1. अधिकांश मिहनतकस गरीब लोग चाहते है कि उनके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़े लेकिन उन जैसों के लिए प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढा पाना बहुत मुश्किल है। बड़े प्राइवेट स्कूलों में बच्चे पढ़ाने से तो आधे से ज्यादा वेतन खत्म हो जाएगा और सरकारी स्कूल में पढाई अच्छी नही है।
2. सरकार शिक्षा का निजीकरण कर रही है, इसका सीधा मतलब है- शिक्षा सिर्फ कुछ मुट्ठी भर लोगो के लिये मुनाफा कमाने का अवसर प्रदान करेगा जब कि विशाल गरीब मिहनतकस जनता अपने बच्चों को आर्थिक कारणो से इन निजी स्कूलों में भेजने में असमर्थ रहेगी।
3. नई शिक्षा नीति में सरकारी स्कूलों की शिक्षा में सुधार या उनकी संख्या में वृद्धि को ले कर कोई चर्चा नही है जबकि इस देश बहुसंख्यक मजदूर जनता के बच्चे अपनी शिक्षा इन्ही सरकारी स्कूलों से ले पाते है।
4. 'नई शिक्षा नीति' का दस्तावेज खुद स्वीकार करता है कि देश में अब भी 25% यानी 30 करोड़ से ऊपर लोग अनपढ़ हैं फिर भी इसमें शिक्षा की सार्वभौमिकता का पहलू छोड़ दिया गया है। यानी शिक्षा की पहुंच को आखिरी आदमी तक ले जाने की कोई ज़रूरत नहीं।
5. सरकार का सारा ध्यान इस बात पर है कि शिक्षा के क्षेत्र को एक मुनाफे का सेक्टर (Profitable Sector) बनाने के लिये सरकारी खर्च बढाना (वर्तमान 3% से 6% करने का प्रस्ताव) ताकि शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ते कॉर्पोरेट और निजी निवेश का मुनाफा सुनिश्चित किया जा सके।
6. नई शिक्षा नीति में शिक्षा के क्षेत्र में निवेश कर रहे शेयर होल्डरों, कॉर्पोरेट निवेशकों के हितों को प्राथमिकता दी गयी है, "सबको शिक्षा" का राष्टीय उद्देश्य अब बहुत पीछे छूट गया है, शिक्षा अब बाजार में बिकने वाला एक माल बन गया है। शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे अधिकांश शिक्षकों का बेतहासा शोषण और कॉर्पोरेट निवेशकों के मुनाफे का पोषण- यह है नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य।
7. कोरोनाकाल मे डिजिटल तकनीक के प्रयोग की बाध्यता के चलते बहुत सारे प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक सड़क पे आ चुके हैं। नई शिक्षा नीति डिजिटल तकनीक के व्यापक प्रयोग की बात करता है। यह शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त बेरोजगारी को और बढ़ाएगी। इसके अलावे, बहुत से बच्चे डिजिटल डिवाइस और इंटरनेट अफ़्फोर्ड नही करने के चलते इस तरह की शिक्षा से वंचित हो जाने को विवश हो जाते है।
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