Sunday, 18 July 2021

जनवाद के लिए सबसे आगे बढ़कर लड़ने वाले के रूप में मज़दूर वर्ग • कॉमरेड वी.आई. लेनिन

जनवाद के लिए सबसे आगे बढ़कर लड़ने वाले के रूप में मज़दूर वर्ग • कॉमरेड वी.आई. लेनिन
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हम देख चुके हैं कि अधिक से अधिक व्यापक राजनीतिक आंदोलन चलाना और इसलिए सर्वांगीण राजनीतिक भंडाफोड़ का संगठन करना गतिविधि का एक बिल्कुल ज़रूरी और सबसे ज़्यादा तात्कालिक ढंग से ज़रूरी कार्यभार है, बशर्ते कि यह गतिविधि सचमुच सामाजिक-जनवादी (कम्युनिस्ट) ढंग की हो। परंतु हम इस नतीजे पर केवल इस आधार पर पहुँचे थे कि मज़दूर वर्ग को राजनीतिक शिक्षा और राजनीतिक ज्ञान की फ़ौरन ज़रूरत है। लेकिन यह सवाल को पेश करने का एक बहुत संकुचित ढंग है, कारण कि यह आम तौर पर हर सामाजिक-जनवादी आंदोलन के और ख़ास तौर पर वर्तमान काल के रूसी सामाजिक-जनवादी आंदोलन के आम जनवादी कार्यभारों को भुला देता है। अपनी बात को और ठोस ढंग से समझाने के लिए हम मामले के उस पहलू को लेंगे, जो "अर्थवादियों" के सबसे ज़्यादा "नज़दीक" है, यानी हम व्यावहारिक पहलू को लेंगे। "हर आदमी यह मानता है" कि मज़दूर वर्ग की राजनीतिक चेतना को बढ़ाना ज़रूरी है।

सवाल यह है कि यह काम कैसे किया जाए, इसे करने के लिए क्या आवश्यक है? आर्थिक संघर्ष मज़दूरों को केवल मज़दूर वर्ग के प्रति सरकार के रवैये से संबंधित सवाल उठाने की "प्रेरणा देता है" और इसलिए हम "आर्थिक संघर्ष को ही राजनीतिक रूप देने" की चाहे जितनी भी कोशिश करें, इस लक्ष्य की सीमाओं के अंदर-अंदर रहते हुए हम मज़दूरों की राजनीतिक चेतना को कभी नहीं उठा पायेंगे, कारण कि ये सीमाएँ बहुत संकुचित हैं। मार्तीनोव का सूत्र हमारे लिए थोड़ा-बहुत महत्त्व रखता है, इसलिए नहीं कि उससे चीज़ों को उलझा देने की मार्तीनोव की योग्यता प्रकट होती है, बल्कि इसलिए कि उससे वह बुनियादी ग़लती साफ़ हो जाती है, जो सारे "अर्थवादी" करते हैं, अर्थात उनका यह विश्वास कि मज़दूरों की राजनीतिक वर्ग चेतना को उनके आर्थिक संघर्ष के अंदर से बढ़ाया जा सकता है, अर्थात इस संघर्ष को एकमात्र (या कम से कम मुख्य) प्रारंभिक बिंदु मानकर, उसे अपना एकमात्र (या कम से कम मुख्य) आधार बनाकर राजनीतिक वर्ग चेतना बढ़ाई जा सकती है। यह दृष्टिकोण बुनियादी तौर पर ग़लत है। "अर्थवादी" लोग उनके ख़िलाफ़ हमारे वाद-विवाद से नाराज़ होकर इन मतभेदों के मूल कारणों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने से इंकार करते हैं, जिसका यह परिणाम होता है कि हम एक-दूसरे को क़तई नहीं समझ पाते, दो अलग-अलग ज़बानों में बोलते हैं।

मज़दूरों में राजनीतिक वर्ग चेतना बाहर से ही लाई जा सकती है, यानी केवल आर्थिक संघर्ष के बाहर से, मज़दूरों और मालिकों के संबंधों के क्षेत्र के बाहर से। वह जिस एकमात्र क्षेत्र से आ सकती है, वह राज्यसत्ता तथा सरकार के साथ सभी वर्गों तथा स्तरों के संबंधों का क्षेत्र है, वह सभी वर्गों के आपसी संबंधों का क्षेत्र है। इसलिए इस सवाल का जवाब कि मज़दूरों तक राजनीतिक ज्ञान ले जाने के लिए क्या करना चाहिए, केवल यह नहीं हो सकता कि "मज़दूरों के बीच जाओ" – अधिकतर व्यावहारिक कार्यकर्ता, विशेषकर वे लोग, जिनका झुकाव "अर्थवाद" की ओर है, यह जवाब देकर ही सं‍तोष कर लेते हैं। मज़दूरों तक राजनीतिक ज्ञान ले जाने के लिए सामाजिक-जनवादी कार्यकर्ताओं को आबादी के सभी वर्गों के बीच जाना चाहिए और अपनी सेना की टुकड़ियों को सभी दिशाओं में भेजना चाहिए।

हमने इस बेडौल सूत्र को जानबूझकर चुना है, हमने जानबूझकर अपना मत अति सरल, एकदम दो-टूक ढंग से व्यक्त किया है – इसलिए नहीं कि हम विरोधाभासों का प्रयोग करना चाहते हैं, बल्कि इसलिए कि हम "अर्थवादियों" को वे काम करने की "प्रेरणा देना" चाहते हैं, जिनको वे बड़े अक्षम्य ढंग से अनदेखा कर देते हैं, हम उन्हें ट्रेडयूनियनवादी राजनीति और सामाजिक-जनवादी राजनीति के बीच अंतर देखने की "प्रेरणा देना" चाहते हैं, जिसे समझने से वे इंकार करते हैं। अतएव हम पाठकों से यह प्रार्थना करेंगे कि वे झुँझलाएँ नहीं, बल्कि अंत तक ध्यान से हमारी बात सुनें।

पिछले चंद बरसों में जिस तरह का सामाजिक-जनवादी मंडल सबसे अधिक प्रचलित हो गया है, उसे ही ले लीजिए और उसके काम की जाँच कीजिए। "मज़दूरों के साथ उसका संपर्क" रहता है और वह इससे संतुष्ट रहता है, वह परचे निकालता है, जिनमें कारख़ानों में होनेवाले अनाचारों, पूँजीपतियों के साथ सरकार के पक्षपात और पुलिस के ज़ुल्म की निंदा की जाती है। मज़दूरों की सभाओं में जो बहस होती है, वह इन विजयों की सीमा के बाहर कभी नहीं जाती या जाती भी है, तो बहुत कम। ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास के बारे में, हमारी सरकार की घरेलू तथा वैदेशिक नीति के प्रश्नों के बारे में, रूस तथा यूरोप के आर्थिक विकास की समस्याओं के बारे में और आधुनिक समाज में विभिन्न वर्गों की स्थिति के बारे में भाषणों या वाद-विवादों का संगठन किया जाता है। और जहाँ तक समाज के अन्य वर्गों के साथ सुनियोजित ढंग से संपर्क स्थापित करने और बढ़ाने की बात है, उसके बारे में तो कोई सपने में भी नहीं सोचता। वास्तविकता यह है कि इन मंडलों के अधिकतर सदस्यों की कल्पना के अनुसार आदर्श नेता वह है, जो एक समाजवादी राजनीतिक नेता के रूप में नहीं, बल्कि ट्रेडयूनियन के सचिव के रूप में अधिक काम करता है, क्योंकि हर ट्रेडयूनियन का, मिसाल के लिए, किसी ब्रिटिश ट्रेडयूनियन का सचिव आर्थिक संघर्ष चलाने में हमेशा मज़दूरों की मदद करता है, वह कारख़ानों में होनेवाले अनाचारों का भंडाफोड़ करने में मदद करता है, उन क़ानूनों तथा पगों के अनौचित्य का पर्दाफ़ाश करता है, जिनसे हड़ताल करने और धरना देने (हर किसी को यह चेतावनी देने के लिए कि अमुक कारख़ाने में हड़ताल चल रही है) की स्वतंत्रता पर आघात होता है, वह मज़दूरों को समझाता है कि पंच-अदालत का जज, जो स्वयं बुर्जुआ वर्गों से आता है, पक्षपातपूर्ण होता है, आदि, आदि। सारांश यह कि "मालिकों तथा सरकार के ख़िलाफ़ आर्थिक संघर्ष" ट्रेडयूनियन का प्रत्येक सचिव चलाता है और उसके संचालन में मदद करता है। पर इस बात को हम जितना ज़ोर देकर कहें थोड़ा है कि बस इतने ही से सामाजिक-जनवाद नहीं हो जाता, कि सामाजिक-जनवादी का आदर्श ट्रेडयूनियन का सचिव नहीं, बल्कि एक ऐसा जन-नायक होना चाहिए, जिसमें अत्याचार और उत्पीड़न के प्रत्येक उदाहरण से, वह चाहे किसी भी स्थान पर हुआ हो और उसका चाहे किसी भी वर्ग या स्तर से संबंध हो, विचलित हो उठने की क्षमता हो; इसमें इन तमाम उदाहरणों का सामान्यीकरण करके पुलिस की हिंसा तथा पूँजीवादी शोषण का एक अविभाज्य चित्र बनाने की क्षमता होनी चाहिए; उसमें प्रत्येक घटना का, चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो, लाभ उठाकर अपने समाजवादी विश्वासों तथा अपनी जनवादी माँगों को सभी लोगों को समझा सकने और सभी लोगों को सर्वहारा के मुक्ति-संग्राम का विश्व-ऐतिहासिक महत्त्व समझा सकने की क्षमता होनी चाहिए।…

मुख्य बात है जनता के सभी स्तरों के बीच प्रचार और आंदोलन।… हमें आबादी के उन सभी वर्गों के प्रतिनिधियों की सभाएँ बुलाने में भी समर्थ होना चाहिए, जो किसी जनवादी की बातों को सुनना चाहते हैं, कारण कि वह आदमी सामाजिक-जनवादी नहीं है, जो व्यवहार में यह भूल जाता है कि "कम्युनिस्ट हर क्रांतिकारी आंदोलन का समर्थन करते हैं", कि इसलिए हमारा कर्त्तव्य है कि अपने समाजवादी विश्वासों को एक क्षण के लिए भी न छिपाते हुए हम समस्त जनता के सामने आम जनवादी कार्यभारों की व्याख्या करें तथा उन पर ज़ोर दें। वह आदमी सामाजिक-जनवादी नहीं है, जो व्यवहार में यह भूल जाता है कि सभी आम जनवादी समस्याओं को उठाने, तीक्ष्ण बनाने और हल करने में उसे और सब लोगों से आगे रहना है।…

हमें अपनी पार्टी के नेतृत्व में एक सर्वांगीण राजनीतिक संघर्ष इस तरह संगठित करने का काम अपने हाथ में लेना होगा कि इस संघर्ष को तथा इस पार्टी को विरोध-पक्ष के सभी हिस्सों से अधिक से अधिक समर्थन मिले। हमें अपने सामाजिक-जनवादी व्यावहारिक कार्यकर्त्ताओं में से ऐसे राजनीतिक नेता प्रशिक्षित करने होंगे, जिनमें इस सर्वांगीण संघर्ष के प्रत्येक रूप का नेतृत्व करने की क्षमता हो और जो बेचैन विद्यार्थियों, जेम्स्त्वो के असंतुष्ट सदस्यों, धार्मिक संप्रदायों के खिन्न लोगों, नाराज प्राथमिक शिक्षकों, आदि सभी लोगों के लिए सही समय पर "काम का एक सकारात्मक कार्यक्रम निर्दिष्ट" कर सकें।…

राजनीतिक भंडाफोड़ के लिए सबसे आदर्श श्रोता मज़दूर वर्ग होता है, जो सर्वांगीण तथा सजीव राजनीतिक ज्ञान की आवश्यकता के मामले में सबसे अव्वल और सबसे आगे है, और इस ज्ञान को सक्रिय संघर्ष में परिणत करने की क्षमता भी उसी में सबसे ज़्यादा होती है, भले ही उससे "कोई ठोस नतीजे" निकलने की उम्मीद न हो।

('क्या करें' पुस्तक से)

मुक्ति संग्राम – बुलेटिन 8 ♦ जुलाई 2021 में प्रकाशित

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