मेन स्ट्रीम मीडिया को खरीद लिया और आई टी सेल गठित किया । बिकाऊ मीडिया और सोशल मीडिया प्रचार द्वारा प्रोपेगैंडा फैलाकर अंंधभक्तों का जनाधार बनाया । इस सबके बावजूद बदहाल भौतिक परिस्थितियों ने लोगों को जागृत किया और सोशल मीडिया पर झूठ और मक्कारी का परदाफाश होने लगा । इसलिए अब अचानक सोशल मीडिया के कंटेंट को नियंत्रित करने की बात आ गई है और नये आई.टी. कानून बनाए जा रहे हैं ।
ये कानून फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे प्लेटफार्म का इंटरमीडियरी स्टेटस हटा देंगे । पहले ये प्लेटफार्म केवल एक इंटरमीडियरी थे और इनको इम्यूनिटी थी जिससे उन पर दर्ज कंटेंट के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता था । पर अब जब ये इंटरमीडियरी स्टेटस हट जाएगा तो इन कंपनियों को उन सभी पोस्ट को हटाने का कानूनी दबाव बनाया जाएगा जो सरकारी तंत्र के खिलाफ हैं और तेजी से प्रचलित हो रहे हैं । जिन्होंने इस तरह के कंटेंट की शुरुआत की है उन्हें अलग से टारगेट किया जाएगा । सरकार द्वारा किया दुष्प्रचार बकायदा चलता रहेगा । यदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म सरकार के दुष्प्रचार को यदाकदा उजागर करता है तो उनके ऊपर आधिकारिक कार्यवाही हो जाएंगी जैसे मेनिपुलेटेड ट्वीट को मेनिपुलेटेड कहने पर ट्विटर के दफ्तर पर कल रेड पड़ गई ।
50 करोड़ सोशल मीडिया उपभोक्ताओं के इस बाजार को क्या सोशल मीडिया कंपनियां इसलिए गंवा देंगी क्योंकि सरकार कुछ नियंत्रण चाहती है । ज़ाहिर है मुनाफा सर्वोच्च है और कंपनियां ये सभी कानूनों का पालन करने लगेंगी । इसी सोशल मीडिया द्वारा आम लोगों की निजता के उल्लंघन से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता और वह जारी रहेगा । हम-आप क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कहां जाते हैं, ये सभी इंफार्मेशन डाटा के रूप में और अधिक तादाद में सोशली उपलब्ध होंगी क्योंकि ये तो कार्पोरेट के मुनाफे की प्राथमिक ज़रूरत बन गई है ।
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