Saturday, 24 April 2021

लानत --- आदित्य कमल


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निचुड़ा हुआ मेहनतकश आदमी 
जो परेशान रहा सालों - महीनों से ....
इधर बेहद परेशान है कई दिनों से
फैल रही बीमारी से
भूख की महामारी से
माथे पर लाद दी गई लाचारी से ।

बदइंतज़ामी की काई पर दौड़ते-हाँफते हलकान
सूख चुकी है जीभ....उसकी
उसके कंठ में फँसा बचा है बस कुछ बलगम और थूक ।

बढ़ते गए तुम्हारी निजी संपत्ति के ज़खीरे 
सड़ते रहे लोग...!

धूर्त , तू भाषण दे रहा है !
पैकेज से फुसला रहा है !
न जाने कितने दसक बीत चुके
तू योजनाएँ सुनाता जा रहा है !
बीमा दिखा रहा है !
ख़ैरात चटा रहा है .... !!
तुम्हारा मक्कारीभरा बेनकाब चेहरा देख 
ठगा हुआ महसूस कर रहा है अब वह ।

नंगा  देख  लिया  है  उसने  तुम्हें ।

वह खून के घूँट पीकर जी रहा है आजकल ।

अभी कुछ नहीं बचा उसके पास
कंठ में फँसे कुछ बलगम और थूक के सिवा !
अभी , फिलहाल तो वह सिर्फ थूक सकता है - 
तुम्हारे निर्लज़्ज़ चेहरों पर शासकों !

और लानत भेज सकता है ...
वह लानत भेजता है तुझे , आक्क थू !!

               

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