किसानों के विरोध में
उधर संघी है और,
मेरी कविता, इधर!
वे जश्न मना रहे है,
और नाच रही है नंगी,
कविता बेशर्म ।
कॉन्ट्रैक्ट फार्म में
इठला रहे है,
उसके मस्त नितम्ब।
नशे में झूम रहे है,
सरसो के पौधे,
पीले-पीले बेशर्म!
शेर अर्ज कर रही है-
कविता,
काँधे पर थामें,
फ़र्जी लाल परचम!
झूम रहे है मैनेजर, गार्ड,
वाह, बेहतरीन है,
कविता की खिदमत!
इस खिदमत से
किसका हुआ फायदा
किसका हुआ नुकसान,
बंटे थे दोस्त,
या दुश्मन में हुआ दो फाड़!
पूछता है मजदूर,
पूछता है किसान।
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