न्याय की देवी तुम गाय की तरह पवित्र हो
तुम्हारा दर्शन मात्र हम गरीबों के लिए पुण्य है
जिस खूंटे से तुम बंधी रहती हो
उसकी कोठी की शान में तुम हमेशा
चार चांद लगाती रहती हो
यह तो लाज़मी है कि जिस मालिक की तुम गाय हो
अपने थन से दूध की बाल्टी तो उसी की भरोगी
और चाहिए भी यही
क्योंकि धर्म और कर्तव्य की मर्यादा तो यही है
आखिर वह आपका मालिक जो ठहरा
अब चारा चाहे मालिक की खाओ या काले चोर की
इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता
न्याय की गौ माता हमारे लिए तो
तुम्हारा गोबर और मूत्र ही पवित्र है
सुनते हैं ऐसा शास्त्रों में भी लिखा गया है
और महाजन भी तो यही कहते हैं
हां तुम इतनी गऊ हो इतनी गऊ हो कि
अपने मालिक की क्रूरता पर भी तुम उसके कंधे चाटती हो
लेकिन दूसरों को अपनी तरफ आते देख
उसे सींग पर उठा लेती हो
तुम्हारा मालिक इसी अदा पर तो तुम्हें
पवित्र गाय मानकर तुम्हारी पूजा करता है
हां यह दीगर बात है कि
कभी-कभार तुम्हारी थोड़ी सी शरारत पर
या दूध कम कर देने पर
तुम पर वह डंडे बरसाना नहीं भूलता
फिर भी न्याय की देवी
तुम्हारी यह सरलता है या खूंटे की मजबूरी
जो तुम्हें सदैव पवित्र बनाए रखती है
न्याय की देवी तुम ऐसे ही पवित्र बनी रहो
मालिक के लिए दूध तथा हमारे लिए गोबर देती रहो
*जुल्मीरामसिंह यादव*
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