Wednesday, 2 March 2022

एमबीबीएस

काश, भारत मे एमबीबीएस की सिर्फ एक सीट होती।

तो नीट देने वाले 20 लाख बच्चो में एक आइंस्टीन होता, बाकी 19,99,999 गधे। लेकिन नीट तो 8 लाख बच्चे पास कर देता है। पिछले साल किया। 

अब 8 लाख नीट पास बच्चे में से 1 से  35 वे हजार तक, सरकारी कालेज में जाएंगे, अफोर्डेबल फीस पर। और  35 से 70 वें हजार तक प्राइवेट में... 
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लेकिन ऐसा नही होता।  क्योकि 35 वे हजार के आगे फीस अनअफोर्डेबल है। अब सम्भव है 36 हजारवां बच्चा डॉक्टरी का सपना  छोड़ दे।

और ढाई लाख वां बच्चा सीट खरीद ले। यही सिस्टम है। 
यह भी सम्भव है कि 40 हजारवाँ बच्चा यूक्रेन चला जाये, जहां कालेज इंडिया से सस्ता है। 

लेकिन वो आपके हिसाब से फेल्वर है।जो मेदांता में आपका इलाज कर रहा है, उसकी नीट रैंक डेढ़ लाख रही थी, पर भारत मे पढ़ा है। आपके हिसाब से प्रतिभाशाली हुआ। 

लेकिन भूल गए, यहां रिजर्वेशन भी है। तो सम्भव है कि सरकारी कालेज से पढ़ा 19 हजारवाँ बच्चे के नीट मार्क्स 61 हजारवें बच्चे से कम है, इसे क्या कहेंगे- विवादित प्रतिभाशाली ??? आरक्षण हटवाने का आंदोलन करेंगे?
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लेकिन ठहरिये। आप किसी डॉक्टर से दवा लेते वक्त तो उसकी नीट रैंक नही पूछते। ऑपरेशन से पहले सर्जन से कभी पूछा आपने- तेरी पीएमटी रैंक क्या थी??

डॉक्टर तो मरीज से अच्छे व्यवहार, तत्काल रिलीफ, समय पर उपलब्धता से लोकप्रिय होते है। सफलता, कालेज में शरीर की बेसिक समझ के पाने के बाद,सिर्फ स्किल और प्रैक्टिस के बूते मिलती हैं। 

ठीक वैसे ही जैसे कि मिस्त्री, कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन, प्लम्बर, ड्राइवर, स्किल और प्रेक्टिस से परफेक्ट बनते हैं।

तो अगर, मेडिकल साइंस की सीट अधिक हो, तो देश के अधिक बच्चे प्रतिभाशाली होने का प्रमाण पत्र पाएंगे। डॉक्टर बनेंगे, आस पड़ोस में सेवा देंगे। शहरों को छोड़, धंधे के लिए गांव तक जाएंगे। 
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हेल्थ और एजुकेशन सरकार का पहला जिम्मा है। मेडिकल कालेज खोलना 100% सरकारी जिम्मा है। यूक्रेन के कॉलेज सेटिंग वाले उद्योगपतियों ने नही बनाये।  ये सब सोवियत दौर के बने है। 

याने उसी मुफ्तखोर वामपंथी तंत्र की औलाद है, जिस सोच से भारत मे एम्स, आईआईटी, जेएनयू बने। अब ये शानदार कालेज यूक्रेन को विदेशी मुद्रा देने वाले सोने की खदान हैं। 

जिसकी इच्छा है, अफोर्डेबल फीस दे, आकर पढ़े। हम शरीर विज्ञान पढ़ाएंगे, बाकी तुम्हारी प्रेक्टिस .
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देश को आबादी के लिहाज से दो से तीन लाख मेडिकल सीटों की जरूरत है। आप चार लाख बना लो, दो चार मूर्तियों मंदिरों की कॉस्ट पर बन जायेगा। एक्स्ट्रा को विदेशियों को बेच दो। किसने रोका?? जेनएयू में विदेशी आकर पढ़ते हैं न। 

लेकिन नही। हम बाहर के नही, अपने लोगो को लूटेंगे। कृत्रिम अभाव बनाये रखेंगे। कीमत ऊंची बनाये रखेंगे। फिर उसे योग्यता और टैलेंट का पैमाना बताएंगे, क्योकि हम टैलेंट प्रेमी, राष्ट्रवादी देशभक्त हैं। 

एक काम करो। देश मे प्रधानमंत्री की एक सीट है। सबसे प्रतिभाशाली ही उस पर बैठता है। ठीक उसी तरह, सारे मेडिकल कालेज में बम लगा दो। 

देश मे एक शीर्ष प्रतिभाशाली टैलेंटेड को ही डॉक्टर बनने का हक है। सिर्फ उसे ही डॉक्टर बनने दो।

Manish Singh Reborn

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