Saturday, 24 April 2021

अपनी क़लम का इक़बाल जगाओ - मंजुल भारद्वाज



शोक संदेश लिखने वालो 
यह मौत नहीं हत्याएं हैं 
अपना ज़मीर जगाओ
मातम नहीं 
ज़िंदगी का अलख जगाओ !

तुम आती हुई मौत 
देख नहीं पाए
अपनी ज़िंदगी में सत्ताधीशों से 
एक भी सवाल पूछ नहीं पाए !

पद्मश्री का प्रसाद पाने वालो
सत्ता के टुकड़ों पर पलने वालो
तुम साहित्य सृजक नहीं
गिद्धों की सरकार के दरबारी हो !

अरे स्तुति लिखने वालो 
अब तो हत्यारे से 
ज़िंदगी के लिए
सवाल पूछो !

तुम्हारे अंदर अभी भी 
ज़रा सी 
संवेदना बची हो तो
मरती हुई जनता की आवाज़ उठाओ !

उठो जीवन के पक्षधर बनो
सच का सामना करो
अपनी क़लम का
अब तो इक़बाल जगाओ !

जनता का हाहाकार सुनो
अपनी अंतरात्मा को सुनो
अपनी कलम को संजीवनी बना
ज़िंदगी की ज्योत जलाओ !
..

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