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कुछ वर्ष पहले तक
हमारी बेटियों के नाम होते थे
रूड़ी
कजोड़ी
दाफली
घिंसी
अणछी
ननछि
छोटी
हाबुली
फूलन आदि
गरीब जात की बेटियों के नाम भी
गरीब हुआ करता था
जब वे रखती थी पहला कदम
स्त्री बनने की तरफ
गिद्धों की नजरे तोलने लगती थी
हर एक उभार को
महसूस करने लगते थे रक्त की उष्णता
और
बैठे रहते थे घात लगाए
भेड़िये की तरह
और
बेटियां मुश्किल से बचा पाती थी
खुद के मांस को
अभी पता है
वो सब पुराने नाम गायब हो गए हैं
चलन से
अब नाम रखे जाते हैं
सीता
लक्षमी
दुर्गा
पार्वती
सरस्वती
रामनामियों की तरह
जो गुदवा लेते थे "राम राम राम.... !"
पूरे बदन पर
ताकि बच सके हण्टरों,लातों और जूतों की मार से
और खाल नोचे जाने से
क्या गिद्ध और भेड़िये अब घात नहीं लगाते
क्या बची रहेंगी बेटियाँ
देवी नाम धर कर !
सोचता हूँ
क्या होता यदि फूलन का नाम फूलन नहीं होता
होता कोई और
जैसे कि सीता, गीता,शारदा !
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