वो नही मान सकते निर्देश
घरों में रहने का,
जो हमेशा से बनाते रहे हैं घर
दुनिया भर का
जो जरूरत के सामान रखकर
नही गुजार सकते
अपने परिवार के साथ कुछ हफ्ते
जो नही जुटा सकते राशन
कुछ दिनों का
जिनके पास नही है कोई दूसरा बिस्तर
जिसपर सुला सकें अपने
बुखार में तपते बच्चे को
जो आज भी काटता है कपास
जो बनाता है
घर के सभी सामान
बड़े बड़े कारखानों में
जो मजबूर है
भीड़ बन जाने को
वो नही मान सकते निर्देश
कुछ गज की दूरी का ,
जो हमेशा ही सड़को
पर झुंड बनाकर सोते हैं
जो चिथड़ों से बस्तियां बनाकर
ढक देते हैं शहरों के कचरों को
जो नही ले सकते साफ हवा
ऐसे वक्त में भी
जो नही पहनते साफ कपड़े
वो नही मान सकते निर्देश
स्वस्थ रहने का ,
जो उगाते रहें हैं बार-बार
खेतों में जीवन
जो नही खा सकते संतुलित आहार
जो नही खरीद सकते
हफ्ते भर की दवा
महीने भर की कमाई से
जो मरते रहें हैं
गंदे पानी की बीमारियों से
जो बन जाते हैं
आकंड़ों की भीड़ हर ऐसी महामारी में
वो नही मान सकते निर्देश
किसी हत्यारी सरकार का,
जो नही पाते सम्मान
अपनी बनाई दुनिया मे
जो दुत्कार जाते हैं
सुविधाओं के कतारों में
जो खप जाते हैं
पूंजी के खेल में
जो चमकाते हैं राजभवनों
और महंगे गाड़ियों के शीशे
जो क़त्ल करवा दिए जाते हैं
मुनाफे के चक्र में
जो रौंद दिए जा रहे हैं
फ्लाईओवरों के नीचे
बच जाने को महामारियों से
नही है पर्याप्त बस
शासकीय नसीहतें और सख्त निर्देश
इसलिए
वो जो मारे जा रहे हैं
सदियों से भूख और कंगाली के महामारी से
वो जो नही जोड़ पाए अपनी कुछ ईंटें
जो नही बना पाए अपना घर
जो नही सुला सकें अपने बच्चों को
जो नही जुटा पाए अपना सामान
जो नही खा पाये अच्छा खाना
जो नही खरीद सके दवाईयां
जो नही पा सके सम्मान श्रम का
जो बनाते है सब कुछ अपनी मेहनत से
वो एक दिन उठेंगे
अपनी प्रतीक्षा से
उन्हें मानना पड़ेगा
क्रांति का निर्देश
ताकि
ध्वस्त हो जाएं
सभी हत्यारी सरकारें
और हरा सके मनुष्य
शोषण और अभाव के
सभी महामारियों को
- सौजन्य
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