अबे..... भोसड़ी के !
नीचे बैठ
वह शर्मिंदा होकर बैठ गया
गांधी जन्म शताब्दी पर
धुआं उगलने वाली चिमनी कुछ पल के लिए रुक गई
सभी खातों में सन्नाटा छा गया।
खड़खड़ाने वाले मशीनी पहिए चाप पर कान धरने लगे
माथे का पसीना पोंछते हुए
कामगारों का हुजूम इकट्ठा हुआ
वो आ गये ... वो गये ...
सभी एड़ियाँ उठा कर गेट की ओर देखने लग
अखाड़े में
जैसे पहलवान उतरते हैं, वैसे ही थके थके कदमों के साथ रहनुमा मंच पर चढ़ गए।
" भाईयो.......!
राष्ट्रपिता कहते थे कि... हरिजन ईश्वर की संतान
उगते सूरज की डिस्क की तरह
उनका खून भी लाल है........
तालियों की गड़गड़ाहट के साथ भाषण समाप्त हुआ।
राष्ट्रपिता की प्रतिमा का अनावरण हुआ।
" कांबले हार ला.....
सूती लड़ी के हार
वे दौड़ते हुए आए और कण्ठ माला की तरह गले से चिमट गए
"कांबले प्रसाद बांट ..."
कांबले आगे बढ़ा
अचानक सभा में मराठी अंदाज़ में स्वर गूंजा
"अबे। भड़वी के....... ! तुमने सारा प्रसाद नापाक कर दिया "
बिजली का शॉक लगा हो जैसे
सारे हाथ खिंच कर रह गए
गांधी जी की जय जय कार में
कामगार अपने अपने खाते में वापस लौट आए
चिमनी दोबारा धुवां उगलने लगी
मशीनी पहिये खड़खड़ाने लगे
शाम हुई
पल भर में क्षितिज पर अंधेरा छा गया।
No comments:
Post a Comment