Thursday, 27 January 2022

कविता -हिन्दू




मैं तब हिंदू नहीं था

जब मेरे माँ-बाप
सिर्फ़ इसलिए बेदर्दी से
पीटे जा रहे थे
कि उन्हें मंज़ूर नहीं थी
भीख सरीखी मज़दूरी

मैं तब भी हिंदू नहीं था
जब हमारी बहू बेटियाँ
पशुओं से भी बदतर थीं
और हमारे पशु
तुम्हारी बपौती

मैं तब भी नहीं था हिंदू
जब गुज़रता था
तुम्हारी हवेली से
सिर झुकाए
तुम्हारे मंदिरों से 
कोसों दूर लड़खड़ाते

मैं तब भी हिंदू नहीं था
जब तुम्हारी गंदगी ढोता 
तुम्हारी जूठन को
नियामत समझता था

तुम्हारे तथाकथित धर्म
महान आचारों विचारों की
परिधि से उठाकर 
निर्दयता से बाहर फेंका गया
मैं कब हिंदू था
मुझे मालूम नहीं

जब तुम्हारी घृणित
राजनीति के जूए में
बैलों की कमी पड़ती है
तुम्हारी हिंसक भीड़ में
ज़रूरत पड़ती है
हतबुद्धि पथराये जनों की
जब तुम कमज़ोर पड़ते हो
काल्पनिक विधर्मियों के आगे

तब तुम्हें याद आता है
कि हम लोग भी तो हिंदू हैं

पर तुम भूल जाते हो कि
वह मासूम भी हिंदू थी
जिसकी विदीर्ण लाश
तुम्हारे खेत में मिली थी

हिंदुत्व
हथियार है तुम्हारा
सदियों पुराना
कुत्सित नीति है 
ज़माने से तुम्हारी
यही रीति है

जो तब हमारी समझ में
नहीं आई थीं
कि वह कौन सा नुस्खा है
कि कल तक के पशु
कल तक के अछूत
अचानक हिंदू हो जाते हैं


*-हूबनाथ*

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