मार्क्सवाद तथा अंबेडकरबाद में एक बड़ा फर्क है । वह है मार्क्सवाद के द्वंदात्मक भौतिकवाद तथा अंबेडकरवाद के भाववाद के बीच। मार्क्स ने द्वंदात्मक भौतिकवादी दृष्टिकोण से इतिहास को गति देने वाले वर्ग संघर्ष को रेखांकित किया , जबकि भाववाद को अपने दृष्टिकोण का आधार बनाने के कारण समाज के वर्गीय और सामाजिक शक्तियों को नजरअंदाज कर अंबेडकर अतीत में बुध के भाववादी विचारों के माध्यम से वर्तमान के जाति उत्पीड़न का समाधान खोजना शुरू किया। सच्चाई यह है कि बुद्ध भी अपने समय में उत्पादक शक्तियों में सबसे उन्नत कृषक और व्यापारियों को अपने सामाजिक आंदोलन का आधार बनाया था।
इस पूरी प्रक्रिया में यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वर्ग संघर्ष को हाशिए पर डालने के लिए पूरी दुनिया में वित्त पूंजी के माध्यम से चलने वाले विश्वविद्यालय तथा एनजीओ ने वर्ग संघर्ष की जगह पर जाति ,धर्म 'क्षेत्र और पहचान की लड़ाई को आगे बढ़ाया। लेकिन पिछले तीन दशकों में नवउदारवादी नीति के तहत बड़ी पूंजी ने वित्त पूंजी के साथ मिलकर के सभी देशों में जो मेहनतकशों और छोटी पूंजी के मालिकों के ऊपर जो कत्लेआम मचाया है , उसके बाद से वर्ग संघर्ष एक बार फिर से पूरी दुनिया में जीवंत हो चुका है। बड़ी पूंजी के फंडों से चलने वाले विश्व विद्यालय और एनजीओ मार्क्सवाद तथा वर्ग संघर्ष की विचारधारा को आउटडेटेड घोषित कर चुका था । लेकिन पूरी दुनिया में और आज की तारीख में भारत का किसान आंदोलन एक बार फिर से इस बात को स्थापित कर रहा है कि वर्ग संघर्ष ही इतिहास को गति देने वाली और समाज को बदलने वाली मुख्य शक्ति बनेगी।
नरेंद्र कुमार
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