Friday, 28 May 2021

लाशों का प्रतिरोध- सीमा आज़ाद



ज़िंदा लोग
लॉक्ड हैं घरों में,
सड़कों पर
 कर्फ्यू सजाए बैठे हैं
हाकिम के खाकी कारिंदे।
ऑक्सीजन की तलाश में
बदहवाश भागते लोगों की
चीख पुकार पर है पहरा -
ख़ामोश!
कोई नहीं कहेगा
"दम घुट रहा है!"
सांस की आस में
अस्पतालों से उठती लाशें -
बिस्तर खाली कर रही हैं
ज़िंदा लोगों के लिए
धड़ाधड़।

ख़ामोश!
लाशों पर रुदन की भी है मनाही,
गायों के रंभाने की आवाज़ में
खलल पड़ता है इससे - 
जल्द से जल्द निपटाओ लाशों को
खींचो परिजनों के पास से -
श्मशान में पहुंचाओ -

श्मशानों पर डाल दिए गए हैं  पर्दे
दिखना नहीं चाहिए
हिन्दू राष्ट्र का यह चमकदार "विकास"
डर है नजर लगने का -
 काला दिठौना लगाओ!
ऐसा करो -
मुंह ही काला कर लो
चिताओं की राख से।

हाकिम का फरमान -
"विकास" अभी और होगा
चूंकि कब्रिस्तान के बराबर नहीं हुए
 शमशान अभी भी -
नदियों को भी श्मशान बना दो।
 इंसानी सभ्यता
 जो नदियों की गोद में फली- फूली,
उसे उसमें ही बहा दो।

लेकिन -
सभ्यताएं यूं नदियों में नहीं बहती
अपने निशान छोड़ जाती हैं,
इतिहास लाश नहीं होता
वह बोलता है भविष्य में, वर्तमान में -
एक लाश दुर्घटना हो सकती है,
कई लाशें इतिहास में दर्ज हो जाती हैं
और बोलने लगती हैं।

ऐसे समय में
जब छिपाया जा रहा हो मौत का आंकड़ा -
लाश बन कर बहना
और चढ़ बैठना विकास के आंकड़े पर -
मारे गए लोगों का प्रतिशोध है।
यह महज दृश्य नहीं
लाशों का प्रतिरोध है।

14 मई 2021

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