बीएचयू ट्रौमा सेन्टर की जमीन सरकारी है, विल्डिंग सरकारी है, पानी सरकारी है, बिजली सरकारी है, डाक्टर सरकारी हैं। सुरक्षा व्यवस्था का खर्च सरकारी है। मगर ट्रौमा सेंटर की विल्डिंग के अन्दर सभी मेडिकल स्टोर प्राइवेट हैं, दवाओं एवं सर्जिकल सामानों के सप्लायर और निर्माता कम्पनियां प्राईवेट हैं, अल्ट्रासाउंड मशीन प्राईवेट है, एक्स-रे मशीन प्राईवेट है, सीटी स्कैन प्राईवेट है, एमआरआई प्राईवेट है। मतलब यह है कि जहाँ-जहाँ से मुनाफा चूसना है, वहाँ-वहाँ सब प्राईवेट है और जहाँ-जहाँ खर्च का भारी बोझ वहन करना है वहाँ सब सरकारी है। यानी 'मीठा-मीठा गप्प तीखा-तीखा थू…।'
निजी संस्थाएं सरकारी संस्थाओं के माध्यम से सिर्फ मुनाफा ही नहीं कमाती हैं बल्कि अस्पताल के अधिकारियों व डाक्टरों को कमीशन आदि देकर भ्रष्ट भी बनाती हैं। एक मरीज ने बताया कि उसके जांघ की टूटी हड्डी का एक ही रात में चार बार एक्सरे करवाया गया। फिर आपरेशन के बाद भी एक ही रात में दो बार एक्स-रे करवाया गया। यह बात जग जाहिर है, हर एक्सरे पर डाक्टर का कमीशन बँधा होता है। जितनी बार एक्स-रे होगा कमीशन उतनी ही बार मिलेगा।
भारी कमीशन वाली मंहगी दवाएं और सर्जिकल सामान खरीदने के लिए मरीज बाध्य होता है। यदि डाक्टर के बताए मेडिकल से दवा न लीजिये तो उसे कमीशन नहीं मिल पाता। इसपर डाक्टर ऊपरी तौर पर तो मरीज को कुछ बुरा-भला नहीं बोलता। कभी-कभी तो वह बड़े प्यार से बोलता है मगर अन्दर ही अन्दर वह जला-भुना रहता है। इसी लिए जो मरीज उसके मनपसंद दुकान से दवा आदि नहीं खरीदते बल्कि सस्ते के चक्कर में दूसरी दुकान से खरीद लेते हैं। ऐसे मरीजों के आपरेशन मामले में कोई न कोई कारण दिखाकर उसके आपरेशन वगैरह में वह डाक्टर लेट-लतीफी या हीलाहवाली करता है। तथा उसे मँहगी से मँहगी दवाएँ लिख देता है। एक मरीज ने बताया कि वह आपरेशन के लिए लगातार दो दिन आठ-आठ घंटे तक लाईन में लगा रहा, उसका नंबर आते-आते आपरेशन बन्द हो गया, पूछने पर पता चला कि अब वो डाक्टर तीन दिन बाद बैठेंगे, तब आपरेशन होगा। इसी तरह बहुत से मरीज परेशान रहते हैं।
जो हाल बीएचयू ट्रौमा सेन्टर का है। लगभग वही हाल पूरे देश के सरकारी अस्पतालों व सरकारी ट्रौमा सेन्टरों का है।
सरकारी संस्थाओं व सम्पत्तियों का इस्तेमाल जनता की सेवा के लिए नहीं, बल्कि निजी मुनाफे और लूट को बढ़ाने के लिये हो रहा है। स्कूल, अस्पताल, बैंक, खान-खदान, यातायात के संसाधन जो भी जहाँ तक सरकारी हैं, उनका भी कमोवेश यही हाल है। सब के सब निजी पूंजी की सेवा में समर्पित हैं। इसी लिए सरकारी संस्थानों में घाटा होता है। अधिकांश सरकारी संस्थानों का तो ये हाल है, कि जनता बहुत मजबूरी में ही वहां जाना चाहती है।
इसी दुर्व्यवस्था से चिढ़कर कुछ लोग कहते हैं कि सब कुछ प्राईवेट हो जाना चाहिए। सरकार यही तो आप से कहलवाना चाहती है। इसी परिस्थिति का फायदा उठाकर सरकार अपना खर्च चलाने के लिए सरकारी संस्थानों को बेच डालती है।
अगर निजी अस्पतालों की बात करें तो इनमें अलग तरीके की लूट हो रही है कुछ अपवादों को छोड़कर निजी अस्पतालों में भी तो एक से एक नरपिशाच बैठे हुए हैं। जो मुर्दों से भी धन उगाही कर लेते हैं।
निजी में भी लूट सरकारी में भी लूट, जनता जाए किधर? जब कुछ लोग कहते हैं कि कल-कारखानों, खान-खदानों, स्कूलों, अस्पतालों, बैंकों… आदि का सरकारीकरण या राष्ट्रीयकरण होना चाहिये। तो जनता इस पर सशंकित होती है। सरकारी हों जाने पर भी लूट, शोषण, उत्पीड़न से छुटकारा नहीं मिलने वाला।
अत: इस व्यवस्था में सरकारीकरण या राष्ट्रीयकरण भी धोखा है। यदि सरकार पूंजीपतियों के हाथ में हो तो सरकारीकरण या राष्ट्रीयकरण भी लूट और शोषण का जरिया बन जाता है।
जो लोग सरकार से सरकारीकरण या राष्ट्रीयकरण की मांग करके सब कुछ ठीक हो जाने का दावा कर रहे हैं, यह उनका काल्पनिक विचार है। क्योंकि पूंजीपति वर्ग सरकारीकरण को अधिक बढ़ावा नहीं देगा और यदि बढ़ावा देगा तो उस सरकारीकरण का भी अपना मुनाफा बढ़ाने में इस्तेमाल करके और अधिक मजबूत हो जाएगा।
डा. अम्बेडकर के नाम पर जो लोग राष्ट्रीयकरण या सरकारीकरण का प्रचार कर रहे हैं, वे जनता के भीतर खासतौर पर दलितों के दिमाग में मौजूदा संविधान की खुमारी उतार कर राष्ट्रीयकरण की खुमारी ठूंसने की कोशिश कर रहे हैं। सही मायने में वे जनता की चेतना को आगे बढ़ाने का काम कत्तई नहीं कर रहे हैं, वे तो 'गांजा' का नशा उतारने के लिए 'भांग' का नशा चढ़ाने जैसा काम कर रहे हैं।
वास्तव में निजी सम्पत्ति की व्यवस्था से उत्पन्न मौजूदा समस्याओं को हल करने के लिए सरकारीकरण या राष्ट्रीयकरण नहीं बल्कि समाजीकरण करना जरूरी है। इसके लिए भारत की परिस्थिति के अनुसार समाजीकरण की प्रक्रिया अपनाना जरूरी है। सरकारीकरण या राष्ट्रीयकरण एक तरह की लफ्फाजी है। कई देशों में शिक्षा, चिकित्सा, यातायात आदि सरकारी है मगर वहाँ भी जनता की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। वहाँ भी शोषण, दमन, उत्पीड़न, मंहगाई, बेरोजगारी..... आदि समस्याएँ बढ़ती रही हैं।
मौजूदा समस्याओं के समाधान के लिए सरकारीकरण नहीं समाजीकरण जरूरी है। यह काम मजदूरवर्ग की क्रान्तिकारी कम्यूनिस्ट पार्टी ही कर सकती है। मजदूर वर्ग की पार्टी की सरकार ही समाजवादी व्यवस्था लागू करते हुए उत्पादन के संसाधनों का समाजीकरण करके मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, शोषण, उत्पीड़न आदि अनेकों समस्याओं का समाधान कर सकती है। अत: समाजवाद के अतिरिक्त समाधान का कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
रजनीश भारती
जनवादी किसान सभा
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