चंद्रयान 3 की उपलब्धि वास्तव में शासक वर्ग की है, जिसमें बहुराष्ट्रीय निगम और उनकी सरकारें शामिल हैं। चंद्रयान 3, एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, लेकिन यह भी अंतरिक्ष में एक नए बाजार के निर्माण में एक महत्वपूर्ण कदम है।
शीत युद्ध के दौरान, अंतरिक्ष की खोज एक सैन्य प्रतिद्वंद्विता थी। लेकिन अब, अंतरिक्ष को एक आर्थिक संसाधन के रूप में देखा जा रहा है। चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों में मूल्यवान संसाधनों के भंडार हो सकते हैं, जैसे कि पानी, खनिज और धातु।
चंद्रयान 3 के पीछे एक प्रमुख मकसद इन संसाधनों तक पहुंच हासिल करना है। इसरो ने पहले ही चंद्रमा पर पानी की खोज की घोषणा की है। भविष्य में, इसरो और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां चंद्रमा और मंगल पर अन्य संसाधनों की तलाश में होंगी।
इन संसाधनों तक पहुंच प्राप्त करने के लिए, सरकारें बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ साझेदारी कर रही हैं। इन निगमों को चंद्रयान 3 जैसे अभियानों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
चंद्रयान 3 की सफलता से बहुराष्ट्रीय निगमों को अंतरिक्ष में अपना पैर जमाने में मदद मिलेगी। इन निगमों के पास चंद्रमा और मंगल पर संसाधनों के शोषण के लिए तकनीक और धन होगा।
भारतीय जनता के लिए, चंद्रयान 3 की उपलब्धि केवल एक दिखावा है। इस अभियान पर खर्च किए गए पैसे का लाभ बहुराष्ट्रीय निगमों को होगा। भारतीय जनता को केवल चंद्रयान 3 जैसी उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए छोड़ दिया जाएगा, जबकि बहुराष्ट्रीय निगम अंतरिक्ष से मुनाफा कमाने के लिए तैयार होंगे।
यहां कुछ विशिष्ट तरीके दिए गए हैं जिनसे चंद्रयान 3 बहुराष्ट्रीय निगमों को लाभान्वित कर सकता है:
चंद्रमा और मंगल पर संसाधनों के शोषण के लिए निगमों को आवश्यक तकनीक और जानकारी प्रदान करना।
चंद्रमा और मंगल पर आधारभूत ढांचे के विकास के लिए निवेश करना।
चंद्रमा और मंगल पर संसाधनों के खनन और परिवहन के लिए अनुबंध प्रदान करना।
चंद्रयान 3 की सफलता से स्पष्ट है कि अंतरिक्ष की खोज एक नई पूंजीवादी साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा का स्रोत बन रही है। भारत सरकार और अन्य सरकारें बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ मिलकर अंतरिक्ष में नए बाजारों का निर्माण कर रही हैं। इस प्रक्रिया में, भारतीय जनता के पैसे का उपयोग निगमों को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है।
आधुनिक उद्योग और विज्ञान के विकास ने काफी प्रगति की है, लेकिन इसने गरीबी और सामाजिक अशांति की नई समस्याएं भी पैदा की हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि समाज की उत्पादक शक्तियां (हमारे पास जो तकनीक और ज्ञान है) ने उत्पादन के सामाजिक संबंधों (जिस तरह से हम अपनी अर्थव्यवस्था और समाज को व्यवस्थित करते हैं) को पीछे छोड़ दिया है।
इससे दोनों के बीच विरोध पैदा हो गया है, जो पूंजीवाद का बुनियादी विरोधाभास है।
कुछ लोग आधुनिक उद्योग से छुटकारा पाकर या पूराने समाज में वापसी करके इस समस्या को हल करने का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन ये समाधान काम नहीं करेंगे।
समस्या को हल करने का एकमात्र तरीका एक नई सामाजिक व्यवस्था बनाना है जिसमें उत्पादक शक्तियों को श्रमिक वर्ग द्वारा नियंत्रित किया जाए।
यह कथन 1856 में दिए गए कार्ल मार्क्स के एक भाषण से है। इसमें वह पूंजीवाद के विरोधाभासों का विश्लेषण कर रहे थे और तर्क दे रहे थे कि उन्हें हल करने का एकमात्र तरीका समाजवाद है।
यह कथन आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि हम गरीबी और सामाजिक अशांति की उन समस्याओं का सामना कर रहे हैं जिनकी मार्क्स ने पहचान की थी। इन समस्याओं का समाधान अभी भी मजदूर वर्ग के हाथों में है, जिन्हें एकजुट होकर समाजवादी क्रांति के लिए लड़ना होगा।
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