'आदर का अविष्कार किया गया था उस ख़ाली जगह को भरने के लिए जहाँ प्यार होना चाहिए था' - लियो टॉलस्टॉय
किन्तु एंगेल्स इस मोहक पर खोखली बात की वास्तविक जड़ में जाकर बताते हैं कि जब समाज में एक संपत्तिशाली, विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अस्तित्व में आ गया जो बाकी समाज के श्रम द्वारा किए गए उत्पादन का उपभोग करता था तब ऐसी अन्यायपूर्ण व्यवस्था को स्वीकृति दिलाने के लिए ही इस प्रभु वर्ग के प्रति 'आदर-सम्मान' की जरूरत पड़ी क्योंकि प्यार तो इन दोनों वर्गों के बीच मुमकिन ही नहीं था! इस 'आदर-सम्मान' को स्थापित करने के लिए कानून बने, हम्मुराबी से मनु तक की स्मृतियाँ लिखी गईं - विधायक, जज-काजी आए, धर्म-ईश्वर बना - पुजारी-प्रचारक आए, शिक्षा व्यवस्था बनी - द्रोणाचार्य जैसे गुरुजी आए, और ये सब भी आदर-सम्मान कायम न रख पायें तो आखिरी उपाय के तौर पर पुलिस-फौज की मजबूत तेल पिलाई लाठी तैयार की गई जिसको लहरा के कहा जा सके - बोल, अब भी नहीं करेगा तू हमारा आदर-सम्मान, है इतनी हिम्मत?
इसीलिए आदर, सम्मान, प्रेम, मोहब्बत, अहिंसा, भाईचारे के सारे मनमोहक प्रचार तब तक खोखले भुलावे हैं जब तक ये इस संपत्तिशाली, विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के शासन से मुक्ति की बात से न जुड़ें हों।
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