आज बिहार निर्माण व असंगठित श्रमिक यूनियन की तरफ से 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' कार्यालय में मनाया गया। इसमें सबसे पहले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास पर चर्चा की गई और यह बताया गया कि इसकी शुरुआत जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी की नेत्री क्लारा जेटकिन ने की थी। इतिहास में पहली बार 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' 19 मार्च, 1911 को जर्मनी में मनाया गया था। इसमें लगभग 10 लाख से अधिक स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया था। चुंकि इससे पहले 8 मार्च, 1857, 8 मार्च, 1904, 8 मार्च, 1908, 8 मार्च, 1909 तथा 8 मार्च, 1910 को विभिन्न देशों में अपनी मांगों को लेकर 'महिला दिवस' मनाया जा चुका था, इसलिए 8 मार्च को ही भविष्य में भी 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' मनाने की बात तय हुई थी। 8 मार्च, 1921 को लेनिन ने 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' को सोवियत संघ में 'राजकीय पर्व' के रूप में घोषित किया था। काफी लंबे संघर्ष के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने 8 मार्च, 1975 को 8 मार्च की तारीख को 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' के रूप में घोषित किया और उस दिन महिलाओं को अपने जीवन की समस्याओं पर बातचीत करने के लिए छुट्टी देने की घोषणा की।
शुरुआती दौर में महिलाओं की मुख्य मांगें काम के घंटे 16 से 10 करने, मताधिकार का अधिकार देने, बाल मजदूरी बंद करने, घटिया शराब की दुकानें बंद करने, वेतन में वृद्धि करने तथा काम के दौरान सुविधा मुहैया कराने की थी। इसके बाद जैसे-जैसे महिलाओं का आंदोलन बढ़ता गया, वैसे-वैसे अलग-अलग देशों में, उस देश की परिस्थिति के अनुसार, महिलाओं की विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखकर, मांगे भी बढ़ती गईं। आज हमारे देश की महिला संगठनों की मुख्य मांगे निम्नलिखित हैं -
1. महिलाओं के काम के घंटे 8 से 6 किए जाएं।
2. महंगाई के अनुसार उनकी मजदूरी भी बढ़ाई जाए।
3. बेरोजगार महिला मजदूरों को काम दिया जाए।
4. स्त्रियों के साथ हो रहे बलात्कार तथा छेड़खानी की घटनाओं पर रोक लगाई जाए।
5. महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर सारे अधिकार दिए जाएं।
6. पितृसत्तात्मक व्यवस्था खत्म किया जाए और स्त्री-पुरुष बराबरी की भावना को विकसित किया जाए।
7. दहेज प्रथा, बाल विवाह, भ्रूणहत्या तथा घरेलू उत्पीड़न पर रोक लगाई जाए।
8. मनोविकृति को जन्म देने वाले पोर्न वीडियो तथा फिल्मों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
9. स्त्री शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
10. स्वास्थ्य एवं शिक्षा के निजीकरण पर रोक लगाई जाए।
11. वैश्यावृत्ति पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए तथा उनके लिए सम्मानजनक काम की व्यवस्था की जाए।
12. लड़कियों को अपनी पसंद से शादी-विवाह करने की पूर्ण आजादी दी जाए। इसमें समान धर्म और जाति के मानदंडों को समाप्त किया जाए।
हम देख सकते हैं कि महिलाओं की ये मांगें इस पूंजीवादी व्यवस्था में पूरी तरह संभव नहीं है। इसके लिए समाजवादी व्यवस्था का होना जरूरी है। इसलिए कामगार महिलाओं को पुरुष मजदूर वर्ग के साथ मिलकर संघर्ष करने की जरूरत है, ताकि अपनी संगठित ताकत की बदौलत इस पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म किया जा सके और इससे बेहतर पूंजीवादी व्यवस्था को लाया जा सके। महिलाओं को पूर्ण स्वतंत्रता और समानता एक समाजवादी व्यवस्था में ही मिल सकता है।
आज की परिचर्चा में इसी तरह की अन्य बातें की गईं। महिलाओं से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर तर्क-वितर्क किया गया और उसके समाधान पर भी विचार किया गया। इस परिचर्चा की अध्यक्षता जयंती जी ने किया। इस परिचर्चा में पिंकी कुमारी, शर्मिला देवी, गुड़िया कुमारी, प्राची इस्क्रा, आनंद प्रवीण, सौरव सुमन, पिंटू कुमार इत्यादि लोगों ने भाग लिया। यह एक छोटी बैठक थी, लेकिन इसमें जीवंत चर्चा की गई। अगले साल इसे और भी बड़े पैमाने पर मनाने का निश्चय किया गया।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस जिंदाबाद!
क्लारा जेटकिन जैसी महिलाएं अमर रहें!!
पूंजीवाद-साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!!!
वैज्ञानिक समाजवाद जिंदाबाद!!!!
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