"दरबारे वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगे।
ऐ खाकनशीनों उठ बैठो,वो वक़्त करीब आ पहुंचा है,
जब तख़्त गिराए जायेंगे,जब ताज उछाले जायेंगे।
अब टूट गिरेंगी जंजीरें,अब ज़िन्दानों की ख़ैर नहीं,
जो दरया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जायेंगे।
कटते भी चलो,बढ़ते भी चलो बाजू भी बहुत हैं सर भीबहुत,
चलते भी चलो के अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे।
ऐ ज़ुल्म के मातों लब खोलो, चुप रहने वालों चुप कब तक,
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा, कुछ दूर तो नाले जायेंगे।"
-फैज अहमद फैज।
(30-11-2020)
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