Tuesday, 23 February 2021

अल्पसंख्यक- कविता



मैं पाकिस्तान में सताया गया हिंदू हूँ
मैं हिंदुस्तान में दबाया गया मुस्लिम हूँ
मैं इज़रायल का मारा फ़िलिस्तीनी हूँ
मैं जर्मनी में कत्ल हुआ यहूदी हूँ
मैं इराक का जलाया हुआ कुवैती हूँ
मैं चीन द्वारा कुचला गया तिब्बती हूँ
मैं अमेरिका में घुटता हुआ ब्लैक हूँ
मैं आइसिस से प्रताड़ित यज़ीदी हूँ

मैं तुर्कों के हाथों छलनी अर्मेनियाई हूँ
मैं पूर्वी पाकिस्तान में जिबह हुआ बंगाली हूँ
मैं हुतू के हाथों उजाड़ा गया तुत्सी हूँ
मैं नानचिंग में कत्ल किया गया चायनीज़ हूँ
मैं मध्य अफ़्रीका में मक़तूल ईसाई हूँ
मैं दार्फ़ुर में दफ़न ग़ैर अरबी हूँ

मैं अशोक से हारा कलिंगी हूँ
मैं रशिया से त्रस्त सीरियन हूँ, पॉलिश हूँ, हंगेरियन हूँ, यूक्रेनी हूँ
मैं अकबर से परास्त मेवाड़ी हूँ
मैं ब्रिटेन के हाथों लुटा एशियाई हूँ, अफ़्रीकी हूँ, ऑस्ट्रेलियाई हूँ, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी हूँ

मैं अमेरिका के हथियारों से तबाह किया गया इराकी हूँ, वियतनामी हूँ, लीबियन हूँ, अफ़ग़ानिस्तानी हूँ, लगभग 70 नागरिकताओं की जलती हुई कहानी हूँ

मैं म्यांमार से भगाया गया रोहिंग्या हूँ
मैं श्रीलंका से मिटाया गया तमिल हूँ
मैं चौरासी का सिख हूँ
मैं भारत के जंगलों से उजाड़ा गया आदिवासी हूँ
मैं अपनी धरती पर कैद कश्मीरी हूँ
मैं कश्मीर से बेघर किया गया कश्मीरी पंडित हूँ
मैं असम का बंगाली हूँ
मैं ख़ुद के देश में रंगभेद झेलता पूर्वोत्तर का वासी हूँ

मैं पितृसत्ता से जान बचाती हुई लड़की हूँ
मैं परिवार से निकाला हुआ समलैंगिक हूँ
मैं शोर में दबाया गया सवाल हूँ
मैं वेदों से बहिष्कृत एक जाति हूँ
मैं सामाजिक सम्मान के लिए मारा गया प्रेमी हूँ
मैं धर्मांधों से धमकाया गया नास्तिक हूँ
मैं भीड़ से बाहर धकेली गयी चेतना हूँ
मैं तर्कहीनों से सहमा हुआ तर्कवादी हूँ

मैं बाज़ार के बीच एक ग़ैर बिकाऊ व्यक्ति हूँ
मैं राष्ट्रीयता में खोयी हुई आँचलिकता हूँ
मैं प्रचलित सुंदरता में अप्रचलित चेहरा हूँ
मैं मुख्यधारा से नष्ट की गई मौलिकता हूँ

मैं कभी किसी गाँव का, कभी किसी राज्य का, कभी किसी देश का, कभी किसी समाज का, कभी किसी संस्था का, तो कभी पूरी दुनिया का अल्पसंख्यक हूँ
मैं बहुसंख्यकों को दिखाया गया खतरा हूँ
मैं लुटेरी सत्ता का सबसे आसान मोहरा हूँ
और मैं जानता हूँ कि ये दोनों हँसेंगे अगर मैं खुद को निर्दोष कहूँगा

तो फिर मेरी धरती कौनसी है?
मेरा देश किधर है?
मेरा घर कहाँ है?
क्या मैं इस पृथ्वी पर हमेशा खानाबदोश रहूँगा?

#घोरकलजुग
अपूर्व भारद्वाज

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