Thursday, 29 April 2021

गोबर पट्टी के ग्रामीण इलाकों में सरकारी गुबरैले और कोरोना का अकथ कहर


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उत्तर प्रदेश और बिहार के गांवों में भी कोरोना ने अपने काले जबड़े चारों तरफ भयंकर रूप से फैला लिया है | लेकिन इसकी नोटिस  ना तो  धंधेबाज मीडिया ले रही है  न ही  इस विषय पर उल्लेखनीय रंग से सोशल मीडिया में बात हो रही है| ग्रामीण  इलाकों में ऐसा कोई गांव या घर नहीं बचा है  जहां लोग बीमार ना हुए हो |लोग बीमार हो रहे हैं , ज्यादातर ठीक हो रहे हैं  लेकिन मृत्यु भी काफी संख्या में हुई है |उनके पास दवा के लिए सिर्फ झोलाछाप डॉक्टर हैं | ग्रामीणों की रोग प्रतिरोधक  क्षमता  शहरी लोगों की अपेक्षा अधिक है | वहीं सर्वसाधारण लोगों में  भय नहीं है  | उन्हें यह भी पता नहीं कि उन्हें कोरोना हुआ है या कोई अन्य बीमारी |  लेकिन अधिकांश लोगों की घ्राण शक्ति और स्वाद शक्ति  खत्म हो जाने के लक्षण मिले हैं | खांसी बुखार सर दर्द उसके बाद ठीक हो जाने पर भी बहुत कमजोरी  सारे के सारे लक्षण कोरोना के  |बहुत कम लोग टेस्ट करा पा रहे हैं| टेस्ट कराने पर वह कॉविड पॉजिटिव भी निकल रहे हैं |लेकिन बहुत सारी मृत्यु भी हो रही है ,जिसकी कहीं नोटिस न तो सोशल मीडिया ले रहा है और न ही  धंधेबाज मीडिया | लोग राम भरोसे ठीक हो रहे हैं और राम भरोसे मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं | उदाहरण के लिए आपको बता दूं इलाहाबाद के फूलपुर तहसील में एक छोटे से गांव कनौजा में कम से कम 6 आदमी मरे हैं गांव के सारे के सारे लोग बीमार हुए हैं| पूरे उत्तर प्रदेश और बिहार में सरकारी स्वास्थ्य मशीनरी ग्रामीण इलाकों में लगभग शून्य के बराबर कार्यरत है | ना तो इस व्यवस्था को इसकी चिंता है न हीं वह कुछ कर ही रही है | जनता ने जो चुना वही उसे रिटर्न वापस मिल रहा है | स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के बारे में बात करना भी यहां गुनाह और अपराध है |ऑक्सीजन की कमी ,दवाओं की कमी के बारे में कहना  सरकार से दुश्मनी मोल लेने और देशद्रोह के बराबर है | शहरों के बारे में तो सबको पता ही है | ना कहीं ऑक्सीजन मिल रहा है न कहीं बेड मिल रहा है ना वेंटीलेटर |  यहां तक कि मेडिकल स्टोर से दवाइयां तक खत्म हो गई हैं  ?ऐसे क्यों हो रहा है | इसके पीछे जो षड्यंत्र है क्या उसका पर्दाफाश नहीं होना चाहिए | सरकार की अक्षमता और लापरवाही पर  प्रश्न नहीं उठने चाहिए |इस सब की जिम्मेदारी सरकार की है या अदृश्य ईश्वर की ? 
           लेकिन इतनी सारी मृत्यु और त्रासदी के बाद भी क्या जनता के अंदर चेतना विकसित होगी? उसकी प्राथमिकता स्वास्थ्य रोजगार होगी या फिर वही जाति पांत और सांप्रदायिकता ? भक्त / अभक्त सभी मर रहे हैं | क्या भक्तों की भक्ति छूट जाएगी या यह नशा लाइलाज है ? क्या जंगली गंजेड़ी गांजा पीता रहेगा और जनता उसके नथुने से निकले हुए धुयें को सिर्फ सोंटती रहेगी ? भीड़ भरे  मंचों पर खेला दिखाने वाला मदारी अब मृत्यु का खेला दिखा रहा है | इसे कौन रोकेगा ?

##जुल्मीरामसिंह यादव

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