हिम्मत रखिए मोदीजी, जनता कहाँ रोती है।
नए भारत की कल्पना मे, जनता कहाँ रोती है।
कालाधन वापस ना आए तो, जनता कहाँ रोती है।
पुलवामा की शहादत पर, जनता कहाँ रोती है।
गलवान घाटी की शहादत पर, जनता कहाँ रोती है।
देश की GDP गिर जाए, जनता कहाँ रोती है।
व्यापार - धन्धे चोपट हो जाएं, जनता कहाँ रोती है।
कमाऊं PSU बिक जाए, जनता कहाँ रोती है।
बैंक दिवालिये हो जाए, जनता कहाँ रोती है।
विदेशों मे देश की संपत्ति बिक जाए, जनता कहाँ रोती है।
बैरोजगारी चरम पर हो तो, जनता कहाँ रोती है।
महंगाई चरम पर हो तो, जनता कहाँ रोती है।
कालाबाजारी चरम पर हो तो, जनता कहाँ रोती है।
षडयंत्रकारी महामारी का प्रकोप हो, जनता कहाँ रोती है।
महामारी मे कई परिवार उजड़ गए, जनता कहाँ रोती है।
आक्सीजन सिलेंडर न मिले, जनता कहाँ रोती है।
जीवन रक्षक दवाईयाँ न मिले, जनता कहाँ रोती है।
अस्पताल मे ईलाज न मिले, जनता कहाँ रोती है।
दम घुट घुट कर मर जाए तो, जनता कहाँ रोती है।
मृतकों के कफन चोरी हो जाए, जनता कहाँ रोती है।
अपनो को बेमौत मरता देखकर, जनता कहाँ रोती है।
गंगा मैय्या तेरती लाशों से भर जाए, जनता कहाँ रोती है।
हजारों सनातनियों को अंतिम संस्कार न मिले, जनता कहाँ रोती है।
अच्छे दिनों की आस मे, जनता कहाँ रोती है।
हिम्मत रखिए मोदी जी, जनता कहाँ रोती है।
© Raj Surana 🇮🇳
जय हिंद, जय भारत 🇮🇳
No comments:
Post a Comment