कॉर्पोरेटपरस्त फासीवादी मोदी सरकार के खिलाफ इस कड़कड़ाती ठंड में महीनों से रोड पर खुले आसमान के नीचे चल रहे किसान आंदोलन और उनमें शामिल वामपंथियों पर अपने घर मे आरामदायक रजाई में लेटे लेटे उनपर अपनी कविता की गंदी पाद छोड़ने वाली झंझटी बेगम ने भारत के 'नरोदवादी मार्क्सवादियों' की ख़िदमत में एक शेर अर्ज़ किया है:
*काँधे पर थाम्हे हुए प्रोलेतारी परचम
धोते हैं कुलकों के चूतड़ वे हरदम ।*
*और अपनी प्रतिक्रिया*
बेगम,
इस खिदमत से
किसका हुआ फायदा
किसका हुआ नुकसान,
बंटे दोस्त,
या दुश्मन में हुआ दो फाड़!
पूछता है मजदूर,
पूछता है किसान।
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