Wednesday, 2 December 2020

काले धन की नयी खेप!- नरेंद्र



 धन कभी सफेद नहीं होता है
धन श्रम शक्ति के लाल रक्त और 
रंगहीन पसीने से पैदा किया गया
 साधनों का अंबार है 
जो  बैंक और तिजोरी में पहुंचकर
 पूंजी बन जाता है, 
 पूंजीपतियों के हाथ में जाकर 
मशीन और कारखाना बन जाता है,
 वह फिर से श्रम शक्ति के 
लाल रक्त और रंगहीन पसीने को
 गतिशील करता है.

धन वह है जिसे
मजदूरों  की धमनियों में बहती
धारा की यह रफ्तार
एसेम्बली लाइन और रोबोट के सहारे
रोज रोज प्रति पल
नए साधनों को पैदा कर 
माल के रूप में
बाजार भेजता है.

दावानल की तरह फूंफकारता 
यह बाजार तुम्हारा है
बाजार का माल तुम्हारा है
दैत्याकार कारखाने तुम्हारे हैं
मशीन  तुम्हारे हैं
बैंक तुम्हारे हैं
तिजोरी तुम्हारी है
इन सबों में कैद 
सब माल तुम्हारा है.

कैदी हम भी हैं
बाजार से लेकर बैंक तक में
कारखाने से लेकर
अनाज की मंडियों तक में
हम पंक्तियों में खड़ा हैं
अपना माल बेचने के लिए
माल को धन कहो या
श्रम शक्ति
उसका रंग तो लाल है
या वह रंगहीन है
फिर  तुम्हीं कहो 
उसे काला कौन बनाता है?

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