Monday, 3 May 2021

पूंजीवाद को लोगों के जीवन की तनिक भी परवाह नहीं, पूंजीपतियों के लिए अधिकतम मुनाफा बटोरना ही इसका काम

कोरोना

एसयूसीआई (कम्युनिस्ट) महासचिव श्री प्रभास घोष ने आज 16 अप्रैल 2021 को निम्नलिखित प्रेस बयान जारी किया हैः

''हम अभी कोविड-19 की दूसरी लहर की चपेट में हैं, जो पहली के मुकाबले काफी ज्यादा गंभीर है और जो हजारों लोगों की जानें ले रहा है। लेकिन परिस्थिति इतनी भयावह होने के बावजूद न तो भाजपा नेतृत्ववाली केन्द्र सरकार और न ही तमाम राज्य सरकारें इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ कर रही हैं। पिछले साल जब इस महामारी के प्रकोप ने कई लाख लोगों का जीवन छीन लिया था और करोड़ों आम लोगों के जीवन में घोर आर्थिक बदहाली लाया था, तब यह दयनीय ढंग से पता चला था कि अब तक सरकार द्वारा महत्वपूर्ण स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रति बरती गयी आपराधिक लापरवाही की वजह से देश में पर्याप्त संख्या में अस्पतालों, अस्पताल के बेडों, वेंटिलेटरों, ऑक्सीजन सिलेंडरों, डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मियों और आवश्यक दवाओं की घोर कमी है। क्या यह गंभीरता का मजाक नहीं है कि जब देश टीकों की घोर कमी का सामना कर रहा है, तो पिछले साल के ताली-थाली बजाने, मिट्टी के दीपक और टॉर्च जलाने तथा मिलिट्री के हेलीकप्टरों द्वारा फूल बरसाने की तर्ज पर प्रधानमंत्री 'टीका उत्सव' मना रहे हैं? अगर लोगों की बेशकीमती जिन्दगियों के प्रति सरकार की तनिक भी चिंता होती, तो वह इस कमी को दूर कर सकती थी, क्योंकि दूसरे उछाल से पहले ऐसा करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त समय था। स्वास्थ्य बजट अभी भी बहुत कम है, जबकि एकाधिकार घरानों को दी जा रही तरह-तरह की आर्थिक रियायतों में बढ़ोतरी जारी है। सैन्य और प्रशासनिक खर्चों में लगातार इजाफा हो रहा है। एक ओर, भव्य महल के तौर पर नये संसद भवन के निर्माण, आस-पास के क्षेत्रें के सजावट तथा प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों पर अत्यधिक खर्च में हजारों करोड़ रुपये व्यय किये जा रहे हैं, तो दूसरी ओर, हजारों बेेबस गरीब लोग इलाज के लिए हाहाकार कर रहे हैं और अक्सर इलाज से वंचित होकर मर रहे हैं। पिछले साल प्रधानमंत्री ने अपने कार्यालय का इस्तेमाल करते हुए 'पीएम केयर फंड' में विशाल राशि इकट्ठी की थी। किसी को पता नहीं है कि इस मद में कितनी राशि इकट्ठी हुई और किसके देखभाल के लिए उस राशि का इस्तेमाल हो रहा है। यह सभी रहस्य बना हुआ है।

क्या हिन्दुत्व के इन पुरोधाओं में कोई मानवीय भावना है? जब दूसरी बार घातक कोरोना महामारी जंगल में आग की तरह फैल रही है; तब प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और भाजपा के अन्य मंत्री तथा उसके अन्य शीर्ष नेता चल रहे विधानसभा चुनावों में ऐन-केन-प्रकारेण जीत दर्ज कर सत्ता पर काबिज होने के एकमात्र मकसद से चुनाव अभियान में दिन-रात व्यस्त हैं, मतदाताओं को खरीदने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं और स्वास्थ्य संबंधी हिदायतों को धता बताकर बड़ी तादाद में लोगों का जमावड़ा कर रहे हैं।

अन्य तमाम पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों में भी यही भयावह नजारा है। यह पूंजीवाद का क्रूर अमानवीय चेहरा है, जो लोगों के जीवन की तनिक भी परवाह नहीं करता, बल्कि सिर्फ पूंजीपति वर्ग के लिए अधिकतम मुनाफा बटोरने का काम करता है। इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जब कोविड-19 और भुखमरी की वजह से रोजाना लाखों लोग मर रहे हैं, तो एकाधिकार पूंजीपति और विशाल बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अकूत मुनाफा बटोर रही हैं और अपने धन-सम्पदा में कई गुना बढ़ोतरी कर रही हैं। इसके अलावा, जब दुनिया भर में मानवता ऐसे अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट और उसके साथ आनेवाली आर्थिक बर्बादी का सामना कर रही है, तो पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों के शासक मानव जाति को इस आपदा से बचाने के लिए अपने तमाम संसाधनों को इकट्ठा करते हुए इस घातक वायरस के खिलाफ एकजुट लड़ाई लड़ने की बजाय अपने संबंधित प्रभाव क्षेत्रों को बढ़ाने और क्षेत्रीय वर्चस्व को मजबूत करने के उद्देश्य से अनैतिक व्यापार युद्ध, सैन्य बजट में अत्यधिक इजाफा और स्थानीय तथा सीमा युद्धों को भड़काने में उलझे हुए हैं। यह एक बार फिर पूंजीवाद के राक्षसी अमानवीय चरित्र को उजागर करता है। अधिकतम मुनाफा ही पूंजीपतियों-साम्राज्यवादियों के लिए सब कुछ है और आम लोगों के जीवन से उन्हें कोई सरोकार नहीं है।

यह समय की अत्यंत आवश्यकता है कि इस भयानक स्थिति से निपटने हेतु शीघ्र उपयुक्त कदम उठाने के लिए अपने-अपने देशों के साम्राज्यवादी-पूंजीवादी शासकों को मजबूर करने और अंततः भारत सहित सभी देशों में पूंजीवाद विरोधी समाजवादी क्रांति की प्रक्रिया तेज करने के लिए उनके खिलाफ गंभीरतापूर्वक लोगों का एकजुट सुसंगठित संघर्ष प्रारंभ किया जाये।"

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