कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने हिन्दू हृदय सम्राट 'नरेंद्र मोदी' की छवि को तार-तार कर दिया है। क्या मोदी!, क्या शाह!, क्या योगी! सभी बेशर्मी का लबादा ओढ़े हुए हैं। इस बेशर्मी के आवरण में भी, तार-तार होती छवि की चिंता, बेचैनी और घबराहट को, इनके चेहरे पर साफ-साफ पढ़ा जा सकता है।
एक तरफ किसान सड़कों पर हैं, दूसरी तरफ विपक्ष लगातार हमलावर है। तीसरी तरफ आम नागरिक सहित खास भी इलाज, ऑक्सीजन, अस्पतालों की कमी के चलते दर-दर भटककर, तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे हैं।
विपक्ष मोदी से, सर्वदलीय बैठक की मांग कर रहा है और विपक्ष की यह मांग जायज भी है कि देश में सभी आम नागरिकों का फ्री वैक्सीनेशन करवाया जाए; कि नरेंद्र मोदी के दिमाग में नई संसद, राष्ट्रपति भवन आदि बनाने का जो भूत सवार है जो सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के नाम से कुख्यात हो चुका है, जिसमें 20 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होना है, उस भूत से मोदी अपना पिंड छुड़ाएं और इस भारी भरकम राशि को आम नागरिकों के वैक्सीनेशन के लिए, अस्पतालों, ऑक्सीजन, डॉक्टर आदि की व्यवस्था के लिए खर्च करें, कुल मिलाकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रद्द करें।
मगर मोदी और इनकी मित्र मंडली को, जो कि रोज-रोज होती सैकड़ों मौतों (वास्तव में हत्याओं) के लिए जिम्मेदार हैं, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में आलोचना पर मोदी की टीम और इनके विदेश मंत्री बिफर पड़ते हैं।
इन्हें आदत है, हज़ारों मौतों के बीच भी कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए, जश्न मनाने की। यही इनका इतिहास है। गुजरात ने इसे देखा है। दंगों को आयोजित करने और उसमें नरसंहार रचने की, जिनकी आदत हो, वही रोज़ सैकड़ों लोगों की तड़प-तड़प कर होती मौतों के बीच, कह सकते हैं कि माहौल में विपक्षी और विरोधी 'नकारात्मकता' परोस रहे हैं, कि माहौल तो 'सकारात्मक' है।
आम नागरिकों के लिए ऑक्सीजन की मांग करना, अस्पतालों की मांग करना, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट जिसके प्रति मोदी की असीम मोहब्बत है, को रद्द करने की मांग करना, क्या माहौल को 'नकारात्मक' बनाना है! क्या फ्री वैक्सीनेशन की मांग करना 'नकारात्मकता फैलाना' है।
विपक्ष ने अपनी बारी में क्या किया और क्या नहीं किया या वे सत्ता पर होते, तो क्या करते। सवाल यह नहीं है क्योंकि विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ही तो शासक हैं, शासक वर्ग के लोग हैं। असल सवाल तो आम नागरिकों का है।
मोदी सरकार, इस मौके पर, गिद्ध की तरह, आम इंसानों को नोच लेने के मौके, देशी-विदेशी कंपनियों को दे रही है। वैक्सीन कंपनियां, दवा कंपनियां, ऑक्सीजन आदि-आदि के धंधे में लगी कंपनियां इस 'आपदा में अवसर' की तलाश नहीं करेंगी तो क्या करेंगी। 'आपदा में अवसर' मोदी का प्रिय नारा है।
अहंकार और उन्माद में ग्रस्त हिन्दू फासीवादी, वस्तुस्थिति को देख सकने की स्थिति में हैं ही नहीं। इन्होंने रेत में शुतुरमुर्ग की तरह ही गर्दन डाली हुई है। इन्हें लगता है ये 50 साल तक राज करेंगे और जनता को मूर्ख बनाने में सफल होंगे। बस विपक्षी और विरोधी शांत हो जायें तो कोई दिक्कत नहीं। यही फासीवादियों की मानसिक बनावट भी है। इसीलिए उन्होंने, हर उस चीज, जिसमें सत्य है, जिसमें मोदी का महिमामंडन नहीं है, जिसमें मोदी सरकार की नीतियों, उपायों और व्यवहार पर तीखे सवाल खड़े हो रहे हों; उन्हें झुठलाने का अभियान चला दिया है।
संघ परिवार और मोदी सरकार का यह अभियान है 'सकारात्मकता असीमित'। 'सकारात्मकता असीमित' का यह अभियान उसी तरह शुरू हो रहा है जैसे किसानों के खिलाफ, तीन कृषि कानूनों को किसानों को तमाम दुख-संकटों से मुक्त करने वाला बताया जा रहा था। यह अभियान उसी तरह का है जैसे जब नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के विरोध में देशव्यापी विरोध हुआ था। तब ये इसके पक्ष में सकारात्मक बातों का अभियान चला रहे थे। अफसोस कि इनके 'असीम सकारात्मकता' का फिर वही हस्र होना है जैसा अभी तक हुआ है।
मूर्ख संघी और मोदी सरकार नहीं समझ सकते कि सकारात्मक और नकारात्मक एक ही सिक्के के दो विरोधी पहलू हैं। दूसरा यह कि मानसिक स्तर पर सकारात्मकता और नकारात्मकता का विज्ञान से, वैज्ञानिक तथ्यों, तार्किक सोच और वस्तुगत होने से संबंध है। अंधविश्वास, ढोंग, पाखण्ड से सकारात्मकता नहीं आती। गोमूत्र, हवन, गोबर से कोरोना के इलाज जैसी फर्जी व अवैज्ञानिक बातों से सकारात्मकता नहीं आती।
वैज्ञानिक तथ्यों, तर्कों और वस्तुगत स्थिति (सही-सही स्थिति और बातों) की जितनी जानकारी होगी, उतनी ही सकारात्मकता भी रहेगी या होगी अन्यथा इसका उल्टा ही होगा। भले ही तात्कालिक तौर पर ऐसा न लगे। जैसे जन्म होना और मरना, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जन्म ही नहीं तो फिर मरने का भी सवाल नहीं। कोई जन्म को तो सत्य माने और मरने को झूठ, तो फिर इससे सकारात्मकता नहीं पैदा होती।
मगर, मोदी सरकार और संघ परिवार, इस द्वंद्व को समझ नहीं सकते। सटीक तथ्यों, सटीक आंकड़ों से, वैज्ञानिक चिंतन-तर्कों व तथ्यों से हिन्दू फासीवादियों को सख्त नफरत है। इसीलिए बेरोजगारी के आंकड़े की व्यवस्था खत्म करके, वे बेरोजगारों को 'नकारात्मक' होने से बचाना चाहते हैं। वे कोरोना जांचों की संख्या घटाकर, ज्यादा एंटीजन टेस्ट करवाकर और ऑक्सीजन के मसले पर राज्यों के साथ आंकड़ों का खेल खेलकर पूरे समाज में ''सकारात्मकता'' का माहौल बनाना चाहते हैं।
मगर अफसोस कि यह कुछ भी काम नहीं आने वाला! पिछले साल के 'थाली-ताली' बजाने और 'दिए जलाने' का हस्र, आज हमारे सामने है। इन मूर्खतापूर्ण कृत्यों का ही नतीजा आज की त्रासदी के रूप में सामने है। इस प्रकार यह 'मोदी निर्मित त्रासदी' भी है। जितनी जल्दी आम नागरिक इस स्थिति को समझ जाएंगे, जितनी जल्दी उनका संघर्ष इस घोर जन विरोधी सरकार के खिलाफ शुरू हो जाएगा, उतना ही और उतनी ही जल्दी समाज सकारात्मकता की ओर बढ़ जाएगा।
- नागरिक डाट कॉम से साभार
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