हिटलर के कुत्तो से संवेदना कैसी?
और क्यो?
कॉरपोरेट मीडिया के दल्ले,
मरते है तो मरे
हमारे पास सहानुभूति,
संवेदना के कोई शब्द नही,
बस घृणा है, गुस्सा है।
और बस चले तो जीते जी
हम इन्हें सूली पर चढ़ा दे।
इन बुर्जुवा राजनीतिज्ञों,
न्यायाविद्दो, विद्वानों, मीडिया कर्मियों
और व्यापारियों के गिद्ध गिरोह-
व्यवस्था की चाकरी करने वाले-
मानवद्रोही पूंजीवादी लुटेरे-
उनकी मौत की उद्घोषणा भी-
इस अंधेरे में उम्मीद के ज़िंदा शब्द है;
इसलिए, दुखी नही होते हम
कॉर्पोरेट गैंग के दल्ले की मौत पर।
कॉमरेड चंदू के हत्यारे -
शहाबुद्दीन की एम्स में हुई मौत पर
क्यों शोक व्यक्त किया जाए?
दिल्ली गैंगरेप के अपराधियों को फांसी की सजा हुई थी जब
तो क्या आप ने शोक व्यक्त किया था?
मैंने तो नहीं किया।
गौरी लंकेश की हत्या पर जश्न
मनाने वाले लोग आज
रोहित सरदाना के मौत पर
ज्ञान बघार रहे है.
वो परम्परा
जिसमें गोडसे और गांधी
दोनों की पुण्यतिथि मनाई जाती है
मजदूर वर्ग की नही,
लुटेरे पूंजीवादी वर्ग की है
जो मानवता की गरिमा को
शर्मसार करने वाले को भी
श्रद्धांजलि देते है।
---- कुमार तरुण
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