Sunday, 9 May 2021

हत्यारी शालीनता- कविता



हत्यारे को हत्यारा न कहा जाए 
सनातनी हत्या के लिए
भाषा की सनातनी शालीनता बरती जाए
इससे शाकाहारी लोमड़ी को गाली पड़ती है 
यह कथन मेरा नहीं 
 कारपोरेट की छाया तले 
सामंती बिल में बैठी लोमड़ियों की आत्म स्वीकृति है
कि भाषा की बिल पर उनका सनातनी पट्टा है
भले गांधी की हत्या को हत्या नहीं वध कहा जाए
भाषा के षड्यंत्रकारी अभयारण्य को
हिंसक पशुओं के लिए छोड़ दिया जाए
जहां मनुष्यों का जाना वर्जित हो 
इंसानियत की लाश को लाश नहीं
जगत का अंतिम सच कहा जाए
लाश के सच को लाश कहने पर
सच की हर भाषा को लाश से तौल दिया जाए
भूख बीमारी और गरीबी 
जब भी घर की चारदीवारी  से बाहर  निकलें
वे अकेले ना निकलें
घूंघट और बुर्के में 
कम से कम भाषा के एक सनातनी हत्यारे के पीछे पीछे चलें
यह घर की इज्जत का सवाल है 
नहीं तो  लोकतंत्र के नजरबंद चौराहे पर ठोक दिया जाए
 भाषा के गर्भपात के लिए 
हत्यारे जब भी खूनी खंजर लेकर दौड़ें
अपनी सदाशयता और नम्रता की छाती उधेड़ कर
उन्हें थाली में परोस दिया जाए
हर शब्द गढ़ने के पहले 
यह जांच लिया जाए कि लोमड़ी की लटक कर वक्र हुई
 पूंछ की गरिमा का  
जाने-अनजाने कोई शब्द  अतिक्रमण तो नहीं कर रहे हैं
पसीने से वीर्य  निःसृत कर
मछली के गर्भ से बच्चे पैदा करना
और तैरती हुई नाव में मत्स्यकन्या के गर्भ में
नंगे सूर्य के ठीक नीचे
काम पिपासा का वीर्य बो देना
यह सिर्फ ऋषियों और देवताओं का 
धार्मिक एकाधिकार है तथा
बलत्कृत जुए से बांधी गई प्रजा की  श्रद्धा का विषय है 
लेकिन तुम यह कभी भूल से भी मत कहना
कि जनता के हत्यारे अफवाहों के गर्भ 
और बेईमानी के वीर्य से  पैदा हुए हैं
यह देव भाषा एवं देवताओं का अपमान होगा 
कि लाखों लाख लोगों की जीती जागती मौत के बाद
वे माता के गर्भ से 
जन्म नहीं 
रक्त से सने आकाश में अवतार लेते हैं

जुल्मीरामसिंह यादव

8.05. 2021

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