है जो समाज को ज्यादा बेहतर जीवन दृष्टि देती है । 
  साम्राज्यवाद तथा पूंजीवाद जिस तरह से समाजवाद के निर्माण में बाधक है और समाजवादी अर्थव्यवस्था को तबाह करने के लिए सक्रिय रहा J उसी तरह साम्राज्यवादी तथा पूंजीवादी संस्कृति ने कदम कदम पर समाजवादी संस्कृति को तबाह करने का अभियान चलाया और उसे सफलता भी मिली , क्योंकि उत्पादन संबंध तथा अर्थव्यवस्था के स्तर पर समाजवाद अभी मजबूत नहीं हुआ था ।आज की तारीख में सर्वहारा संस्कृति तथा समाजवादी संस्कृति के विकास में ये सभी ताकते अवरोध बनकर खड़ी है ।  हम वर्ग संघर्ष तथा वैचारिक व सामाजिक आंदोलनों को आगे बढ़ाकर सर्वहारा की संस्कृति को इनके हमलों से बचा कर उर्जा प्रदान कर सकते हैं । फिर भी जब तक साम्राज्यवाद और पूंजीवाद का बोलबाला है ,इसका गहरा प्रभाव सर्वहारा तथा मेहनतकश वर्ग की संस्कृति पर बना रहेगा I

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