इस डर से कि बच्चे
कहीं परिन्दे बन उड़ न जायें,
हमारे क़द से भी बुलन्द न हो जायें
बाग़ी न हो जायें
और हमारे साथ ही जीवन भर
बंधे रहें,
हम उनकी तराश-खराश
कुछ इस प्रकार से करते हैं,
कि वे हमारी सोच के गमलों से
जीवन भर बाहर न झाँक सकें
कितनी दर्दनाक है
टहनियों और जड़ों को तराशने की
यह बोन्साई प्रक्रिया|
~निदा नवाज
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