हमारे देश का कानून, न्याय व्यवस्था गरीब मिहनतकस लोगों के लिये नही बल्कि दबंग पूंजी मालिको और भू-माफियाओ के लिए है। सुप्रीम कोर्ट ने खोरी गाँव के लोगो को एन्क्रोचर करार देते हुये उनकी (10,000) दस हजार परिवारों की बस्ती इस कोरोना काल मे उजाड़ने का आदेश दे दिया है। जबकि उनमे से अधिकांश लोगों को वहाँ के दबंग भू-माफियो ने जमीन जाली दस्तावेज (पावर ऑफ अटॉर्नी) के आधार पर बेच कर उनसे पहले ही पैसे ऐंठ लिए है। इस तरह का धंधा खुलेआम कई जगह चल रहा है, लेकिन प्रशासन इसे रोकने की अपनी जिम्मेदारी नही समझता। लोग लूट लिए जाते है, कभी भू-माफ़ियावो द्वारा तो कभी चिट-फण्ड कंपनी द्वारा। लेकिन न्याय का सुप्रीम मंदिर अपने आंखों पर पट्टी बांध लेता है और कारपोरेशन को सख्त और निर्मम आदेश देता है कि इन गरीब बस्तियों को उजाड़ दिया जाए।
जब इनमे से कई लोग दशकों से इन बस्तियों में रह रहे है तो इन unauthorized कॉलोनियों को रेगुलराइज क्यो नही किया जा सकता? जबकि इनके यहाँ रहने से थोड़े से बचे अरावली के जंगल, जिसे दिल्ली का लन्स कहा जाता है, की रक्षा भी हो रही थी।
पर्यावरण का हवाला दे कर कहा जा रहा है कि अमीरों को स्वछ वायु मिलती रहे इसके लिए अमरावली के पहाड़ो पर बसे गरीबो की बस्ती का उजारा जाना जरूरी है। जबकि सच्चाई यह है कि अमरावली के पहाड़ के अधिकांश जंगल, जो कि एक समय दिल्ली से ले कर गुजरात तक फैला हुआ था, पूंजीवादी मुनाफा के भेंट चढ़ गया।
इन कॉलोनियों में कई दशकों से रहने वाले गरीब मिहनतकस लोगो के सामने एकाएक इस कोरोना काल मे आवास की विकट समस्या खड़ी हो गयी है। प्रधानमंत्री की तमाम आवास योजनाए कभी इनकी समस्या को सम्बोधित नही किया है।
अखबारों के रिपोर्ट से हम जानते है कि पूरे भारत मे दस लाख से ज्यादा फ्लैट बन कर तैयार है लेकिन वे बिक नही रहे है। दूसरी तरफ इन बस्तियों में रहनेवाले 10000 परिवारों को अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सड़क पर आना होगा। पूंजीवाद एक ओर मुट्ठी भर लोगो को आपार सम्पत्ति तो दूसरी ओर विशाल मिहनतकस जनता को भयंकर गरीबी के सिवा और दे भी क्या सकता है?
लेकिन लोग करे भी तो क्या करे? सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद डेमोलिशन ड्राइव के खिलाफ बस्ती के लोगो ने जबरदस्त एकता दिखाते हुए शांतिपूर्ण ढंग से प्रतिरोध प्रदर्शन किया। लेकिन फासीवादी प्राशासन ने विरोध को कुचलते हुए डेमोलिशन ड्राइव करता रहा। इतना ही नही बहुत लोगो को गिरफ्तार भी किया गया है और उन्हें पहले तो सूरजकुंड थाने पर रखा गया था, अब उन्हें अन्यत्र ले जाया गया है। प्रशासन पर तमाम दबाव बनाए जाने के बाउजूद भी उनकी रिहाई अभी तक नही हुई है।
लानत है ऐसे क्रूर प्रशासन को और इस लूटेरी पूंजीवादी व्यवस्था को जिसने अब बने रहने का औचित्य पूरी तरह खो दिया है।
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