25/122021
किसान आंदोलन कम्युनिस्टों को पूँजीवाद का भंडाफोड़ करने का एक अवसर देता है, हमे अपने को किसान के वर्गीय दृष्टिकोण तक ही यानी निम्नपूँजीवादी दृष्टिकोण तक ही सीमित न रखना चाहिये।
हमे इस सूत्रवाक्य को हमेशा ध्यान में रखना होगा कि बड़ी पूंजी छोटी पूंजी को, और धनी किसान छोटे और गरीब किसानों को बर्बाद करते रहते है, उनका सम्पत्तिहरण करते रहते है और उनको सर्वहारा की पांत में धकेलते रहते है। इस तरह, मार्क्स के शब्दों में, पूंजी खुद पूंजी का निषेध करती रहती है। पूंजीवाद में पूंजी का विकास ऐसे ही होता है। और एक समय आता है जब पूंजी का सम्पत्तिहरण सर्वहारा वर्ग के द्वारा करना शेष रह जाता है। मार्क्स ने पूंजी खण्ड 1 में बहुत अच्छे ढंग से इसे वर्णन किया है।
पूंजी के इस नियम के विरुद्ध छोटे या गरीब किसानों को पूंजीवाद की सीमाओं में और पूंजीवादी राज्य से किसी तरह की आशा दिलाना बिल्कुल ही बकवास करने के बराबर है।
मेरे विचार में इस सूत्र को ध्यान में रख कर हमें अपनी बातों को रखनी चाहिये और किसानों को समाजवाद क्या दे सकता है, इस पर फोकस करते हुए किसानों के बीच प्रचार करना चाहिये।
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