तीनो कृषि कानून और चार श्रम सहिंताओं के माध्यम से श्रम कानूनों में बदलाव - सिर्फ और सिर्फ कॉर्पोरेट हितों का पोषण करने वाले है, मजदुरो और किसानों के हितों के खिलाफ है; इस लिये मजदुरो और किसानों को एक प्लेटफॉर्म पर आकर अपने कॉमन दुश्मन कॉरपोरेट्स और उसकी चहेती मोदी सरकार के खिलाफ तीब्र संघर्ष छेड़ना ही होगा। अलग अलग नही, साथ मिल कर पूंजी की सत्ता के खिलाफ मजबूती से उठ खड़ा होना - उनके सामने सिर्फ और सिर्फ एक यही विकल्प है।
हालांकि एमएसपी सिर्फ 6 % किसानों को ही मिल पाता है, फिर भी इसका विरोध IMF और WTO जैसी साम्राज्यवादी संस्थाएं अपने जरखरीद बुद्धिजीवियों द्वारा लम्बे चौड़े रिपोर्ट के माध्यम से यह प्रचारित करवा रही है कि एमएसपी मजदुरो और गरीब किसानों के हित के खिलाफ है और महगंगाई बढ़ाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
एक किसान भाई ने इस पर टिपण्णी की है कि एक लीटर पानी का बोतल और एक किलो गेहू आज बाजार में 20 रुपया में मिलता है। क्या यह माना जाए कि पानी का बोतल एमएसपी नही मिलने के कारण सस्ता है और एमएसपी मिलने के कारण गेहूं महँगा है। क्या इस तरह की घटिया सोच एवम विचारो का प्रचार प्रसार सिर्फ विचारात्मक गलती है, या कॉर्पोरेट और साम्राज्यवादी हितों की खुल्लमखुल्ला और बेशर्म दलाली है ?
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