वी.एम. मोलोतोव के एक पत्र पर कामरेड विजय सिंह की यह टिपण्णी रिवोल्युशनरी डेमोक्रेसी, वॉल्यूम २, संख्या 2, सितम्बर १९९६ में अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी. प्रस्तुत है उसका हिंदी अनुवाद.
वी.एम. मोलोतोव के एक पत्र पर टिपण्णी
विजय सिंह
इस पत्रिका के पाठकों को यह पता हैं कि मोलोतोव ने सोवियत कवि फेलिक्स चुयेव के साथ अपनी बातचीत में लेनिन के विचारों का बचाव किया था. 1 नीचे दिए गये कोम्मुनिस्ट को लिखे अपने पत्र में मोलोतोव लेनिन की अवस्थिति का बचाव करते हुए कहते है कि सर्वहारा की तानाशाही उस समय तक आवश्य रहनी चाहिए जब तक वर्ग विलुप्त न हो जाएँ. लेनिन ने कहा था कि सोवियत रूस ने अक्टूबर क्रांति में जमींदारों और पूंजीपतियों को परास्त किया है लेकिन इसे अभी भी फैक्टरी मजदूर और किसान के बीच के अंतर को खत्म करना है. जबतक सभी सर्वहारा नहीं बन जाते, तबतक समाजवाद के अन्दर वर्गों का उन्मूलन नहीं हो सकता. माल अर्थव्यवस्था का उन्मूलन समाजवाद के लिए अपरिहार्य है और जैसा कि हम जानते है, 'समाजवाद का मतलब माल अर्थव्यवस्था का उन्मूलन है'. 2
लेनिन की मृत्यु के बाद सी.पी.एस.यु(बी) ने उनकी अवस्थिति को जारी रखा और उसका बचाव किया. १९३९ में पार्टी की १८वीं कांग्रेस में मोलोतोव ने तर्क दिया था कि तीसरी पंचवर्षीय योजना एक वर्गहीन समाजवादी समाज के निर्माण और साम्यवाद में क्रमिक संक्रमण को पूरा करने के कार्य से जोड़ा जाना था. 3 स्तालिन ने भी लेनिन की अवस्थिति का बचाव किया था. १९३६ के सोवियत संविधान में सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के सिद्धांत को बरक़रार रखा गया था. 4 स्तालिन ने तर्क किया कि कुलकों के एक वर्ग के रूप में उन्मूलन के बाद सोवियत यूनियन में अब परस्पर विरोधी वर्ग नहीं था, समाज में मजदूरों और किसानो का सिर्फ दो दोस्ताना वर्ग था.5 इसका यह मतलब नहीं था, जैसा कि कुछ लोगो द्वारा दलील दी जाती है कि १९३० में एक वर्गहीन समाज का निर्माण कर लिया गया था. स्तालिन ने इसे भविष्य के एक कार्य-भर के रूप में देखा. नए सोवियत वुद्धिजीवियों के बारे में, जो मिहनतकस जनता के बीच से आये थे, स्तालिन ने तर्क दिया कि वे एक 'नए, वर्गहीन, समाजवादी समाज' के निर्माण में लगे है. 6 सोवियत समाज के वर्गीय चरित्र में हो रहे परिवर्तन के बारे में चर्चा करते समय स्तालिन यु.एस.एस.आर. में वर्गहीन समाज के अस्तित्व में होने की बात नहीं कहते बल्कि मजदूर वर्ग और किसान के बीच और इन वर्गों और बुद्धिजीवियों के बीच ख़त्म हो रही विभाजन रेखा और साथ में इन तबकों के बीच कम हो रहे राजनैतिक और आर्थिक अंतर्विरोध के बारे में कहते है.7 सी.पी.एस.यु. (बी) के १७वीं कांग्रेस के रिपोर्ट में स्तालिन ने सामजिक अंतरविरोधो के अस्तित्व के बारे में निम्न बाते कही:
'स्वाभाविक रूप से एक वर्गहीन समाज अपने आप नहीं आ सकता. इसे मिहनतकस लोगों के प्रयास से, तानाशाही शासन को मजबूत बना के, वर्ग संघर्ष को तीखा कर के, वर्गों का उन्मूलन कर के, पूँजीवाद के अवशेषों को खत्म कर के और आतंरिक और बाहरी दोनों तरह के दुश्मनों से लड़ कर बनाना और प्राप्त करना पड़ता है. '9
यहाँ प्रकाशित मोलोतोव के पत्र उस सैद्धांतिक और राजनीतिक टकराव के सारतत्व को स्पष्ट करने में मदद करता है जो मोलोतोव और ख्रुश्चेव गुट के बीच फेब्रुअरी, १९५५ में युएसएसआर में समाजवादी विकास की अवस्था को ले कर हुआ था. युएसएसआर के सर्वोच्च सोवियत में मोलोतोव ने निम्न बाते कही थी:
'सोवियत संघ के साथ, जहां 'समाजवादी समाज की नींव पहले से ही निर्मित किया गया है, लोक जनतांत्रिक व्यवस्थाएं भी है जिसने समाजवाद की ओर, पहला, लेकिन काफी महत्वपूर्ण कदम बढाई है.' 10
'सर्वहारा की तानाशाही के युग में अर्थनीति और राजनीती' में दिए गए लेनिन के विचारो के आलोक में मोलोतोव कहना चाह रहे थे कि युएसएसआर में समाजवाद का केवल नीव रखा गया था और कि एक पूर्ण वर्ग विहीन समाजवादी समाज बनाने का कार्यभार अभी पूरा किया जाना था इसके विपरीत ख्रुश्चेव ने दलील दी कि समाजवादी समाज का भवन पहले ही तैयार कर लिया गया था. सीपीएसयु के बहुमत नेतृत्व के लेनिनवाद से नाता तोड़ लेने के चलते मोलोतोव को पीछे हटना पड़ा. एक सुनियोजित तरीके से ख्रुश्चेव ने सर्वहारा की तानाशाही की जगह 'पूरे लोगों के लिए राज्य' ले आया, और समाजवाद के तहत वर्गों और वस्तु प्रणाली के उन्मूलन की आवश्यकता से इनकार किया.11
अन्यत्र, मोलोतोव ने ब्रेजनेव काल को समझने के लिए लेनिन के विचारों के निहितार्थ की ओर संकेत किया जब 'विकसित समाजवाद' की अवस्था चर्चा में थी. जबकि लेनिन ने समाजवाद के तहत वर्गों के उन्मूलन की आवश्यकता पर बल दिया था, ग्लेज़ेर्मन जैसे दार्शनिक विचारकों ने दलील दी कि यह केवल दूर भविष्य के साम्यवाद में हो सकता है.12 मोलोतोव स्तालिन की अपनी अंतिम महत्वपूर्ण रचना यूएसएसआर में समाजवाद की आर्थिक समस्याएं में सविस्तार से वर्णित अवधारणा का बचाव करना जारी रखते है कि सम्पति के दो रूपों राजकीय और सहकारी के अस्तित्व में होने तक और माल और मुद्रा सम्बन्ध के अस्तित्व में रहने तक, सोवियत समाज में पूर्ण समाजवाद नहीं हो सकता. 13
मोलोतोव के कोम्मुनिस्ट को लिखे पत्र के अध्यन से से चीन के पीपुल्स गणराज्य के राज्य और अर्थव्यवस्था में घटी समानांतर घटनाओं का एक लेनिनवादी मूल्यांकन करने में मदद मिलती है.
मध्य, दक्षिण-पूर्वी यूरोप और चीन, कोरिया और वियतनाम के जन-लोकतन्त्रो ने मुक्ति के बाद सर्वहारा की तानाशाही और समाजवाद के लिए संक्रमण की तत्काल स्थापना होते नहीं देखा था। वे विभिन्न चरणों से गुजरे और इस पर निर्भर (जन-लोकतन्त्रो के- अनु.) वर्गीय चरित्र में परिवर्तन हुआ. पहला चरण साम्राज्यवाद विरोधी और सामंतवाद विरोधी क्रांति का था जिसके रास्ते मजदूर वर्ग की अग्रणी भूमिका के साथ मजदूर वर्ग और किसानों की तानाशाही जैसा कुछ जनवादी-लोकतंत्र क्रांतिकारी सत्ता के अंग के रूप में पैदा हुआ. इस चरण में नई लोकप्रिय सत्ता ने अपनी तेज धार का निर्देशन साम्राज्यवादी उत्पीड़न, फासीवाद के खिलाफ के साथ ही साथ, देश के भीतर साम्राज्यवाद और फासीवाद के अवलंब- बड़े एकाधिकार पूंजी और जमींदारों - के खिलाफ किया। दूसरा चरण समाजवादी क्रांति का था जिसके लिए सर्वहारा की तानाशाही की स्थापना की आवश्यकता थी. मध्य और दक्षिण-पूर्वी यूरोप के देशों ने, यूगोस्लाविया के अपवाद के साथ, सर्वहारा की तानाशाही स्थापित किया और १९४८ में समाजवाद के लिए संक्रमण शुरू कर दिया. चीन, कोरिया और वियतनाम के जनवादी-लोकतंत्र स्टालिन काल की समाप्ति तक सर्वहारा की तानाशाही के कार्यों को पूरा नहीं किया. 14
चीन में जन लोकतान्त्रिक राज्य के तत्काल कार्यभारो के पहले चरण में सामंती जमींदारों और बड़े दलाल पूंजीपति वर्ग के खिलाफ, साम्राज्यवाद के खिलाफ निर्देशित किया गया था जो विदेशी पूंजी के एक प्रतिनिधि थें. जन-लोकतान्त्रिक सरकार ने चीन में साम्राज्यवादी देशों के सभी विशेषाधिकार रद्द कर दिए, बड़े दलाल पूंजीपति वर्ग की पूँजी जब्त कर ली और राजकीय संपत्ति में बदल दिया; स्वामित्व के अर्द्ध सामंती व्यवस्था और भूमि के उपयोग का उन्मूलन किया; और भूमि के कब्जे किसानों को हस्तांतरित किया; इसने राज्य और सहकारी संपत्ति की और मजदूरों, किसानों और राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के आर्थिक हितों और निजी संपत्ति की रक्षा की; इसने औद्योगीकरण की नीति अपनाई.
मध्य और दक्षिण-पूर्वी यूरोप के जनवादी लोकतन्त्रो और चीन के पीपुल्स गणराज्य के बीच सीपीएसयु (बी) ने निम्नलिखित शब्दों में अंतर किया है:
'यह ध्यान में रखते हुए कि चीनी जनवादी गणराज्य एक जनवादी लोकतान्त्रिक राज्य है और यह आम लक्ष्य और कार्यों के लिए पूरे लोकतांत्रिक शिविर के साथ लड़ता है, कोई भी चीन में और मध्य और दक्षिण-पूर्वी यूरोप के देशों में स्थित जनवादी-लोकतंत्रों के बीच अंतर देखे वगैर रह नही सकता. यह सब को मालूम है कि मध्य और दक्षिण-पूर्वी यूरोपीय देशों में जनवादी -लोकतांत्रिक शासन समाजवाद की नींव के निर्माण के संघर्ष में सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के कार्यों को कर रहा है.
'वर्तमान चरण में, चीन में जनवादी लोकतंत्र सर्वहारा की तानाशाही का एक रूप नहीं है। समाजवादी निर्माण अभी तक चीन में तत्काल कार्यभार नहीं है.'15
चीन में साम्राज्यवादी हितों की समाप्ति और कृषि क्रांति के पूरा होने का मतलब था कि चीन में सामंतवाद और साम्राज्यवाद विरोधी कार्यभार को १९५२ तक पूरा कर लिया गया था. चीन का जनवादी गणतंत्र सर्वहारा की तानाशाही की स्थापना और समाजवाद के लिए संक्रमण के कगार पर खड़ा था:
'वर्तमान में, मजदूर वर्ग के नेतृत्व में चीनी लोग समाजवादी क्रांति और समाज के समाजवादी परिवर्तन के कार्यों को पूरा करने के लिए तैयार है.' 16
लेनिन के लेख सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के युग में अर्थनीति और राजनीति से स्पष्ट है कि सर्वहारा की तानाशाही समाजवाद में संक्रमण के लिए एक पूर्व शर्त होता है। ये मान्यताएं जन-लोकतांत्रिक देशों के लिए भी आवश्यक थे. दिमित्रोव ने उल्लेख किया था कि समाजवादी अर्थव्यवस्था के संगठन के लिए पूंजीवादी तत्वों के खिलाफ सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के बिना समाजवाद में 'संक्रमण नहीं किया जा सकता.'17 समाजवादी तर्ज पर विकास के लिए यह आवश्यक होता है कि शहरी पूंजीपति वर्ग को आर्थिक रूप से नष्ट किया जाये और गांव के पूंजीपति कूलक को मेहनतकस किसानों के एक शोषक के रूप में जमे आर्थिक पदों से हटाया जाये जबकि सामूहिक खेती का विकास उनके पूरे उन्मूलन के लिए स्थिति पैदा करती है।18 समाजवाद में संक्रमण के लिए पूंजीपति वर्ग की राजनैतिक हार और कम्युनिस्टों के नेतृत्व में मजदूर वर्ग के हाथो में पूर्ण राज्य सत्ता का केद्रित होना आवश्यक होता है. 19
१९५२ के बाद क्या चीन जनवादी -लोकतंत्र के राज्य द्वारा सर्वहारा की तानाशाही के कार्यों को पूरा किया था? १९५४ के चीन का संविधान समाजवादी प्रकार के एक 'संविधान' के रूप में वर्णित किया गया था.20 माओ ने दृढ़तापूर्वक कहा कि सर्वहारा की तानाशाही पर लेनिन के सिद्धांत किसी भी तरह से 'पुराना' नही हुआ है.'21 फिर भी सीपीसी राज्य सत्ता से मध्यम पूंजीपति वर्ग के राजनैतिक दलों को हटाने से बचता रहा. ''समाजवादी संविधान' के अंतर्गत 'जनवादी पार्टियों' को रखने का - लेनिन और दिमित्रोव के विपरीत - माओ न बचाव किया था.22 जैसा कि जाना जाता है राष्टीय जन कांग्रेस में मध्यम पूंजीपति वर्ग के राजनीतिक दलों को आजतक बरकरार रखा गया है. यह स्पष्ट रूप से स्थापित करता है कि जन लोकतान्त्रिक तानाशाही को सर्वहारा की तानाशाही में तब्दील नहीं किया गया था.
सर्वहारा की तानाशाही स्थापित करने की असफलता का तार्किक परिणाम यह था कि आर्थिक आधार, चीनी समाज के उत्पादन के संबंध, एक समाजवादी समाज का नींव बिछाने की दिशा में विकसित होने में विफल रहा। मध्यम पूंजीपति वर्ग जो राज्य- निजी संयुक्त उद्यमों के रूप में प्रतिबंध के अधीन थे और बाद में सांस्कृतिक क्रांति के दौरान अपनी पूंजी पर ब्याज बारह साल के लिए स्थिर रहने के रूप में अत्यंत कठिन आर्थिक प्रतिबंध का सामना किये, आर्थिक रूप से समाप्त नहीं किया गए थे. माओत्से तुंग १९४९ के अपने बयान से पीछे हट गए कि समाजवाद के तहत राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के उद्यमों का राष्ट्रीयकरण किया जाएगा.23 यह बयान दिमित्रोव की समझ के अनुरूप दिया गया था कि समाजवादी तर्ज पर विकास के लिए आवश्यक है कि शहरों में 'शोषकों वर्गों के अंतिम अवशेष' - शहरी पूंजीपति वर्ग – को आर्थिक रूप से 'नष्ट' किया जायेगा.24 उन्होंने तर्क दिया कि यह जरूरी था क्योंकि समाजवाद की राह पर 'पूंजीवाद के आर्थिक जड़ों का अभी तक उन्मूलन नहीं होता हैं; पूंजीवादी अवशेष अभी भी जारी रहते है, और विकसित होते है और उनके शासन बहाल करने की कोशिश करते है.'25
सीपीसी का समझौतावादी रुख जमींदारों और अमीर किसानों तक बढ़ा दिया गया. मार्क्सवाद की शिक्षायें सहकारी खेती की सदस्यता छोटे किसानों तक सीमित करती है. यह फ्रांस और जर्मनी में किसान प्रश्न में एंगेल्स की चर्चा से स्पष्ट है.26 तदनुसार, सोवियत संघ में अमीर किसानों को सामूहिक खेती में सामान्य रूप में स्वीकार नहीं किया गया था।27 जब १९४८ में यूगोस्लाविया में 'सहकारी खेती' स्थापित किए गए थे जिसमे कुलको को सदस्यों के रूप में शामिल गया किया था, कोमिन्फोर्म ने उल्लेख किया कि 'ग्रामीण इलाकों में अनिवार्य छद्म सहकारी समितियां कुलको और उनकी एजेंसियों के हाथों में हैं और कि मिहनतकस किसानों के व्यापक जनता के शोषण के लिए एक उपकरण का प्रतिनिधित्व करते हैं।'28 चीन में १९५५ के बाद पूर्व जमींदारों और अमीर किसानों को कृषि सहकारी समितियों में सदस्य बनने के लिए अनुमति दी गई थी.29 कृषि सहकारिता के उत्सर्ग के दौरान ज्यादातर अमीर किसानों और पूर्व जमींदारों को सहकारी समितियों में ले लिया गया था.30 उत्पादन के इन संबंधों को १९५८ में स्थापित कृषि कम्यून्स में भी जारी रखा गया था.30
सर्वहारा की तानाशाही के युग में अर्थनीति और राजनीति में लेनिन द्वारा किए गए विश्लेषण के संदर्भ में चीन का जनवादी गणतंत्र सर्वहारा की तानाशाही के कार्यों को पूरा करने में और पूंजीपतियों और जमींदारों की सत्ता को उखाड़ फेंकने का कार्य पूरा करने में विफल रहा- जिसे लेनिन ने 'सबसे कठिन' काम नहीं माना था। निश्चित रूप से, चीनी जनवादी गणतंत्र फैक्टरी मजदूर और किसान के बीच के अंतर को खत्म करने का कार्य आरम्भ नहीं कर सका जो अकेले ही समाजवाद के तहत वर्गों और वस्तु संबंधों के उन्मूलन करने की ओर ले जा सकता था.
कोम्मुनिस्ट को लिखे मोलोतोव का पत्र इस प्रकार एक असाधारण महत्व का हो जाता है जब हम सोवियत संघ और चीन के जनवादी गणराज्य में पूंजीवाद की बहाली का विश्लेषण करने का प्रयास करते है.
सन्दर्भ
१ सी एन सुब्रमण्यम 'वी एम् मोलोतोव और सोवियत संघ में समाजवाद के परिसमापन 'रिवोल्युशनरी डेमोक्रेसी', वॉल्यूम १, नंबर १ अप्रैल, १९९५, पृ २०-२९
२ वी आई लेनिन संगृहीत रचनाएं वॉल्यूम १५ मास्को मास्को, १९७३, पृ १३८
३ 'XVIII S"ezd vsesoyuznoi kommunisticheskoi party (b)', Stenograficheskii otchet, Moscow, 1939, pp. 282-3.
४ 'सोवियत संघ के मसौदा संविधान पर' जे स्टालिन, मास्को, १९४५, पृ. ३०
५ वही., पृ.२१.
६ वही., पृ. १५.
७ पूर्वोक्त
८ जे स्टालिन, "लेनिनवाद की समस्याएं" मास्को, १९५४, पृ. ६३५
९ जे स्टालिन, रचनाएँ, वॉल्यूम १३, मास्को, १९५६, पृ ३५७
१० 'सोवियत संघ के सुप्रीम सोवियत की बैठक' फरवरी, ८ वीं और ९ वीं सोवियत समाचार बुकलेट, लंदन, १९५५, पृ. १९
११ अल्बर्ट रेसिस संप., 'मोलोतोव याद करते है' शिकागो, १९९३, पृ. ३४८-४९
१२ वही पृ.. ३८१-८२.
१३ वही पृ. ३८३-८४.
१४ ऐ आई सोबोलोव 'पीपुल्स डेमोक्रेसी, समाज के राजनीतिक संगठन का एक नया रूप' मास्को, १९५४, पृ १०
१५ 'चीन में पीपुल्स डेमोक्रेसी' प्रावदा, २३ सितंबर १९५०'चीन में पीपुल्स डेमोक्रेसी' में, कोमिन्फोर्म पर्त्रिका और प्रावदा के संपादकीय से, बंबई, १९५०, पृ १५
१६ ऐ आई सोबोलोव, पूर्वोक्त., पृ. ७७.
१७ जी दिमित्रोव 'बल्गेरियाई कम्युनिस्ट पार्टी के ५वी कांग्रेस में वितरित किया गया राजनीतिक रिपोर्ट', सोफिया, १९४९, पृ ९३
१८ वही., पृ. ७८.
१९ ऐ आई सोबोलोव, पूर्वोक्त. पृ. ८९.
२० 'माओ त्से तुंग की चयनित रचनाएँ' वॉल्यूम ५ बेजिंग १९७७ पृ. २९७
२१ पूर्वोक्त
२२ पूर्वोक्त.
२३ 'माओ त्से तुंग की चयनित रचनाएँ' वॉल्यूम ४ बेजिंग १९७५ पृ. ४१९
२४ जी दिमित्रोव पूर्वोक्त
२५ वही., पृ. ५२.
२६ कार्ल मार्क्स और फ्रेरिक एंगेल्स 'चयनित रचनाएँ' लंदन १९६८ पृ. ६४५
२७ 'कृषि सहकारी संघ की मॉडल विधियों' इन्प्रेकोर वोलुम १५ संख्या १३ २३ मार्च १९३५ पेज ३७०
२८ 'हत्यारों और जासूसों के हाथ में यूगोस्लाविया की कम्युनिस्ट पार्टी' सूचना ब्यूरो का संकल्प, "शांति, राष्ट्रीय आजादी के लिए संघर्ष, श्रमिक वर्ग एकता' में, बंबई, १९५०, पृ ५६
२९ 'माओ त्से तुंग की चयनित रचनाएँ' वॉल्यूम ५ बेजिंग १९७७ पृ. २७७
३० ची एन - 'कृषि सहयोग: उपलब्धि के कीर्तिमान', पीपुल्स चीन, अक्टूबर १९५६, पृ १३
कोम्मुनिस्ट पत्रिका के संपादक को
आदरणीय कामरेड संपादक!
मैं आपको अपनी पत्रिका में निम्न मूलशब्द "कोम्मुनिस्ट पत्रिका के संपादकीय बोर्ड को एक पत्र के रूप में" प्रकाशित करने का अनुरोध करता हू
वी मोलोतोव
१५ XI. ७७ मेरा टेलिफोन: १५६१-**-**
पुनश्च- मैं एक उत्तर के माध्यम से सूचित किये जाने का अनुरोध करता हूँ।
वी एम्
यह क्या है :सिद्धांत की लापरवाही, या कमी?
कुछ समय पहले २९ अक्टूबर को प्रावदा में एक लेख 'समाजवादी क्रांति पर लेनिन' प्रकाशित किया गया था जो दर्शन के डॉक्टर, प्रोफेसर ए कोसिचेव द्वारा हस्ताक्षरित था। यह लेख 'समाजवादी क्रांति पर वी. उल्यानोव (लेनिन)' शीर्षक के तहत एक संग्रह (दो खंडों में) के प्रकाशन के अवसर पर लिखा गया है. प्रो कोसिचेव के इस बेहद सतही लेख में निम्नलिखित उद्धरण पाया जा सकता है:
'जैसा कि लेनिन द्वारा पूर्वानुमान लगाया था, शोषक वर्गों के उन्मूलन की प्रक्रिया के पूरा होने के बाद सर्वहारा की तानाशाही का राज्य प्राकृतिक नियमो के अनुरूप सभी लोगों के लिए एक लोकतंत्र में, पूरे लोगों के राज्य में विकसित होता है'
प्रो कोसिचेव संकेत नहीं करते की कब और कहां लेनिन ने यह बात कही। लेनिन की रचना के दो संस्करणों में इस तरह का कुछ भी नहीं छपा है जिस पर यह लेख आधारित है. दर्शन के डॉक्टर कोसिचेव जो कुछ लेनिन के बारे में कहते हैं वह सब एक सौ फीसदी मनगढ़ंत बातें है। और फिर भी प्रावदा के संपादकीय बोर्ड, हो सकता है दयालुता बस, इस प्राध्यापकीय बकवास को प्रकाशित करती है। इस प्रश्न पर लेनिन की सटीक राय का पता लगाना मुश्किल नहीं है। लेनिन के विचारों में से कुछ ये हैं. १९१९ में लिखे लेख सर्वहारा की तानाशाही के दौर में अर्थनीति और राजनीति वॉल्यूम ३९[रूसी संस्करण, संपा- आरडी] में लेनिन ने लिखा है:
'समाजवाद का मतलब वर्गों का उन्मूलन होता है.'
''वर्गों को समाप्त करने के लिए पहले जमींदारों और पूंजीपतियों को उखाड़ फेंकना आवश्यक होता है. हमारे काम के इस भाग को पूरा कर लिया किया गया है, लेकिन यह केवल एक हिस्सा है, और इसके अलावा, सबसे कठिन हिस्सा नहीं है. दूसरे, वर्गों को समाप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि फैक्टरी मजदूर और किसानो के बीच के अंतर को समाप्त किया जाये, सभी को मजदूर बनाया जाये। यह सब कुछ एक ही बार में नहीं किया जा सकता. यह कार्य अद्वितीयता रूप से अधिक कठिन है और आवश्यक रूप से लंबा समय लेगा.'(पृ २७६ -२७७ [वी आई लेनिन, सकलित रचनाएँ, वॉल्यूम- ३०, मास्को, १९७४, अंग्रेजी संस्करण में पृ. ११२]
इसी लेख में लेनिन फिर समाजवाद के सार की व्याख्या करते है और बताते हैं कि समाजवाद का निर्माण कर रहे देश की आंतरिक स्थितियों की दृष्टि से, समाजवाद की जीत के लिए क्या आवश्यक है, (अर्थात् सर्वहारा वर्ग की क्रांतिकारी तानाशाही की आवश्यकता).
इस बारे में यहाँ लेनिन कहते है:
'समाजवाद का मतलब वर्गों का उन्मूलन है. सर्वहारा की तानाशाही वर्गों को समाप्त करने के लिए जो कुछ कर सकता था वह सब कुछ किया है. लेकिन वर्गों को एक ही झटके में समाप्त नहीं किया जा सकता.
'और वर्गे अभी भी बनी रहती है और सर्वहारा की तानाशाही के युग में बनी रहेगी. वर्गों के विलुप्त होते ही तानाशाही अनावश्यक हो जाएगा. सर्वहारा की तानाशाही के बिना वे विलुप्त नहीं होगी.'(पृ २७९ [वी आई लेनिन, सेशन सीआईटी पृ. ११४-११५ अंग्रेजी संस्करण में)
'इनसे (और साथ ही अन्य) लेनिन के उद्दहरण से समाजवाद और समाजवादी राज्य पर लेनिन के विचारों को निर्धारित करना मुश्किल नहीं है. लेनिन के शब्दों की तुलना उन शब्दों से करने पर जो उल्लेखित लेख में उद्धृत किया गया है, यह स्पष्ट है कि प्रो कोसिचेव के लेनिन के संदर्भ निराधार है. सबसे पहले, लेनिन निश्चित रूप से कहते हैं, 'समाजवाद का मतलब वर्गों का उन्मूलन होता है' इससे हम देख सकते हैं कि समाजवाद पूरी तरह से अस्तित्व में तभी आएगा जब वर्गे नष्ट हो जाएगी जब देश में वर्गों में समाज का विभाजन नष्ट हो जाएगा. कोसिचेव (कुछ अन्य लोगों की तरह) समझने में सक्षम नहीं हैं या इस बात को समझना चाहते. वे केवल शोषक वर्गों के उन्मूलन से संतुष्ट है और वर्गों के पूर्ण उन्मूलन के बारे में बस चुप रहते है. यह प्रोफेसर कोसिचेव, लेनिन के विचार का गलत अर्थ लगाते है, समाजवाद पर लेनिन के विचारो का बचाव करने की आड़ में मार्क्सवाद-लेनिनवाद की शिक्षाओं को विकृत करते है. दूसरे, संदेह के किसी भी प्रकार के लिए कोई गुंजाइश छोड़े वगैर समाजवाद के निर्माण और सर्वहारा की तानाशाही के बीच लेनिन सीधी और अटूट कड़ी बताते हैं. प्रोफेसर कोसिचेव (दुर्भाग्य से वे अकेले नहीं है) एक अलग स्थान पर खड़े है जो लेनिन का नहीं है. ऐसी स्थिति में लेनिन के नाम के तहत शरण लेने की आड़ में एक गैर-लेनिनवादी अवस्थिति छिपाने की अनुमति क्या किसी को दी जा सकती है?
निम्नलिखित प्रश्न उठता है: शायद सोवियत संघ में समाजवाद के निर्माण के ६० साल के काल में ऊपर उद्धृत लेनिन के विचारों की पुष्टि नहीं हुई है या पुराने हो गए हैं? तो फिर क्यों हम एक सीधे और ईमानदार तरीके से इसकी बात नहीं करते जैसा कि ऐसी हालात में लेनिन ने हमें सिखाया है.
जैसा कि स्पष्ट है इस तरह के सवाल दर्शन के के डॉक्टर प्रोफेसर कोसिचेव को परेशान नहीं करते. लेकिन वे (प्रश्न) ठीक ही कम्युनिस्टों के सामने खड़ा होते है, वे (प्रश्न) समाजवाद के लिए और साम्यवाद की जीत के लिए लड़ रहे सभी के सामने खड़ा होते है.
जहा तक प्रावदा में कोसिचेव के लेख का संबंध है- वास्तव में यह क्या है - प्राध्यापकीय मुक्त इरादों वाली लापरवाही या राजनीतिक सिद्धांत की कमी, या एक साथ दोनों?
वी मोलोटोव (१९०६-१९६२) सीपीएसयु के सदस्य.
१५ नवंबर १९७७
'मार्क्सवादी' नंबर २, १९९४, पृ ११२-११३
नीलाक्षी सूर्यनारायण द्वारा मूल रूसी भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद
रिवोल्युशनरी डेमोक्रेसी, वॉल्यूम २, संख्या 2, सितम्बर १९९६ में प्रकाशित
प्रोलेतारियन क्रिटिक द्वारा अंग्रेजी से हिंदी में अनुवादित
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