शोक संदेश लिखने वालो
यह मौत नहीं हत्याएं हैं
अपना ज़मीर जगाओ
मातम नहीं
ज़िंदगी का अलख जगाओ !
तुम आती हुई मौत
देख नहीं पाए
अपनी ज़िंदगी में सत्ताधीशों से
एक भी सवाल पूछ नहीं पाए !
पद्मश्री का प्रसाद पाने वालो
सत्ता के टुकड़ों पर पलने वालो
तुम साहित्य सृजक नहीं
गिद्धों की सरकार के दरबारी हो !
अरे स्तुति लिखने वालो
अब तो हत्यारे से
ज़िंदगी के लिए
सवाल पूछो !
तुम्हारे अंदर अभी भी
ज़रा सी
संवेदना बची हो तो
मरती हुई जनता की आवाज़ उठाओ !
उठो जीवन के पक्षधर बनो
सच का सामना करो
अपनी क़लम का
अब तो इक़बाल जगाओ !
जनता का हाहाकार सुनो
अपनी अंतरात्मा को सुनो
अपनी कलम को संजीवनी बना
ज़िंदगी की ज्योत जलाओ !
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