किसान आंदोलन की मांगें पूंजीवादी मांगे है, पूंजीवाद के चौखटे के भीतर की मांगें है, लेकिन किसानों का गुस्सा और नफरत कॉर्पोरेट घराने और उसकी चहेती फासीवादी मोदी सरकार के खिलाफ बहुत स्पष्टता से उभर कर सामनेआया है। इस अर्थ में इसकी दिशा पूंजीवाद विरोधी है। अगर इस लड़ाई को किसान समाजवाद के लिये लड़ने वाले समाजवादी संघर्ष से जोड़ दे तो लुटेरे कॉर्पोरेट घराने और बुर्जुआ राज्य के अस्तित्व के लिये खतरा उतपन्न हो जायेगा। कम्युनिष्टों के खिलाफ झूठ और घृणा फैलाने के पीछे लुटेरे बुर्जवा वर्ग और उसकी सरकार का यही डर काम कर रहा होता है।
एम के आज़ाद
No comments:
Post a Comment