Friday, 5 November 2021

मजाज़ लखनवी,

इंकलाबी शायर मजाज़ लखनवी, 
'सरमाएदारी' पर उनकी लाइनें जो आज भी मौजू हैं --

कलेजा फुक रहा है और जबाँ कहने से आरी है।
बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज यह सरमाएदारी है।

यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है,
यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहकान का खरमन है।

यह अपने हाथ में तहजीब का फानूस लेती है,
मगर मजदूर के तन से लहू तक चूस लेती है।

यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है,
वबा से बढकर मुहलक, मौत से बढ़कर भयानक है।

न देखें हैं बुरे इसने, न परखे हैं भले इसने,
शिकंजों में जकड कर घोंट डाले है गले इसने।

कहीं यह खूँ से फरदे माल व जर तहरीर करती है,
कहीं यह हड्डियाँ चुन कर महल तामीर करती है।

गरीबों का मुकद्दस खून पी-पी कर बहकती है
महल में नाचती है रक्सगाहों में थिरकती है।

जिधर चलती है बर्बादी के सामां साथ चलते हैं,
नहूसत हमसफर होती है साथ चलते हैं।

यह अक्सर टूटकर मासूम इंसानों की राहों में,
खुदा के जमजमें गाती है, छुपकर खनकाहों में।

यह गैरत छीन लेती है, हिम्मत छीन लेती है,
यह इंसानों से इंसानों की फतरत छीन लेती है।

गरजती, गूँजती यह आज भी मैदाँ में आती है,
मगर बदमस्त है हर हर कदम पर लड़खड़ाती है।

मुबारक दोस्तों लबरेज है इस का पैमाना,
उठाओ आँधियाँ कमजोर है बुनियादे काशाना।

-- मजाज़ लखनवी
बजरिये साथी Gajender Rawat

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