#दुपट्टा से बांधी गई मेरी बच्चियों !
तुम्हारी तकलीफ :
तुम्हारा यह उत्पीड़न
हमारे लिए
असहनीय !
निशब्द हूँ मैं !
हम अपनी किस कमजोरी की
सजा पा रहे हैं !
क्या हम अपनी इस कमजोरी से
उबर पाएंगे !
सदियों से बांटकर जातियों में
शोषण और उत्पीड़न को जारी रखने का
कानून बनाया गया
कभी मनुस्मृति के रूप में तो
कभी दुनिया भर के लोकतंत्र के संविधान के रूप में
कभी आधुनिक संविधान लिखने वालों ने भी
चुनौती नहीं दी
शोषण उत्पीड़न के उस स्वरूप को
जिसके पीछे चलता है शासन पूंजी के तंत्र का
कोई नहीं खड़ा होता है पूंजी के इस तंत्र को
खुलेआम चुनौती देने के लिए
और पूंजी का यह तंत्र
बांटता है हमें कभी धर्म
कभी क्षेत्र के रूप में
कभी राष्ट्र के रूप में
और सब जगह पूरी दुनिया में
निर्बाध गति से गतिशील है यह
लोग पलक पाखरे बिछाए हुए हैं
इसके आगमन के लिए
इसके आलिंगन के लिए
इसे अपने जन जन के रक्त से स्नान कराने के लिए
यह पवित्र है , दुनिया का सबसे पवित्र वस्तु
और इसके साथ सामाजिक संबंधों में बंधा
वह हर वर्ग जिसका रुधिर यह चूसता है
वह अपवित्र है
सारी दुनिया के लिए तुम भी
इसी अपवित्र समाज का हिस्सा हो
मेरी प्यारी बच्चियों !
और इसीलिए अपने समाज की पवित्रता के लिए
तुम्हें और हमें जलाना ही होगा
इस पवित्र वस्तु से जुड़े पूरे
सामाजिक संबंधों को
हमें जलना ही होगा
वर्ग संघर्ष की आग में
चल रहे हैं किसान और उनके बच्चे
अपने देश के अंदर और बाहर की सरहदों पर
हमें जलाना होगा
स्त्रियों और मेहनतकशों को बांधने वाले
उन तमाम सामाजिक संबंधों को
संस्कृति से लेकर उन दुपट्टो और फंदों को
जिस से बांध दिए जाते हो या लटक जाते हैं
तुम जैसी बच्चियां , स्त्रियां और कर्ज से दबे किसान
हमें जलना होगा
अपने समय के सबसे ज्वलंत सवालों से !
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